श्रीमद् भागवत गीता अध्याय 2 श्लोक 1 (Bhagwat Geeta adhyay 2 shlok 1 in Hindi): भगवद्गीता, महाभारत के युद्ध के मध्य अर्जुन और भगवान श्रीकृष्ण के संवाद के रूप में, जीवन के गूढ़ रहस्यों और मानवता के मार्गदर्शन के सिद्धांतों का अद्वितीय संगम है। द्वितीय अध्याय में, श्रीकृष्ण ने आत्मा और शरीर के भेद को स्पष्ट कर आत्म-साक्षात्कार का महत्व समझाया है।
श्रीमद् भागवत गीता अध्याय 2 श्लोक 1 (Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 1)
सञ्जय उवाच
Bhagavad Gita Chapter 2 Verse-Shloka 1
तं तथा कृपयाविष्टमश्रुपूर्णाकुलेक्षणम् |
विषीदन्तमिदं वाक्यमुवाच मधुसूदनः || १ ||
गीता अध्याय 2 श्लोक 1 अर्थ सहित (Gita Chapter 2 Verse 1 with meaning in Hindi)

श्लोक:
सञ्जय उवाच
तं तथा कृपयाविष्टमश्रुपूर्णाकुलेक्षणम् |
विषीदन्तमिदं वाक्यमुवाच मधुसूदनः || १ ||
भावार्थ:
सञ्जयः उवाच – संजय ने कहा; तम् – अर्जुन के प्रति; तथा – इस प्रकार; कृपया – करुणा से; आविष्टम् – अभिभूत; अश्रु-पूर्ण-आकुल – अश्रुओं से पूर्ण; ईक्षणम् – नेत्र; विषीदन्तम् – शोकयुक्त; इदम् – यह; वाक्यम् – वचन; उवाच – कहा; मधु-सूदनः – मधु का वध करने वाले (कृष्ण) ने |
संजय ने कहा – करुणा से अभिभूत, शोकयुक्त और अश्रुपूरित नेत्रों वाले अर्जुन को देखकर मधुसूदन (श्रीकृष्ण) ने यह वचन कहा।
कृष्ण का अर्जुन को उपदेश:
श्रीकृष्ण ने अर्जुन को यह समझाया कि भौतिक वस्त्रों और शरीर के प्रति करुणा और शोक आत्मा के प्रति अज्ञानता का सूचक है। इस श्लोक में “मधुसूदन” शब्द का प्रयोग अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि श्रीकृष्ण ने असुर मधु का वध किया था और अब अर्जुन चाह रहा है कि वे अज्ञान के असुर का भी नाश करें जिसने उसे कर्तव्य से विमुख कर रखा है।
शोक और करुणा का वास्तविक स्थान:
इस श्लोक में संजय ने अर्जुन को बताया कि एक क्षत्रिय के रूप में उसे शोक और करुणा का वास्तविक अर्थ समझने की आवश्यकता है। बाहरी वस्त्रों या शरीर के प्रति करुणा रखना मूर्खता है, जबकि आत्मा के प्रति करुणा ही आत्म-साक्षात्कार का सच्चा मार्ग है।
तात्पर्य:
- अज्ञान का विनाश: श्रीकृष्ण ने अर्जुन को बताया कि अज्ञानता का विनाश आवश्यक है, क्योंकि यह आत्म-साक्षात्कार के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा है।
- भौतिकता से ऊपर उठना: आत्म-साक्षात्कार के लिए भौतिक शरीर और उसकी इच्छाओं से ऊपर उठना अनिवार्य है।
- कर्तव्य पालन: श्रीकृष्ण ने अर्जुन को कर्तव्य पालन का महत्व बताते हुए उसे निष्काम कर्म करने का उपदेश दिया।
- शोक का निराकरण: अर्जुन को समझाया गया कि शोक करना तब उचित है जब हम आत्मा के वास्तविक स्वरूप को न पहचान पाएं।
निष्कर्ष:
भगवद्गीता के द्वितीय अध्याय का यह श्लोक आत्मा और शरीर के भेद का ज्ञान प्रदान करता है। श्रीकृष्ण ने अर्जुन को अज्ञानता के अंधकार से निकालकर आत्म-साक्षात्कार की राह दिखाई, जो हर मानव के लिए पथप्रदर्शक हो सकती है। यह अध्याय हमें सिखाता है कि जीवन में शोक और करुणा के वास्तविक स्थान को पहचानकर ही हम आत्मा के वास्तविक स्वरूप को समझ सकते हैं और आत्म-साक्षात्कार की ओर अग्रसर हो सकते हैं।
Resources : श्रीमद्भागवत गीता यथारूप – बक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद, गीता प्रेस