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Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 65 Shloka 65 | गीता अध्याय 2 श्लोक 65 अर्थ सहित | प्रसादे सर्वदुःखानां…..

श्रीमद् भागवत गीता अध्याय 2 श्लोक 65 (Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 65 in Hindi): भगवद्गीता, भारतीय संस्कृति और दर्शन का अमूल्य ग्रंथ है। इसमें जीवन के गूढ़ रहस्यों और समस्याओं के समाधान के लिए भगवान श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को दी गई दिव्य शिक्षाएं निहित हैं। गीता के श्लोक 2.65 (Bhagavad Gita Chapter 2 Shloka 65) में भगवान श्रीकृष्ण ने बताया है कि ईश्वर की कृपा प्राप्त कर मनुष्य अपने समस्त दुःखों से मुक्त हो सकता है और उसे मानसिक शांति प्राप्त होती है। यह श्लोक भौतिक जीवन से आध्यात्मिक जीवन की ओर बढ़ने की प्रेरणा देता है।

Table of Contents

श्रीमद् भागवत गीता अध्याय 2 श्लोक 65 (Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 65)

गीता अध्याय 2 श्लोक 65 अर्थ सहित (Gita Chapter 2 Verse 65 in Hindi with meaning)

भागवत गीता अध्याय 2 श्लोक 2.65 (Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 65) और उसका अर्थ | Festivalhindu.com
Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 65

भागवत गीता अध्याय 2 श्लोक 2.65 (Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 65) और उसका अर्थ

श्लोक 2.65:
प्रसादे सर्वदुःखानां हानिरस्योपजायते।
प्रसन्नचेतसो ह्याश्रु बुद्धिः पर्यवतिष्ठते।।

शब्दार्थ:

  • प्रसादे: भगवान की कृपा प्राप्त होने पर।
  • सर्वदुःखानाम्: सभी दुखों का।
  • हानिः: नाश।
  • प्रसन्नचेतसः: प्रसन्नचित्त वाले की।
  • बुद्धिः: बुद्धि।
  • पर्यवतिष्ठते: स्थिर हो जाती है।

भावार्थ:
जब मनुष्य भगवान की कृपा प्राप्त करता है, तो उसके सभी दुःख समाप्त हो जाते हैं। वह प्रसन्नचित्त होता है और उसकी बुद्धि स्थिर हो जाती है। यह स्थिरता उसे जीवन के सही मार्ग पर ले जाती है।

भागवत गीता अध्याय 2 श्लोक 2.65 (Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 65) का गूढ़ भावार्थ

  1. दुखों का नाश:
    भगवान की कृपा से मनुष्य के जीवन के सभी प्रकार के दुख समाप्त हो जाते हैं। ये दुख भौतिक, मानसिक, और आध्यात्मिक हो सकते हैं। भगवान की कृपा से मनुष्य सांसारिक इच्छाओं और कष्टों से ऊपर उठकर शांति का अनुभव करता है।
  2. प्रसन्नचित्तता का महत्व:
    जब मनुष्य प्रसन्नचित्त होता है, तो उसका दृष्टिकोण सकारात्मक हो जाता है। वह जीवन की चुनौतियों का सामना स्थिरता और धैर्य के साथ करता है। यह प्रसन्नचित्तता भगवान की कृपा और आत्मा की शुद्धता से उत्पन्न होती है।
  3. आध्यात्मिक संतुष्टि का अनुभव:
    जब व्यक्ति भगवान की कृपा से दिव्य प्रेम और ज्ञान प्राप्त करता है, तो उसकी इंद्रियां स्थिर हो जाती हैं। वह बाहरी सुखों के प्रति अपनी लालसा को समाप्त कर देता है। यह स्थिति उसे सच्चे और स्थायी सुख का अनुभव कराती है।
  4. बुद्धि की स्थिरता:
    भगवान की कृपा से मनुष्य की बुद्धि स्थिर और प्रबुद्ध हो जाती है। वह जीवन के सही उद्देश्य को पहचानने में सक्षम होता है और अपने कार्यों को उसी दिशा में केंद्रित करता है।

भगवद्कृपा का महत्व

भगवद्कृपा का जीवन में विशेष महत्व है। यह न केवल आध्यात्मिक प्रगति का मार्ग प्रशस्त करती है, बल्कि मानसिक शांति और स्थिरता भी प्रदान करती है। इसके मुख्य लाभ निम्नलिखित हैं:

  • दुखों से मुक्ति: भौतिक दुखों का नाश होता है।
  • मन की शांति: आंतरिक संतोष और शांति का अनुभव।
  • दृढ़ बुद्धि: निर्णय लेने की क्षमता में सुधार।
  • दिव्य प्रेम और ज्ञान: भगवान के प्रति प्रेम और उनके ज्ञान का अनुभव।
  • आध्यात्मिक प्रगति: ईश्वर की ओर बढ़ने का मार्ग प्रशस्त होता है।

भगवद्कृपा प्राप्त करने के उपाय

भगवान की कृपा प्राप्त करना सरल नहीं है, लेकिन इसे कुछ प्रयासों के माध्यम से हासिल किया जा सकता है।

1. भक्ति योग का पालन करें:

  • नियमित रूप से भगवान का ध्यान और पूजन करें।
  • भगवद्गीता और अन्य धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन करें।

2. सत्संग में शामिल हों:

  • संतों और विद्वानों का संग करें।
  • धार्मिक विचारों और सत्संग से प्रेरणा प्राप्त करें।

3. अहंकार का त्याग करें:

  • विनम्रता और सादगी को जीवन में अपनाएं।
  • अपने कार्यों में निष्काम भावना रखें।

4. सद्गुणों का विकास करें:

  • दया, करुणा, और सत्य का पालन करें।
  • दूसरों की मदद के लिए तत्पर रहें।

आधुनिक जीवन में भागवत गीता अध्याय 2 श्लोक 2.65 (Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 65) का महत्व

आज के युग में हर व्यक्ति तनाव और चिंता से ग्रस्त है। ऐसे में गीता के श्लोक 2.65 का महत्व और बढ़ जाता है। यह श्लोक हमें सिखाता है कि मानसिक शांति और स्थिरता के लिए बाहरी सुखों का त्याग कर आंतरिक दिव्यता की ओर अग्रसर होना आवश्यक है।

तनाव प्रबंधन में सहायक:

भगवान की कृपा से प्राप्त प्रसन्नचित्तता व्यक्ति को तनाव और चिंता से मुक्त करती है। यह उसे जीवन के संघर्षों का सामना करने के लिए मानसिक शक्ति प्रदान करती है।

सकारात्मक सोच का विकास:

श्लोक के अनुसार, प्रसन्नचित्त व्यक्ति की बुद्धि स्थिर रहती है। इससे वह जीवन में सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाता है।

जीवन में उद्देश्य का निर्धारण:

भगवद्कृपा से व्यक्ति अपने जीवन के वास्तविक उद्देश्य को समझ पाता है। यह उसे भौतिक सुखों से ऊपर उठाकर आत्मा की शांति की ओर ले जाता है।

भागवत गीता अध्याय 2 श्लोक 2.65 (Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 65) का आध्यात्मिक संदेश

श्लोक 2.65 का मुख्य संदेश यह है कि भगवान की कृपा से व्यक्ति को सभी प्रकार के दुखों से मुक्ति और स्थायी शांति प्राप्त होती है। यह श्लोक हमें बताता है कि भक्ति, समर्पण, और ईश्वर के प्रति प्रेम के माध्यम से हम अपनी आत्मा को शुद्ध कर सकते हैं।

निष्कर्ष

भगवद्गीता का यह श्लोक जीवन के गूढ़ सत्य को उजागर करता है। यह सिखाता है कि भगवान की कृपा से मनुष्य न केवल अपने दुखों से मुक्त होता है, बल्कि उसे सच्ची प्रसन्नता और शांति का अनुभव होता है। आज के समय में, जब हर व्यक्ति तनाव और अस्थिरता से जूझ रहा है, गीता का यह संदेश हमें प्रेरित करता है कि हम भगवान की शरण में जाएं और अपने जीवन को सार्थक बनाएं।

इस प्रकार श्लोक 2.65 हमें सिखाता है कि जीवन का सर्वोच्च लक्ष्य ईश्वर की कृपा प्राप्त करना और आत्मा की शांति प्राप्त करना है। यह श्लोक हमें भक्ति और समर्पण का महत्व समझाता है और जीवन को एक नई दिशा प्रदान करता है।

Resources : श्रीमद्भागवत गीता यथारूप – बक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद, गीता प्रेस

अध्याय 2 (Chapter 2)

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