श्रीमद् भागवत गीता अध्याय 2 श्लोक 63 (Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 63 in Hindi): श्रीमद्भगवद्गीता, जो हिंदू धर्म का एक अत्यंत महत्वपूर्ण ग्रंथ है, जीवन के विभिन्न पहलुओं पर गहन दृष्टिकोण प्रस्तुत करती है। इसमें भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जो ज्ञान दिया, वह न केवल आध्यात्मिक मार्गदर्शन है, बल्कि व्यवहारिक जीवन के लिए भी अत्यंत प्रासंगिक है। भागवत गीता अध्याय 2 श्लोक 2.63 (Bhagavad Gita Chapter 2 Shloka 63) में, भगवान श्रीकृष्ण ने क्रोध और उसके दुष्प्रभावों का विस्तार से वर्णन किया है। यह श्लोक हमें सिखाता है कि क्रोध एक ऐसी नकारात्मक भावना है, जो मनुष्य को विनाश की ओर ले जाती है।
श्रीमद् भागवत गीता अध्याय 2 श्लोक 63 (Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 63)
श्लोक 2 . 63
Bhagavad Gita Chapter 2 Verse-Shloka 63
क्रोधाद्भवति सम्मोहः सम्मोहात्स्मृतिविभ्रमः |
स्मृतिभ्रंशाद्बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति || ६३ ||
गीता अध्याय 2 श्लोक 63 अर्थ सहित (Gita Chapter 2 Verse 63 in Hindi with meaning)

भागवत गीता अध्याय 2 श्लोक 2.63: अर्थ और व्याख्या
श्लोक:
क्रोधाद्भवति सम्मोहः सम्मोहात्स्मृतिविभ्रमः।
स्मृतिभ्रंशाद्बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति।।
अर्थ:
- क्रोधाद् भवति सम्मोहः – क्रोध से पूर्ण मोह उत्पन्न होता है।
- सम्मोहात् स्मृतिविभ्रमः – मोह से स्मरणशक्ति भ्रमित हो जाती है।
- स्मृतिभ्रंशात् बुद्धिनाशः – स्मरणशक्ति के भ्रम से बुद्धि का नाश होता है।
- बुद्धिनाशात् प्रणश्यति – बुद्धि नष्ट होने से मनुष्य का पतन हो जाता है।
क्रोध से व्यक्ति पूरी तरह मोहग्रस्त हो जाता है, जिससे उसकी स्मरणशक्ति विचलित हो जाती है। जब स्मरणशक्ति भ्रमित होती है, तो बुद्धि का नाश होने लगता है, और बुद्धि नष्ट होने पर मनुष्य फिर से संसार के गहरे दलदल में गिर जाता है।
भावार्थ
इस श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण स्पष्ट करते हैं कि क्रोध से मनुष्य का पतन कैसे होता है। क्रोध मन की शांति को नष्ट करता है और उसे मोह में डाल देता है। यह मोह व्यक्ति की स्मरणशक्ति को भ्रमित कर देता है, जिससे वह अच्छे और बुरे में भेद करने की क्षमता खो देता है। जब स्मरणशक्ति नष्ट होती है, तो बुद्धि कमजोर हो जाती है। बुद्धि के नष्ट होने पर मनुष्य गलत निर्णय लेता है, और यही निर्णय उसके पतन का कारण बनते हैं।
क्रोध के दुष्प्रभाव: विस्तार से समझें
- सम्मोह (पूर्ण मोह):
क्रोध व्यक्ति के मन को अशांत करता है और उसे मोह से भर देता है। यह मोह उसकी मानसिक स्थिरता को नष्ट कर देता है, जिससे वह वस्तुस्थिति का सही आकलन नहीं कर पाता। - स्मृतिविभ्रम (स्मरणशक्ति का भ्रम):
मोह में फंसे मनुष्य की स्मरणशक्ति कमजोर हो जाती है। उसे यह याद नहीं रहता कि क्या सही है और क्या गलत। वह अपने पूर्व अनुभवों और ज्ञान का सही उपयोग नहीं कर पाता। - बुद्धिनाश (बुद्धि का विनाश):
जब स्मरणशक्ति भ्रमित हो जाती है, तो व्यक्ति की बुद्धि सही और गलत का निर्णय लेने में असमर्थ हो जाती है। यह स्थिति उसके पतन का मार्ग प्रशस्त करती है। - प्रणश्यति (विनाश):
बुद्धि के नष्ट होने के बाद, मनुष्य अधोगति की ओर बढ़ता है। वह अपने जीवन के मूल उद्देश्य और आत्मा के कल्याण को भूल जाता है।
तात्पर्य: जीवन में संयम और संतुलन का महत्व
श्रील रूप गोस्वामी ने अपने ग्रंथ भक्तिरसामृत सिंधु में वैराग्य का महत्व बताया है। उन्होंने कहा कि हर वस्तु का सही उपयोग करना ही सच्चा वैराग्य है। इसी सिद्धांत को गीता के इस श्लोक से जोड़ा जा सकता है।
- जो व्यक्ति अपने क्रोध पर नियंत्रण नहीं रखता, वह जीवन में न केवल असफल होता है, बल्कि आध्यात्मिक पतन का भी शिकार होता है।
- एक भक्त जानता है कि हर वस्तु को भगवान की सेवा में उपयोग करना चाहिए, जबकि क्रोधी व्यक्ति अपनी भावनाओं में उलझकर जीवन की सच्ची महत्ता को खो देता है।
- भगवान श्रीकृष्ण ने स्पष्ट किया है कि संयम और संतुलन ही जीवन की सच्ची सफलता की कुंजी है।
प्रासंगिक उदाहरण: भागवत गीता अध्याय 2 श्लोक 2.63
1. अचानक गुस्सा और गलत निर्णय
एक व्यक्ति अपने सहकर्मी पर गुस्सा करता है और बिना सोचे-समझे उसे अपमानित कर देता है। बाद में उसे एहसास होता है कि सहकर्मी की गलती नहीं थी। क्रोध के कारण उसकी बुद्धि क्षीण हो गई और उसने ऐसा निर्णय लिया, जिससे दोनों के रिश्ते खराब हो गए।
2. परिवार में झगड़ा
परिवार में एक विवाद के दौरान, माता-पिता अपने बच्चों पर क्रोधित होकर कठोर शब्द बोलते हैं। यह क्रोध बच्चों को मानसिक रूप से आहत करता है, और बाद में माता-पिता को पछतावा होता है। क्रोध ने उनकी स्मरणशक्ति और बुद्धि को प्रभावित कर दिया, जिससे वे रिश्तों को संभालने में असफल रहे।
3. ड्राइवर का ट्रैफिक में क्रोध
ट्रैफिक जाम में फंसे एक ड्राइवर ने अपने गुस्से में दूसरे वाहन चालक के साथ झगड़ा शुरू कर दिया। उसकी उत्तेजना के कारण वह सड़क पर लापरवाह हो गया और दुर्घटना का शिकार हो गया। यह उदाहरण दर्शाता है कि क्रोध से व्यक्ति का विवेक खो जाता है और उसके निर्णय उसे नुकसान पहुंचाते हैं।
4. छात्र का परीक्षा के समय क्रोध
एक छात्र परीक्षा में कठिन प्रश्न देखकर गुस्से में आ जाता है और अपना धैर्य खो बैठता है। वह क्रोध में उत्तर लिखने की बजाय समय बर्बाद करता है और परीक्षा में असफल हो जाता है। यह दिखाता है कि क्रोध निर्णय लेने की क्षमता को कमजोर करता है और परिणामस्वरूप असफलता का कारण बनता है।
5. दोस्तों के बीच तकरार
दो दोस्त मामूली बात पर बहस करते हैं। उनमें से एक क्रोध में आकर दोस्ती तोड़ने की बात कह देता है। कुछ समय बाद, जब क्रोध शांत होता है, तो उसे अपने शब्दों पर पछतावा होता है, लेकिन तब तक उनका रिश्ता खराब हो चुका होता है।
6. कार्यस्थल पर प्रबंधक का क्रोध
एक प्रबंधक अपने कर्मचारी की छोटी सी गलती पर गुस्सा हो जाता है और सार्वजनिक रूप से उसे डांट देता है। इससे कर्मचारी का आत्मविश्वास टूट जाता है, और टीम का मनोबल गिर जाता है। क्रोध ने प्रबंधक की बुद्धि और नेतृत्व क्षमता को कमजोर कर दिया, जिससे कार्यस्थल का माहौल नकारात्मक हो गया।
7. क्रोध में की गई खरीदारी
एक ग्राहक किसी विक्रेता से नाराज होकर बिना सोचे-समझे दूसरी जगह से अधिक कीमत पर सामान खरीद लेता है। बाद में उसे एहसास होता है कि उसने अपनी भावनाओं के आवेग में गलत फैसला लिया। यह क्रोध से विवेक की हानि का उदाहरण है।
8. खेल के दौरान खिलाड़ियों का गुस्सा
खेल के दौरान एक खिलाड़ी विरोधी टीम पर गुस्सा करता है और नियम तोड़ने का प्रयास करता है। इस व्यवहार के कारण उसे टीम से बाहर कर दिया जाता है, और उसकी टीम हार जाती है। क्रोध ने उसकी बुद्धि को भ्रमित कर दिया, जिससे उसने खेल भावना को खो दिया।
9. रिश्ते में कड़वाहट
पति-पत्नी के बीच एक छोटे से विवाद में दोनों क्रोधित होकर एक-दूसरे को कठोर शब्द कह देते हैं। बाद में, वे पछताते हैं, लेकिन उनके रिश्ते में खटास आ जाती है। यह दिखाता है कि क्रोध कैसे रिश्तों को नुकसान पहुंचाता है।
10. शिक्षक का क्रोध
एक शिक्षक गुस्से में छात्र को डांटते समय कुछ ऐसा कह देता है, जिससे छात्र हतोत्साहित हो जाता है और पढ़ाई छोड़ने का विचार करता है। यह दर्शाता है कि क्रोध कैसे दूसरों पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है।
सार:
ऊपर दिए गए उदाहरण भागवत गीता अध्याय 2 श्लोक 2.63 के महत्व को स्पष्ट करते हैं। ये बताते हैं कि क्रोध हमारे विवेक और बुद्धि को कमजोर करके हमें जीवन में गलत फैसले लेने की ओर प्रेरित करता है। संयम और आत्म-नियंत्रण का अभ्यास करके ही हम इन परिस्थितियों से बच सकते हैं।
क्रोध को नियंत्रित करने के उपाय
- ध्यान और योग का अभ्यास करें:
ध्यान और योग मन को शांत रखते हैं और क्रोध को नियंत्रित करने में सहायक होते हैं। - भावनाओं को समझें:
जब भी क्रोध आए, पहले अपने मन को शांत करें और सोचें कि यह क्रोध क्यों उत्पन्न हुआ। - सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाएं:
हर परिस्थिति में सकारात्मकता खोजें। यह आपको भावनाओं पर नियंत्रण रखने में मदद करेगा। - आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करें:
गीता जैसे ग्रंथों का अध्ययन करें, जो जीवन में शांति और संतुलन बनाए रखने का मार्ग दिखाते हैं। - प्रसन्नचित्त रहें:
छोटी-छोटी बातों पर ध्यान न देकर बड़े उद्देश्यों पर फोकस करें।
निष्कर्ष
श्रीमद्भगवद्गीता का श्लोक 2.63 हमें सिखाता है कि क्रोध केवल विनाश का कारण बनता है। यह न केवल हमारी मानसिक शांति को भंग करता है, बल्कि हमारे निर्णय लेने की क्षमता को भी प्रभावित करता है। जीवन में संयम, धैर्य और संतुलन बनाए रखना अत्यंत आवश्यक है।
क्रोध को नियंत्रित कर, हम न केवल अपने जीवन को बेहतर बना सकते हैं, बल्कि अपने आत्मिक विकास की ओर भी अग्रसर हो सकते हैं। भगवान श्रीकृष्ण का यह उपदेश हमें सिखाता है कि जीवन की हर परिस्थिति में सकारात्मकता और शांति बनाए रखना ही सच्ची सफलता है।
Resources : श्रीमद्भागवत गीता यथारूप – बक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद, गीता प्रेस