You are currently viewing Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 10 Shloka 10 | गीता अध्याय 2 श्लोक 10 अर्थ सहित | तमुवाच हृषीकेशः प्रहसन्निव…..

Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 10 Shloka 10 | गीता अध्याय 2 श्लोक 10 अर्थ सहित | तमुवाच हृषीकेशः प्रहसन्निव…..

श्रीमद् भागवत गीता अध्याय 2 श्लोक 10 (Bhagwat Geeta adhyay 2 shlok 10 in Hindi): महाभारत के युद्ध में अर्जुन और श्रीकृष्ण का संवाद एक ऐतिहासिक क्षण था। दोनों सेनाओं के बीच खड़े होकर कृष्ण ने अर्जुन को ज्ञान और धर्म की शिक्षा दी। श्लोक 2.10(Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 10) में इसी महत्वपूर्ण क्षण का वर्णन मिलता है, जिसमें श्रीकृष्ण ने अर्जुन से मुस्कुराते हुए बातें कीं।

श्रीमद् भागवत गीता अध्याय 2 श्लोक 10 (Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 10)

गीता अध्याय 2 श्लोक 10 अर्थ सहित (Gita Chapter 2 Verse 10 in Hindi with meaning)

गीता अध्याय 2 श्लोक 10 अर्थ सहित (Gita Chapter 2 Verse 10 in Hindi with meaning) | Festivalhindu.com
Gita Chapter 2 Verse 10 in Hindi

श्लोक का अर्थ

श्लोक:

तमुवाच हृषीकेशः प्रहसन्निव भारत
सेन्योरुभ्योर्मध्ये विषीदन्तमिदं वचः || १० ||

अनुवाद: हे भरतवंशी (धृतराष्ट्र)! उस समय दोनों सेनाओं के मध्य शोकमग्न अर्जुन से कृष्ण ने मानो हँसते हुए ये शब्द कहे।

भावार्थ

तम् – उससे; उवाच – कहा; हृषीकेश – इन्द्रियों के स्वामी कृष्ण ने; प्रहसन् – हँसते हुए; इव – मानो; भारत – हे भरतवंशी धृतराष्ट्र; सेनयोः – सेनाओं के; उभयोः – दोनों पक्षों की; मध्ये – बीच में; विषीदन्तम् – शोकमग्न; इदम् – यह (निम्नलिखित); वचः – शब्द |

इस श्लोक में भगवान कृष्ण, जो इन्द्रियों के स्वामी हैं, अर्जुन से हँसते हुए बात करते हैं। यह वार्ता दोनों सेनाओं के बीच में हो रही थी, जहाँ अर्जुन शोकमग्न थे। कृष्ण का हँसना इस बात का प्रतीक है कि वे अर्जुन को उनके शोक से बाहर निकालने का प्रयास कर रहे थे।

तात्पर्य

भगवद्गीता के इस श्लोक में दो घनिष्ट मित्रों अर्थात् हृषीकेश (कृष्ण) और गुडाकेश (अर्जुन) के बीच की वार्ता का वर्णन है। मित्र के रूप में दोनों का पद समान था, किन्तु इनमें से एक स्वेच्छा से दूसरे का शिष्य बन गया। कृष्ण हँस रहे थे क्योंकि उनका मित्र अब उनका शिष्य बन गया था। सबों के स्वामी होने के कारण वे सदैव श्रेष्ठ पद पर रहते हैं तो भी भगवान् अपने भक्त के लिए सखा, पुत्र या प्रेमी बनना स्वीकार करते हैं।

किन्तु जब उन्हें गुरु रूप में अंगीकार कर लिया गया तो उन्होंने तुरन्त गुरु की भूमिका निभाने के लिए शिष्य से गुरु की भाँति गम्भीरतापूर्वक बातें कीं जैसा कि अपेक्षित है। ऐसा प्रतीत होता है कि गुरु और शिष्य की यह वार्ता दोनों सेनाओं की उपस्थिति में हुई जिससे सारे लोग लाभान्वित हुए। अतः भगवद्गीता का संवाद किसी एक व्यक्ति, समाज या जाति के लिए नहीं अपितु सबों के लिए है और उसे सुनने के लिए शत्रु या मित्र समान रूप से अधिकारी हैं।

मुख्य बिंदु

  • कृष्ण और अर्जुन की मित्रता: हृषीकेश (कृष्ण) और गुडाकेश (अर्जुन) के बीच की मित्रता और शिष्यता का वर्णन।
  • कृष्ण का हँसना: कृष्ण का हँसना इस बात का प्रतीक है कि उनका मित्र अब उनका शिष्य बन गया था।
  • गुरु की भूमिका: कृष्ण ने गुरु की भूमिका निभाते हुए अर्जुन को गम्भीरतापूर्वक मार्गदर्शन दिया।
  • सार्वजनिक वार्ता: यह वार्ता दोनों सेनाओं की उपस्थिति में हुई, जिससे सभी लोग लाभान्वित हुए।
  • सर्वजन हिताय: भगवद्गीता का संवाद किसी एक व्यक्ति, समाज या जाति के लिए नहीं, अपितु सबों के लिए है।

विस्तृत विश्लेषण

भगवद्गीता का यह श्लोक हमें यह सिखाता है कि जीवन में जब भी हम शोकमग्न हों, हमें सही मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है। कृष्ण और अर्जुन की यह वार्ता हमें यह भी सिखाती है कि सच्चे मित्र और गुरु का महत्व क्या होता है। भगवद्गीता का संदेश सभी के लिए है और इसे सुनने के लिए शत्रु या मित्र समान रूप से अधिकारी हैं।

कृष्ण और अर्जुन की मित्रता का यह प्रसंग हमें यह भी सिखाता है कि जीवन में सच्चे मित्र का होना कितना महत्वपूर्ण है। एक सच्चा मित्र न केवल हमारे सुख-दुःख में साथ देता है, बल्कि हमें सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित भी करता है। कृष्ण ने अर्जुन को उनके कर्तव्यों का स्मरण कराया और उन्हें धर्म के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया।

कृष्ण का हँसना इस बात का प्रतीक है कि वे अर्जुन को उनके शोक से बाहर निकालने का प्रयास कर रहे थे। यह हँसी एक मित्र की हँसी थी, जो अपने मित्र को शोकमग्न देखकर उसे हँसाने का प्रयास कर रहा था। यह हँसी एक गुरु की हँसी भी थी, जो अपने शिष्य को सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित कर रहा था।

निष्कर्ष

भगवद्गीता का यह श्लोक हमें यह सिखाता है कि जीवन में जब भी हम शोकमग्न हों, हमें सही मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है। कृष्ण और अर्जुन की यह वार्ता हमें यह भी सिखाती है कि सच्चे मित्र और गुरु का महत्व क्या होता है। भगवद्गीता का संदेश सभी के लिए है और इसे सुनने के लिए शत्रु या मित्र समान रूप से अधिकारी हैं। इस श्लोक का संदेश सार्वभौमिक है और यह हमें यह सिखाता है कि जीवन में सही मार्गदर्शन और सच्चे मित्र का होना कितना महत्वपूर्ण है।

Resources : श्रीमद्भागवत गीता यथारूप – बक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद, गीता प्रेस

अध्याय 2 (Chapter 2)

123456
789101112
131415161718
192021222324
252627282930
313233343536
373839404142
434445464748
495051525354
555657585960
616263646566
676869707172

Leave a Reply