श्रीमद् भागवत गीता अध्याय 2 श्लोक 25 (Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 25 in Hindi): भगवद गीता का श्लोक 2.25(Bhagwat Geeta Chapter 2 Shloka 25) आत्मा के शाश्वत और अद्वितीय स्वरूप का विवरण प्रस्तुत करता है। इस श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को आत्मा की विशेषताओं के बारे में विस्तार से बताया है। अर्जुन को कुरुक्षेत्र के युद्धभूमि में अपने प्रियजनों की मृत्यु का शोक हो रहा था, और वह युद्ध करने में संकोच कर रहा था। तब भगवान श्रीकृष्ण ने उसे आत्मा के अदृश्य, अकल्पनीय और अपरिवर्तनीय स्वरूप की शिक्षा दी, जिससे वह शोक और मोह से मुक्त हो सके।
श्रीमद् भागवत गीता अध्याय 2 श्लोक 25 (Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 25)
गीता अध्याय 2 श्लोक 25 अर्थ सहित (Gita Chapter 2 Verse 25 in Hindi with meaning)
श्लोक 2.25 का शाब्दिक अनुवाद
अव्यक्तोऽयमचिन्त्योऽयमविकार्योऽयमुच्यते |
तस्मादेवं विदित्वैनं नानुशोचितुमर्हसि || २५ ||
भावार्थ:
अव्यक्तः – अदृश्य; अयम् – यह आत्मा; अचिन्त्यः – अकल्पनीय; अयम् – यह आत्मा; अविकार्यः – अपरिवर्तित; अयम् – यह आत्मा; उच्यते – कहलाता है; तस्मात् – अतः; एवम् – इस प्रकार; विदित्वा – अच्छी तरह जानकर; एनम् – इस आत्मा के विषयमें; न – नहीं; अनुशोचितुम् – शोक करने के लिए; अर्हसि – योग्य हो |
यह आत्मा अव्यक्त, अकल्पनीय और अविकार्य कहा जाता है। इसलिए, इस सत्य को जानकर तुम्हें शरीर के नाश पर शोक नहीं करना चाहिए।
श्लोक का गहन विश्लेषण
श्रीकृष्ण अर्जुन को यह समझाते हैं कि आत्मा न तो देखी जा सकती है, न ही उसे समझने के लिए किसी भी भौतिक या वैज्ञानिक साधन का उपयोग किया जा सकता है। आत्मा को केवल ज्ञान और आध्यात्मिकता के माध्यम से ही जाना जा सकता है। इस श्लोक का मुख्य उद्देश्य अर्जुन को समझाना था कि शरीर नाशवान है, लेकिन आत्मा अजर-अमर है। इसलिए हमें किसी के शरीर के नाश से दुखी नहीं होना चाहिए।
आत्मा की अद्वितीय विशेषताएँ
श्लोक 2.25 में आत्मा की तीन मुख्य विशेषताओं का उल्लेख किया गया है:
1. अव्यक्त (अदृश्य)
आत्मा अदृश्य है। इसे किसी भी भौतिक दृष्टि से नहीं देखा जा सकता। यह इतनी सूक्ष्म और नितांत अदृश्य है कि कोई भी वैज्ञानिक उपकरण या प्रयोग इसे नहीं पहचान सकते। आत्मा का स्वरूप ऐसा है जिसे हमारी इंद्रियाँ भी ग्रहण नहीं कर सकतीं। यह अदृश्यता हमें यह सिखाती है कि आत्मा को केवल भौतिक साधनों से नहीं समझा जा सकता, बल्कि उसे आध्यात्मिक दृष्टिकोण से ही समझा जा सकता है।
2. अचिन्त्य (अकल्पनीय)
आत्मा अचिन्त्य है, जिसका अर्थ है कि इसे मानव मस्तिष्क से पूरी तरह से समझना संभव नहीं है। आत्मा का अस्तित्व और स्वरूप हमारे व्यावहारिक ज्ञान से परे है। हम कई चीजों को केवल मान्यताओं या प्राचीन ग्रंथों के आधार पर मानते हैं, जिनमें आत्मा का अस्तित्व भी शामिल है। जैसे कि किसी बच्चे के पिता के अस्तित्व को उसकी माँ के कहने पर ही स्वीकार किया जाता है, वैसे ही आत्मा के अस्तित्व को समझने के लिए हमें वेदों और श्रुतियों का सहारा लेना पड़ता है।
3. अविकार्य (अपरिवर्तनीय)
आत्मा अपरिवर्तनीय है। इसका मतलब है कि आत्मा में किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं होता, चाहे शरीर का नाश हो जाए या नई देह धारण की जाए। शरीर नाशवान है, लेकिन आत्मा शाश्वत और अचल है। इसे किसी प्रकार का परिवर्तन प्रभावित नहीं कर सकता। आत्मा न तो जन्म लेती है, न ही मरती है। यह एक नित्य तत्व है जो सदैव एक जैसा रहता है। यही कारण है कि श्रीकृष्ण अर्जुन को आत्मा के विषय में बताते हुए कहते हैं कि उसे किसी भी प्रकार का शोक नहीं करना चाहिए।
आत्मा का शाश्वत और अविनाशी स्वरूप
श्रीकृष्ण के इस उपदेश से हमें आत्मा के अनंत और स्थायी स्वरूप को समझने का एक मार्ग मिलता है। आत्मा न तो भौतिक पदार्थों से प्रभावित होती है और न ही यह किसी भौतिक नियम के अधीन होती है। यह शाश्वत, अपरिवर्तनीय और अकल्पनीय है। आत्मा की तुलना परमात्मा से की जा सकती है, परंतु दोनों में अंतर है। परमात्मा अनंत है, जबकि आत्मा अणु-रूप में होती है। आत्मा के इस सूक्ष्म रूप के कारण इसे परमात्मा के समान नहीं कहा जा सकता, परंतु यह अविनाशी और अपरिवर्तनीय होती है।
आत्मा को समझने का उपाय
श्रीकृष्ण इस श्लोक के माध्यम से हमें यह भी बताते हैं कि आत्मा को भौतिक साधनों से नहीं समझा जा सकता। आत्मा का अस्तित्व हमें केवल वेदों और आध्यात्मिक ज्ञान के माध्यम से ही ज्ञात हो सकता है। आत्मा को लेकर किसी भी प्रकार का संदेह नहीं होना चाहिए, क्योंकि यह सत्य वेदों में प्रमाणित है। जिस प्रकार किसी व्यक्ति को अपने पिता के अस्तित्व का प्रमाण उसकी माँ देती है, वैसे ही आत्मा का सत्य वेदों द्वारा प्रमाणित किया गया है।
निष्कर्ष
श्लोक 2.25 हमें आत्मा के शाश्वत और अविनाशी स्वरूप की गहन जानकारी देता है। यह हमें बताता है कि आत्मा अदृश्य, अकल्पनीय और अपरिवर्तनीय है। इस श्लोक का मुख्य संदेश यह है कि आत्मा को समझने के लिए हमें वेदों और श्रुतियों का सहारा लेना चाहिए, और शरीर के नाश पर शोक नहीं करना चाहिए। आत्मा का यह स्थायी स्वरूप हमें जीवन के कठिनाइयों और मृत्यु से जुड़े शोक से उबरने की प्रेरणा देता है। अतः, आत्मा के इस सत्य को समझकर हमें शोक और मोह से ऊपर उठना चाहिए।
Resources : श्रीमद्भागवत गीता यथारूप – बक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद, गीता प्रेस