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Bhagwat Geeta Chapter 2 Verse-Shloka 11 – गीता अध्याय 2 श्लोक 11 अर्थ सहित – अशोच्यानन्वशोचस्त्वं प्रज्ञावादांश्र्च…..

श्रीमद् भागवत गीता अध्याय 2 श्लोक 7 (Bhagwat Gita adhyay 2 sloka 11 in Hindi): श्रीमद्भगवद्गीता का श्लोक 2.11(Bhagwat geeta Chapter 2 Verse 11) हमें जीवन के गहरे सत्यों के बारे में समझाने का प्रयास करता है। इस श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को जीवन और मृत्यु के वास्तविक अर्थ के बारे में सिखा रहे हैं। यह श्लोक हमारे जीवन में शोक और उसकी वास्तविकता के बारे में एक महत्वपूर्ण संदेश देता है।

श्रीमद् भागवत गीता अध्याय 2 श्लोक 11 (Bhagwat Geeta Chapter 2 Verse 11)

गीता अध्याय 2 श्लोक 11 अर्थ सहित (Gita Chapter 2 Verse 11 in Hindi with meaning)

गीता अध्याय 2 श्लोक 11 अर्थ सहित (Gita Chapter 2 Verse 11 in Hindi with meaning) | Festivalhindu.com
Bhagwat Geeta Chapter 2 Verse 11 in Hindi

श्लोक:

श्रीभगवानुवाच
अशोच्यानन्वशोचस्त्वं प्रज्ञावादांश्र्च भाषसे |
गतासूनगतासूंश्र्च नानुशोचन्ति पण्डिताः || ११ ||


अनुवाद:

श्रीभगवान् उवाच – श्रीभगवान् ने कहा; अशोच्यान् – जो शोक योग्य नहीं है; अन्वशोचः – शोक करते हो; त्वम् – तुम; प्रज्ञावादान् – पाण्डित्यपूर्ण बातें; च – भी; भाषसे – कहते हो; गत – चले गये, रहित; असून् – प्राण; अगत – नहीं गये; असून् – प्राण; च – भी; न – कभी नहीं; अनुशोचन्ति – शोक करते हैं; पण्डिताः – विद्वान लोग |

श्री भगवान् ने कहा – तुम पाण्डित्यपूर्ण वचन कहते हुए उनके लिए शोक कर रहे हो जो शोक करने योग्य नहीं है। जो विद्वान होते हैं, वे न तो जीवित के लिए, न ही मृत के लिए शोक करते हैं।

भावार्थ:

श्रीभगवान ने अर्जुन को समझाते हुए कहा कि जो विद्वान होते हैं, वे न तो जीवित के लिए और न ही मृत के लिए शोक करते हैं। यह शारीर नश्वर है और आत्मा अमर है। इसलिए, शोक का कोई कारण नहीं है।

तात्पर्य:

भगवान ने अर्जुन को अप्रत्यक्ष रूप से मूर्ख कहकर डांटा और कहा कि जो विद्वान होता है, वह शरीर और आत्मा के अंतर को जानता है और किसी भी अवस्था में शरीर के लिए शोक नहीं करता। अर्जुन का तर्क था कि धर्म को राजनीति से अधिक महत्व मिलना चाहिए, लेकिन उसे यह ज्ञात नहीं था कि पदार्थ, आत्मा और परमेश्वर का ज्ञान अधिक महत्वपूर्ण है।


विद्वता और शोक: एक विरोधाभास

भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं, “तुम पाण्डित्यपूर्ण बातें कर रहे हो, परंतु जिन चीज़ों के लिए तुम शोक कर रहे हो, वे शोक के योग्य नहीं हैं।”

श्रीकृष्ण का सन्देश:

  • शरीर और आत्मा का भेद: विद्वान व्यक्ति वह है जो शरीर और आत्मा के अंतर को जानता है। शरीर नश्वर है, जबकि आत्मा अमर और अटल है।
  • शोक का महत्व: यदि कोई व्यक्ति इस भेद को समझता है, तो उसे न जीवित और न ही मृत के लिए शोक करना चाहिए।

भगवान का गुरु रूप

श्रीकृष्ण ने इस श्लोक में अर्जुन को अप्रत्यक्ष रूप से मूर्ख कह कर डाँटा। उन्होंने अर्जुन को यह समझाया कि जो व्यक्ति शरीर और आत्मा के बारे में नहीं जानता, वह असल में विद्वान नहीं हो सकता।

मुख्य बिंदु:

  • ज्ञान का महत्व: श्रीकृष्ण बताते हैं कि ज्ञान का अर्थ है पदार्थ, आत्मा और परमेश्वर को जानना। यह ज्ञान धर्म और राजनीति से भी अधिक महत्वपूर्ण है।
  • अर्जुन की भूल: अर्जुन शारीरिक जीवन और मृत्यु पर शोक कर रहा था, जो कि विद्वान के लिए अनुचित है। शरीर नाशवान है, लेकिन आत्मा अनश्वर है।

शोक से मुक्ति: सही दृष्टिकोण अपनाएं

जो व्यक्ति आत्मा और शरीर के अंतर को समझता है, वह जीवन के उतार-चढ़ाव में संतुलित रहता है। ऐसे व्यक्ति के लिए शोक का कोई कारण नहीं होता।

मुख्य धारणाएँ:

  • आत्मज्ञान: सही ज्ञान से शोक का अंत होता है।
  • शरीर का महत्व: शरीर नाशवान है, इसका महत्व आत्मा के सामने तुच्छ है।
  • जीवन के प्रति दृष्टिकोण: आत्मा को समझने वाला व्यक्ति जीवन में शांति और स्थिरता पा सकता है।

निष्कर्ष:

भगवद्गीता के इस श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जो शिक्षा दी, वह हर व्यक्ति के लिए महत्वपूर्ण है। हमें जीवन के नश्वर पहलुओं से ऊपर उठकर आत्मा के अमरत्व को समझना चाहिए। यही सच्ची विद्वता है, और यही शोक से मुक्ति का मार्ग है।

Resources : श्रीमद्भागवत गीता यथारूप – बक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद, गीता प्रेस

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