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Bhagavad Gita Chapter 2 Verse-Shloka 34 – गीता अध्याय 2 श्लोक 34 अर्थ सहित – अकीर्तिं चापि भूतानि कथयिष्यन्ति…..

श्रीमद् भागवत गीता अध्याय 2 श्लोक 34 (Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 34 in Hindi): श्रीमद्भगवद्गीता के श्लोकों में जीवन के अनेक रहस्यों और गूढ़ सिद्धांतों का समावेश है, जो आज भी हमें प्रेरणा देते हैं। गीता के अध्याय 2, श्लोक 34(Bhagavad Gita Chapter 2 Shloka 34) में भगवान कृष्ण अर्जुन को जीवन और सम्मान के गहरे मर्म का ज्ञान दे रहे हैं। इस श्लोक में भगवान कृष्ण ने अर्जुन को यह समझाने का प्रयास किया है कि एक सम्माननीय व्यक्ति के लिए अपयश मृत्यु से भी अधिक पीड़ादायक होता है। भगवान कृष्ण अर्जुन के माध्यम से हम सभी को यह सिखाते हैं कि एक सच्चे योद्धा का धर्म केवल युद्ध करना ही नहीं है, बल्कि अपने सम्मान और कर्तव्य की रक्षा करना भी है।

श्रीमद् भागवत गीता अध्याय 2 श्लोक 34 (Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 34)

गीता अध्याय 2 श्लोक 34 अर्थ सहित (Gita Chapter 2 Verse 34 in Hindi with meaning)

गीता अध्याय 2 श्लोक 34 अर्थ सहित (Gita Chapter 2 Verse 34 in Hindi with meaning) | Festivalhindu.com
Gita Chapter 2 Verse 34

श्लोक 2.34 और इसका भावार्थ

श्लोक:


अकीर्तिं चापि भूतानि कथयिष्यन्ति तेऽव्ययाम् |
सम्भावितस्य चाकीर्तिर्मरणादतिरिच्यते || ३४ ||

शब्दार्थ:

  • अकीर्तिम् – अपयश
  • – और
  • अपि – इसके अतिरिक्त
  • भूतानि – सभी लोग
  • कथयिष्यन्ति – कहेंगे
  • ते – तुम्हारे
  • अव्ययाम् – अपयश, अपकीर्ति
  • मरणात् – मृत्यु से
  • अतिरिच्यते – अधिक होती है

भावार्थ:


“लोग सदैव तुम्हारे अपयश का वर्णन करेंगे और सम्मानित व्यक्ति के लिए अपयश तो मृत्यु से भी बढ़कर है।”

इस श्लोक में भगवान कृष्ण कहते हैं कि संसार के लोग किसी व्यक्ति के कर्मों का आकलन यश और अपयश के आधार पर करते हैं। यदि किसी व्यक्ति ने जीवन में सम्मान अर्जित किया है, तो उसे अपनी प्रतिष्ठा का हमेशा ध्यान रखना चाहिए। अपयश प्राप्त करना एक सम्माननीय व्यक्ति के लिए अत्यंत पीड़ादायक और मृत्यु से भी अधिक कष्टदायक होता है।


श्लोक का तात्पर्य और इसकी गहनता

महाभारत के युद्ध के प्रारंभ में अर्जुन युद्ध करने के लिए तैयार थे, लेकिन जैसे ही उन्होंने अपने सगे-संबंधियों, मित्रों और गुरुजनों को सामने देखा, वे दुविधा में पड़ गए और युद्ध करने से पीछे हटने लगे। ऐसे में भगवान कृष्ण ने उन्हें उनके कर्तव्य का स्मरण कराया। इस श्लोक के माध्यम से भगवान अर्जुन को सिखाते हैं कि युद्ध छोड़ने का उनका निर्णय उन्हें यश की बजाय अपयश का भागी बनाएगा। कृष्ण के अनुसार, अपकीर्ति से बचने के लिए व्यक्ति को अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए, चाहे परिस्थिति कैसी भी क्यों न हो।


भगवान कृष्ण के अर्जुन को दिए गए निर्देश


भगवान कृष्ण ने अर्जुन को समझाने के लिए अनेक तर्क प्रस्तुत किए। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि समाज में यश और अपयश का विशेष महत्व होता है। यदि अर्जुन युद्ध से पीछे हटते हैं, तो उनका सम्मान नष्ट हो जाएगा और लोग उन्हें कायर समझेंगे। कृष्ण यह संदेश दे रहे हैं कि:

  • यदि तुम युद्धभूमि छोड़ते हो, तो तुम्हें कायर माना जाएगा।
  • सम्माननीय व्यक्ति के लिए अपकीर्ति मृत्यु से भी बुरी होती है।
  • अपकीर्ति से बचने के लिए अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए अपने सम्मान की रक्षा करें।

युद्ध से पलायन के बजाय कर्तव्य निभाना जरूरी है


कृष्ण का मानना है कि एक सच्चा योद्धा कभी अपने कर्तव्य से विमुख नहीं होता। युद्ध से पलायन अर्जुन के लिए केवल अपमानजनक ही नहीं होगा, बल्कि उनकी आत्मा को भी पीड़ा देगा। भगवान कृष्ण उन्हें यह समझाते हैं कि सम्मान से जीने के लिए अपने कर्तव्यों को निभाना आवश्यक है, भले ही इसमें कठिनाइयाँ क्यों न आएँ। एक सच्चा योद्धा युद्ध के मैदान में अपने कर्तव्यों को निभाते हुए ही समाज में सम्मानित होता है।


श्लोक 2.34 से प्राप्त मुख्य शिक्षाएं

श्रीमद्भगवद्गीता का यह श्लोक हमें अनेक जीवनोपयोगी शिक्षाएं देता है, जो आज के समय में भी प्रासंगिक हैं। कुछ महत्वपूर्ण शिक्षाएं निम्नलिखित हैं:

  • कर्तव्य से विमुख न हों:
    भगवान कृष्ण के अनुसार, हर व्यक्ति का प्रमुख धर्म अपने कर्तव्यों का पालन करना है। चाहे परिस्थिति कैसी भी हो, हमें अपने कर्तव्यों से कभी भी पीछे नहीं हटना चाहिए।
  • अपयश मृत्यु से भी बुरा:
    एक सम्माननीय व्यक्ति के लिए अपकीर्ति सबसे बड़ी विपत्ति है। बदनामी व्यक्ति के सम्मान को नष्ट कर देती है और उसके लिए मृत्यु से भी अधिक पीड़ादायक हो सकती है।
  • सम्मान और प्रतिष्ठा की रक्षा करें:
    व्यक्ति को अपने सम्मान और प्रतिष्ठा की रक्षा के लिए हर संभव प्रयास करना चाहिए। यदि आवश्यकता पड़े, तो जीवन का त्याग करना भी श्रेयस्कर है।

निष्कर्ष:


श्रीभगवान का यह संदेश केवल अर्जुन के लिए नहीं, बल्कि हम सभी के लिए है। इस श्लोक में जीवन का यह महत्वपूर्ण सिद्धांत समाहित है कि सम्मान और कर्तव्य की रक्षा करना ही सच्चे जीवन का सार है। जब हम अपने कर्तव्यों का पालन करते हैं और सम्मान की रक्षा करते हैं, तभी हम समाज में प्रतिष्ठा प्राप्त कर सकते हैं। अतः यह श्लोक हमें सिखाता है कि अपयश से बचकर यश और सम्मान की रक्षा करना ही एक सच्चे व्यक्ति का धर्म है।

Resources : श्रीमद्भागवत गीता यथारूप – बक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद, गीता प्रेस

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