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Bhagavad Gita Chapter 2 Verse-Shloka 26 – गीता अध्याय 2 श्लोक 26 अर्थ सहित – अथ चैनं नित्यजातं नित्यं…..

श्रीमद् भागवत गीता अध्याय 2 श्लोक 26 (Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 26 in Hindi): भगवद गीता भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता का एक महान ग्रंथ है, जिसमें जीवन, कर्तव्य, आत्मा और ब्रह्मांड के गूढ़ रहस्यों की व्याख्या की गई है। अर्जुन, जो महाभारत के युद्ध में अपने कर्तव्य को लेकर भ्रमित थे, उन्हें भगवान श्रीकृष्ण ने गीता के माध्यम से न केवल युद्ध के कर्तव्य की शिक्षा दी बल्कि आत्मा, जीवन और मृत्यु के बारे में गहन सिद्धांत भी समझाए। गीता के दूसरे अध्याय में, श्लोक 2.26(Bhagwat Geeta Chapter 2 Shloka 26) एक महत्वपूर्ण श्लोक है जिसमें भगवान कृष्ण आत्मा के शाश्वत स्वरूप और मृत्यु के प्रति अर्जुन की चिंता का समाधान करते हैं। इस श्लोक में, भगवान अर्जुन को समझाते हैं कि चाहे वह आत्मा को नित्य जन्म लेने वाला और नित्य मरने वाला माने, फिर भी उसे शोक नहीं करना चाहिए क्योंकि आत्मा का सत्य इससे परे है।

श्रीमद् भागवत गीता अध्याय 2 श्लोक 26 (Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 26)

गीता अध्याय 2 श्लोक 26 अर्थ सहित (Gita Chapter 2 Verse 26 in Hindi with meaning)

गीता अध्याय 2 श्लोक 26 अर्थ सहित (Gita Chapter 2 Verse 26 in Hindi with meaning) | Festivalhindu.com
Gita Chapter 2 Verse 26 in Hindi

श्लोक 2.26 का शाब्दिक अनुवाद

अथ चैनं नित्यजातं नित्यं वा मन्यसे मृतम् |
तथापि त्वं महाबाहो नैनं शोचितुमर्हसि || २६ ||

भावार्थ:


श्लोक 2.26 में भगवान कृष्ण अर्जुन से कहते हैं:

अथ – यदि, फिर भी; च – भी; एनम् – इस आत्मा को; नित्य-जातम् – उत्पन्न होने वाला; नित्यम् – सदैव के लिए; व – अथवा; मन्यसे – तुम ऐसा सोचते हो; मृतम् – मृत; तथा अपि – फिर भी; तवम् – तुम; महा-बाहो – हे शूरवीर; न – कभी नहीं; एनम् – आत्मा के विषय में; शोचितुम् – शोक करने के लिए; अर्हसि – योग्य हो;


किन्तु यदि तुम यह सोचते हो कि आत्मा (अथवा जीवन का लक्षण) सदा जन्म लेता है तथा सदा मरता है तो भी हे महाबाहु! तुम्हारे शोक करने का कोई कारण नहीं है |

इस श्लोक का भावार्थ यह है कि यदि तुम आत्मा को सदा जन्म लेने वाला और सदा मरने वाला मानते हो, तो भी हे महाबाहु, तुम्हें शोक करने की आवश्यकता नहीं है। इस श्लोक का मुख्य संदेश आत्मा की अमरता है। भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को यह समझाना चाहते हैं कि मृत्यु एक भौतिक परिवर्तन है, आत्मा अजर-अमर है, और शोक करना इसलिए अनावश्यक है क्योंकि आत्मा कभी नष्ट नहीं होती।

तात्पर्य:


आत्मा का अस्तित्व और उसकी अमरता भारतीय दार्शनिक चिंतन और वैदिक सिद्धांतों का मूल आधार है। श्रीकृष्ण अर्जुन को यह बताने का प्रयास कर रहे हैं कि आत्मा शाश्वत और नित्य है, जबकि शरीर नश्वर है। यह सिद्धांत गीता के कई श्लोकों में बार-बार दोहराया गया है, लेकिन श्लोक 2.26 में इसका विशेष महत्व है क्योंकि यहाँ भगवान आत्मा के शाश्वत स्वरूप के साथ मृत्यु के भौतिक सिद्धांत का भी स्पष्टीकरण करते हैं।

इस श्लोक में भगवान अर्जुन के शोक का तात्त्विक निराकरण कर रहे हैं। अर्जुन युद्धभूमि में अपने गुरु द्रोणाचार्य, पितामह भीष्म और अन्य प्रियजनों के सामने खड़ा है। वह अपने प्रियजनों की मृत्यु की संभावना से भयभीत और उदास है। इसी कारण, वह युद्ध करने से पीछे हटने की सोचता है। लेकिन श्रीकृष्ण उसे समझाते हैं कि जो कुछ वह देख रहा है वह केवल भौतिक शरीर है। आत्मा अमर है, और इसलिए शोक करने का कोई कारण नहीं है।

दार्शनिक दृष्टिकोण:


आधुनिक भौतिकवादी दार्शनिक और वैज्ञानिक यह मानते हैं कि जीवन केवल भौतिक तत्वों के संयोजन का परिणाम है। उनका मानना है कि जब भौतिक और रासायनिक तत्वों का सही संयोजन होता है, तभी जीवन के लक्षण उत्पन्न होते हैं। इसी दृष्टिकोण से वे आत्मा के स्वतंत्र अस्तित्व को नकारते हैं।

भगवान श्रीकृष्ण का संदेश इन भौतिकवादी सिद्धांतों से पूरी तरह भिन्न है। गीता में श्रीकृष्ण आत्मा को अजर-अमर, नित्य और शाश्वत बताते हैं। भौतिकवादी दर्शन में जीवन और मृत्यु केवल भौतिक परिवर्तनों का परिणाम है, लेकिन गीता में आत्मा का अस्तित्व शरीर के परे है। शरीर का नाश हो सकता है, परंतु आत्मा का कभी नाश नहीं होता।

श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि चाहे तुम यह मानो कि आत्मा हर बार जन्म लेती है और मरती है, तब भी शोक करने का कोई कारण नहीं है क्योंकि यह भौतिक रूपांतरण आत्मा के शाश्वत स्वरूप को प्रभावित नहीं करता। इस सिद्धांत के अनुसार, मृत्यु केवल एक भौतिक घटना है और आत्मा इसे पार कर जाती है। अर्जुन का शोक केवल उसकी अज्ञानता का परिणाम है, और उसे अपने कर्तव्य से विचलित कर रहा है।

कर्मयोग और कर्तव्य:


भगवद गीता का एक अन्य महत्वपूर्ण सिद्धांत कर्मयोग है, जिसमें व्यक्ति को बिना फल की इच्छा के अपने कर्तव्यों का पालन करना सिखाया जाता है। श्लोक 2.26 में श्रीकृष्ण अर्जुन को उनके कर्तव्य की याद दिलाते हैं। अर्जुन एक क्षत्रिय हैं, और उनका कर्तव्य धर्म की रक्षा करना है। चाहे आत्मा के विषय में उनका विश्वास कुछ भी हो, उन्हें अपने कर्तव्यों से विमुख नहीं होना चाहिए।

श्रीकृष्ण अर्जुन को व्यंग्यपूर्ण तरीके से ‘महाबाहु’ कहकर संबोधित करते हैं, यह इंगित करते हुए कि अर्जुन शारीरिक रूप से जितना शक्तिशाली है, उसे मानसिक रूप से भी उतना ही दृढ़ होना चाहिए। उन्हें अपने युद्ध कर्तव्यों से विचलित नहीं होना चाहिए, चाहे उन्हें आत्मा के बारे में कोई भी विचार हो।

मुख्य बिंदु:

  • आत्मा का शाश्वत अस्तित्व: आत्मा अजर-अमर है, और शरीर मात्र एक आवरण है।
  • शोक का कोई कारण नहीं: आत्मा के अमर होने के कारण मृत्यु का भय और शोक अनुचित है।
  • दार्शनिक दृष्टिकोण: भौतिकवादी दृष्टिकोण आत्मा के अस्तित्व को नकारता है, परंतु गीता में आत्मा का अमरत्व सिद्धांतित है।
  • कर्तव्य पालन का महत्व: अर्जुन को अपने शोक को त्यागकर, अपने कर्तव्य का पालन करना चाहिए।
  • भगवान श्रीकृष्ण की शिक्षा: आत्मा की शाश्वतता को समझना और जीवन के भौतिक संबंधों से ऊपर उठकर कर्म करना गीता का मुख्य संदेश है।

निष्कर्ष:


श्लोक 2.26 का महत्व इस बात में है कि यह हमें जीवन और मृत्यु के बारे में एक गहन दृष्टिकोण प्रदान करता है। आत्मा के शाश्वत स्वरूप को समझना और जीवन के भौतिक संबंधों से परे देखने की आवश्यकता है। मृत्यु केवल एक भौतिक घटना है, आत्मा का इससे कोई संबंध नहीं है। श्रीकृष्ण अर्जुन को यह सिखाते हैं कि मृत्यु के भय से कर्तव्य से विमुख नहीं होना चाहिए। आत्मा का सत्य जानकर, हमें जीवन में अपने कर्तव्यों को निष्ठा और धैर्य से निभाना चाहिए। यही गीता का संदेश है, और यही जीवन की सच्चाई है।

Resources : श्रीमद्भागवत गीता यथारूप – बक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद, गीता प्रेस

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