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Bhagavad Gita Chapter 2 Verse-Shloka 13 – गीता अध्याय 2 श्लोक 13 अर्थ सहित – देहिनोSस्मिन्यथा देहे कौमारं…..

श्रीमद् भागवत गीता अध्याय 2 श्लोक 13 (Bhagavad Gita Chapter 2 Shloka 13 in Hindi): भगवद गीता का श्लोक 2.13 (Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 13) जीवन के चक्र और आत्मा के अमरत्व को समझाने वाला एक महत्वपूर्ण श्लोक है। यह श्लोक हमें यह सिखाता है कि जीवन में परिवर्तन स्वाभाविक हैं और आत्मा अमर है। इस श्लोक के माध्यम से भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जीवन और मृत्यु के रहस्यों को समझाया है, जिससे अर्जुन को अपने कर्तव्यों का पालन करने में सहायता मिली।

श्रीमद् भागवत गीता अध्याय 2 श्लोक 13 (Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 13)

गीता अध्याय 2 श्लोक 13 अर्थ सहित (Geeta Chapter 2 Verse 13 in Hindi with meaning)

गीता अध्याय 2 श्लोक 13 अर्थ सहित (Geeta Chapter 2 Verse 13 in Hindi with meaning) | Festivalhindu.com
Geeta Chapter 2 Verse 13 in Hindi

जीवन के परिवर्तन और आत्मा का अमरत्व: गीता के श्लोक 2.13 का मर्म

श्लोक:

देहिनोSस्मिन्यथा देहे कौमारं यौवनं जरा |
तथा देहान्तरप्राप्तिर्धीरस्तत्र न मुह्यति || १३ ||

भावार्थ:

देहिनः – शरीर धारी की; अस्मिन् – इसमें; यथा – जिस प्रकार; देहे – शरीर में; कौमराम् – बाल्यावस्था; यौवनम् – यौवन, तारुण्य; जरा – वृद्धावस्था; तथा – उसी प्रकार; देह-अन्तर – शरीर के स्थानान्तरण की; प्राप् – उपलब्धि; धीरः – धीर व्यक्ति; तत्र – उस विषय में; न – कभी नहीं; मुह्यति – मोह को प्राप्त होता है |

जिस प्रकार शरीरधारी आत्मा इस (वर्तमान) शरीर में बाल्यावस्था से यौवन और फिर वृद्धावस्था में निरंतर अग्रसर होती रहती है, उसी प्रकार मृत्यु होने पर आत्मा दूसरे शरीर में चली जाती है। धीर पुरुष इस परिवर्तन से मोह या शोक को प्राप्त नहीं होते।

जीवन का अनिवार्य सत्य: आत्मा का अनवरत परिवर्तन

उपशीरषक: श्लोक 2.13 की व्याख्या

गीता के श्लोक 2.13 (Geeta Chapter 2 Verse 13) में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जीवन के अनिवार्य सत्य के बारे में बताया है। इस श्लोक के माध्यम से उन्होंने जीवन में होने वाले परिवर्तनों और आत्मा की शाश्वतता को समझाया है। जिस प्रकार शरीर बाल्यावस्था से यौवन और फिर वृद्धावस्था में प्रवेश करता है, उसी प्रकार मृत्यु के बाद आत्मा एक नए शरीर में प्रवेश करती है। यह परिवर्तन अनिवार्य है, और धीर पुरुष इसे समझते हुए मोह और शोक से परे रहते हैं।

आत्मा का शाश्वत स्वरूप: परिवर्तनशील शरीर

उपशीरषक: आत्मा और शरीर के संबंध की समझ

इस श्लोक में स्पष्ट किया गया है कि आत्मा शाश्वत है और शरीर के विभिन्न अवस्थाओं में परिवर्तित होते रहने के बावजूद आत्मा में कोई परिवर्तन नहीं आता। शरीर के बालक, युवा और वृद्ध रूप में बदलने पर भी आत्मा वही रहती है। मृत्यु के समय आत्मा एक शरीर को त्यागकर दूसरे शरीर में प्रवेश करती है। धीर व्यक्ति इस सत्य को समझते हुए मृत्यु के बाद होने वाले इस परिवर्तन से विचलित नहीं होते।

आत्मा के परिवर्तन से उत्पन्न सुख और दुःख

उपशीरषक: कर्म के अनुसार जीवन का लेखा-जोखा

यह श्लोक हमें यह भी सिखाता है कि आत्मा के शरीर परिवर्तन के साथ ही जीवन में किए गए कर्मों के अनुसार सुख और दुःख का अनुभव होता है। भीष्म और द्रोण जैसे साधु पुरुषों के लिए अगले जन्म में उन्हें स्वर्ग या आध्यात्मिक शरीर प्राप्त होंगे, इसलिए उनके लिए शोक का कोई कारण नहीं है।

धीर पुरुष की समझ: आत्मा, परमात्मा और प्रकृति का ज्ञान

उपशीरषक: व्यष्टि आत्मा और परमात्मा का भेद

श्लोक 2.13 में बताया गया है कि धीर पुरुष वह होता है जो आत्मा, परमात्मा और भौतिक एवं आध्यात्मिक प्रकृति का पूर्ण ज्ञान रखता है। ऐसे व्यक्ति को शरीर परिवर्तन से कोई मोह नहीं होता, क्योंकि वह जानता है कि आत्मा का वास्तविक स्वरूप अमर है। मायावादी सिद्धांत आत्मा के एकात्मवाद को मान्यता नहीं देता, क्योंकि इससे परमात्मा को परिवर्तनशील मानना पड़ेगा, जो कि गीता के अनुसार सत्य नहीं है।

निष्कर्ष:

गीता के श्लोक 2.13 (Geeta Chapter 2 Shloka 13) में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जीवन और मृत्यु के बीच के अनिवार्य संबंध को समझाया है। आत्मा शाश्वत है और शरीर केवल एक माध्यम है जो बदलता रहता है। धीर व्यक्ति इस सत्य को समझते हुए शोक और मोह से मुक्त रहते हैं। जीवन में किए गए कर्मों के अनुसार आत्मा को नया शरीर मिलता है, जिससे सुख और दुःख का अनुभव होता है। इस श्लोक का संदेश यह है कि हमें जीवन के परिवर्तनों को स्वाभाविक मानते हुए आत्मा के अमरत्व का अनुभव करना चाहिए।

Resources : श्रीमद्भागवत गीता यथारूप – बक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद, गीता प्रेस

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