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Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 69 Shloka | गीता अध्याय 2 श्लोक 69 अर्थ सहित | या निशा सर्वभूतानां तस्यां जागर्ति संयमी

श्रीमद् भागवत गीता अध्याय 2 श्लोक 69 (Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 69 in Hindi): श्रीमद्भगवद्गीता के दूसरे अध्याय का यह श्लोक योग, आत्मसंयम और आध्यात्मिक जागरूकता की गहराई को समझाने वाला एक प्रतीकात्मक श्लोक है। इसमें श्रीकृष्ण ने जीवन और चेतना के दो परस्पर विरोधी दृष्टिकोणों को सरल भाषा में प्रस्तुत किया है। यह श्लोक हमें यह सिखाता है कि आत्मज्ञान और भौतिकता के प्रति दृष्टिकोण किस प्रकार भिन्न हो सकता है।

श्रीमद् भागवत गीता अध्याय 2 श्लोक 69 (Bhagavad Gita Chapter 2 Verse 69)

गीता अध्याय 2 श्लोक 69 अर्थ सहित (Gita Chapter 2 Verse 69 in Hindi with meaning)

गीता अध्याय 2 श्लोक 69 अर्थ सहित (Gita Chapter 2 Verse 69 in Hindi with meaning) | Festivalhindu.com
Gita Chapter 2 Verse 69

श्लोक और उसका भावार्थ

या निशा सर्वभूतानां तस्यां जागर्ति संयमी |
यस्यां जाग्रति भूतानि सा निशा पश्यतो मुनेः ||

या – जो; निशा – रात्रि है; सर्व – समस्त; भूतानाम् – जीवों की; तस्याम् – उसमें; जागर्ति – जागता रहता है; संयमी – आत्मसंयमी व्यक्ति; यस्याम् – जिसमें; जाग्रति – जागते हैं; भूतानि – सभी प्राणी; सा – वह; निशा – रात्रि; पश्यतः – आत्मनिरीक्षण करने वाले; मुनेः – मुनि के लिए |

भावार्थ

श्लोक का अर्थ यह है कि जो समय अज्ञान में डूबे प्राणियों के लिए रात के समान है, वही आत्मसंयमी व्यक्ति के लिए जागने का समय है। वहीं, जो समय भौतिकतावादी प्राणियों के लिए जागरण का समय है, वह एक मुनि के लिए रात के समान है।

इसका सीधा तात्पर्य है कि आत्मनिरीक्षण और भौतिकता के प्रति दो अलग-अलग दृष्टिकोण हैं। सांसारिक सुखों में लीन व्यक्ति आत्मज्ञान की ओर नहीं देख पाते, जबकि योगी और मुनि इन सांसारिक सुखों को त्यागकर आत्मा के उत्थान के लिए जागते रहते हैं।

श्लोक का आध्यात्मिक रहस्य

श्रीकृष्ण इस श्लोक में दिन और रात का प्रतीकात्मक प्रयोग कर रहे हैं। सामान्य व्यक्ति के लिए जो दिन है, वह योगी के लिए रात के समान है। इसका मतलब यह नहीं है कि यह केवल समय का वर्णन है, बल्कि यह उनके दृष्टिकोण का अंतर है। सांसारिक व्यक्ति अपनी इन्द्रियों की तृप्ति के लिए जागते हैं और भौतिक सुखों को ही जीवन का मुख्य लक्ष्य मानते हैं। दूसरी ओर, योगी और आत्मनिरीक्षक मुनि सांसारिक सुखों को त्यागकर आत्मज्ञान के मार्ग पर चलते हैं।

जीवन में दो दृष्टिकोण

यह श्लोक दो तरह की चेतना को परिभाषित करता है:

  1. सांसारिक चेतना
    सांसारिक व्यक्ति भौतिक सुख-दुख के चक्र में फंसे रहते हैं। उनके लिए जीवन का उद्देश्य केवल धन, पद और इन्द्रिय सुख की प्राप्ति है। वे आत्मा के सत्य और वास्तविकता को समझने में असमर्थ रहते हैं।
  2. आध्यात्मिक चेतना
    आध्यात्मिक व्यक्ति भौतिक सुखों को त्यागकर आत्मा के उत्थान की ओर ध्यान देते हैं। उनके लिए भौतिकता का महत्व रात के समान है, जिसमें अज्ञान का अंधकार होता है। वे आत्मनिरीक्षण और ध्यान के माध्यम से आत्मज्ञान की खोज करते हैं।

प्रेरक कथा: संत कबीर का दृष्टिकोण

संत कबीर का जीवन इस श्लोक का उत्कृष्ट उदाहरण है। कबीरदास एक साधारण जुलाहे थे, लेकिन उनका जीवन आध्यात्मिक ज्ञान और आत्मनिरीक्षण से परिपूर्ण था। एक बार उनके शिष्यों ने उनसे पूछा, “गुरुजी, आप सांसारिक कार्य करते हुए भी आत्मज्ञान की इतनी गहराई तक कैसे पहुंचे?”

कबीर ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया, “जो संसार के लिए दिन है, वह मेरे लिए रात है। जब लोग धन और भौतिक वस्तुओं में उलझे होते हैं, तब मैं अपने भीतर के सत्य को देखता हूं। और जो समय लोग आत्मा के उत्थान के लिए व्यर्थ मानते हैं, वही मेरे लिए जागने का समय है।”

कबीर ने यह समझाया कि भले ही वह एक साधारण कार्यकर्ता थे, लेकिन उनका मन हमेशा ईश्वर और आत्मा की खोज में लगा रहता था। उनके लिए सांसारिक गतिविधियाँ केवल जीवन-यापन का साधन थीं, जबकि आत्मज्ञान उनका वास्तविक लक्ष्य था।

प्रेरक कथा: गौतम बुद्ध का अनुभव

गौतम बुद्ध के जीवन की वह रात जब उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ, इस श्लोक का सटीक उदाहरण है। सिद्धार्थ (गौतम बुद्ध) ने अपने जीवन के भौतिक सुखों को त्याग दिया और ध्यान और आत्मनिरीक्षण की राह पर चल पड़े।

उनकी इस यात्रा में एक समय ऐसा आया जब उन्होंने गहरी साधना की। वह रात सांसारिक लोगों के लिए केवल अंधकार और विश्राम का समय थी, लेकिन बुद्ध के लिए यह जागरण का क्षण बन गई। उसी रात बोधि वृक्ष के नीचे उन्होंने ज्ञान प्राप्त किया और सत्य को पहचान लिया। यह वह क्षण था जब उनके लिए आत्मज्ञान का सूर्य उदय हुआ, जबकि भौतिक सुखों में लिप्त लोग अज्ञान की नींद में सो रहे थे।

बुद्ध का जीवन इस श्लोक की गहराई को सजीव करता है। उन्होंने दिखाया कि आत्मनिरीक्षण और ध्यान के माध्यम से कैसे सांसारिक अंधकार को ज्ञान के प्रकाश में बदला जा सकता है।

प्रेरक कथा: संत तिरुवल्लुवर का तप

संत तिरुवल्लुवर, जो एक महान तमिल कवि और दार्शनिक थे, का जीवन भी इस श्लोक का उदाहरण है। उनकी रचनाएँ हमेशा भौतिक सुखों की क्षणभंगुरता और आत्मज्ञान के महत्व पर केंद्रित रहती थीं।

कहा जाता है कि एक दिन उनके पास एक राजा आया और उनसे पूछा, “आपकी साधारण जीवनशैली में ऐसा क्या है जो आपको इतना शांत और संतुष्ट बनाता है?”

तिरुवल्लुवर ने उत्तर दिया, “जो समय आप अपने राजमहल में सुख और विलास में बिताते हैं, वह मेरे लिए आत्मा के साथ एक होने का समय है। मेरे लिए भौतिक सुख रात के समान हैं, जिसमें अज्ञान का अंधकार है। लेकिन आत्मा की उन्नति के क्षण मेरे लिए दिन के समान हैं।”

तिरुवल्लुवर का यह उत्तर राजा के लिए प्रेरणा का स्रोत बना और उन्होंने भी आत्मनिरीक्षण का मार्ग अपनाया।

प्रेरक कथा: गुरु नानक देव जी का जीवन दर्शन

गुरु नानक देव जी, सिख धर्म के संस्थापक, ने भी इस श्लोक की भावना को अपने जीवन में अपनाया। एक बार उनके शिष्यों ने उनसे पूछा, “आप भौतिक जीवन में रहते हुए भी आत्मज्ञान के मार्ग पर कैसे चल सकते हैं?”

गुरु नानक ने उत्तर दिया, “जो समय सांसारिक लोग धन, सुख, और सत्ता के पीछे भागने में बिताते हैं, वह मेरे लिए आत्मा को पहचानने का समय है। मैं इन्द्रियों के विषय भोगों को रात मानता हूँ और आत्मा के उत्थान को दिन।”

गुरु नानक का जीवन इस श्लोक के मर्म को साकार करता है। उनका मानना था कि सांसारिक जीवन और आत्मज्ञान के बीच संतुलन बनाकर ही सच्चे सुख और शांति को प्राप्त किया जा सकता है।

प्रेरक कथा: मीराबाई का भक्ति मार्ग

मीराबाई, जो भगवान श्रीकृष्ण की परम भक्त थीं, उनका जीवन भी इस श्लोक का आदर्श उदाहरण है। मीराबाई का जीवन सांसारिक बंधनों और कर्तव्यों से मुक्त होकर केवल ईश्वर की भक्ति में समर्पित था।

कहा जाता है कि उनके परिवार ने उन्हें सांसारिक सुखों की ओर आकर्षित करने की कई बार कोशिश की, लेकिन मीराबाई का उत्तर हमेशा यही होता था, “जो संसार के लिए रात है, वही मेरे लिए दिन है। मैं केवल अपने प्रभु श्रीकृष्ण के चरणों में रहकर ही सच्चा सुख पाती हूँ।”

मीराबाई के लिए सांसारिक जीवन और भौतिक सुख अज्ञान के अंधकार के समान थे। उनकी भक्ति और ईश्वर के प्रति अटूट विश्वास ने उन्हें आत्मज्ञान के शिखर तक पहुंचाया।

जीवन के लिए श्लोक की शिक्षाएँ

यह श्लोक हमें यह समझने की प्रेरणा देता है कि जीवन का उद्देश्य केवल भौतिक सुखों तक सीमित नहीं होना चाहिए। आत्मज्ञान की ओर बढ़ने के लिए आत्मसंयम और ध्यान का अभ्यास करना आवश्यक है।

  • आत्मज्ञान प्राप्त करने के लिए इन्द्रिय सुखों को त्यागना चाहिए।
  • ध्यान और योग से आत्मा की शक्ति को पहचानें।
  • भौतिक सुख-दुख में फंसे बिना, जीवन के गहरे सत्य को खोजें।

आध्यात्मिक और भौतिकता का संतुलन

हालांकि यह श्लोक आत्मज्ञान को प्राथमिकता देता है, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि भौतिकता को पूरी तरह त्याग दिया जाए। यह श्लोक हमें यह सिखाता है कि हमें भौतिक और आध्यात्मिक जीवन के बीच संतुलन बनाना चाहिए। जहां सांसारिक जिम्मेदारियों को निभाना आवश्यक है, वहीं आत्मज्ञान के प्रति जागरूक रहना भी उतना ही महत्वपूर्ण है।

दिन और रात का प्रतीकात्मक महत्व

श्रीकृष्ण ने यहां दिन और रात का प्रतीकात्मक रूप में प्रयोग किया है।

  • सांसारिक लोगों के लिए दिन वह समय है जब वे भौतिक सफलता की ओर बढ़ते हैं।
  • योगियों के लिए वही दिन आत्मा की उन्नति के लिए होता है।

इस प्रकार, जो एक योगी के लिए रात्रि है, वह सांसारिक लोगों के लिए दिन है। यह दृष्टिकोण का अंतर है, जो इस श्लोक को इतना गहन और प्रेरणादायक बनाता है।

निष्कर्ष: श्रीकृष्ण के शब्दों का संदेश

श्रीमद्भगवद्गीता का यह श्लोक हमें यह सिखाता है कि आत्मज्ञान ही सच्चा जागरण है। जो व्यक्ति सांसारिक सुखों में लीन रहते हैं, वे आत्मा के सत्य को पहचानने में असमर्थ होते हैं। दूसरी ओर, जो व्यक्ति आत्मा के उत्थान के लिए प्रयासरत रहते हैं, वे भौतिक सुख-दुख के बंधनों से मुक्त हो जाते हैं।

इस श्लोक का अध्ययन हमें यह प्रेरणा देता है कि हम अपनी चेतना को आत्मा के सत्य की ओर जागृत करें। केवल इन्द्रिय सुखों की पूर्ति में जीवन का उद्देश्य सीमित करना हमारी आध्यात्मिक क्षमता को सीमित करता है। आत्मज्ञान की राह पर चलकर ही हम सच्चे आनंद और शांति को प्राप्त कर सकते हैं।

तो आइए, श्रीकृष्ण के इन शब्दों को अपने जीवन में उतारें और आत्मा की शक्ति को पहचानें।

Resources : श्रीमद्भागवत गीता यथारूप – बक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद, गीता प्रेस

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