श्रीमद् भागवत गीता अध्याय 1 श्लोक 45 (Bhagwat Geeta adhyay 1 shlok 45 in Hindi):महाभारत का युद्ध न केवल दो कुलों के बीच का संघर्ष था, बल्कि यह नैतिकता, धर्म, और मानव मन की जटिलताओं का भी प्रतीक था। भगवद्गीता के प्रथम अध्याय में, अर्जुन के मन में उत्पन्न करुणा और द्वंद्व को दर्शाया गया है। विशेषकर, गीता अध्याय 1 श्लोक 45(Gita Chapter 1 Verse 45) में अर्जुन की आंतरिक संघर्ष की पराकाष्ठा देखी जा सकती है।
श्रीमद् भागवत गीता अध्याय 1 श्लोक 45
यदि मामप्रतीकारमशस्त्रं शस्त्रपाणयः |
Bhagavad Gita Chapter 1 Verse-Shloka 45
धार्तराष्ट्रा रणे हन्युस्तन्मे क्षेमतरं भवेत् || ४५ ||
गीता अध्याय 1 श्लोक 45 अर्थ सहित

श्लोक और उसका अर्थ
“यदि मामप्रतीकारमशस्त्रं शस्त्रपाणयः |
धार्तराष्ट्रा रणे हन्युस्तन्मे क्षेमतरं भवेत् || ४५ ||”
शब्दार्थ:
- यदि – यदि
- माम् – मुझको
- अप्रतिकारम् – प्रतिरोध न करने के कारण
- अशस्त्रम् – बिना हथियार के
- शस्त्र-पाणयः – शस्त्रधारी
- धार्तराष्ट्राः – धृतराष्ट्र के पुत्र
- रणे – युद्धभूमि में
- हन्युः – मारें
- तत् – वह
- मे – मेरे लिए
- क्षेम-तरम् – श्रेयस्कर
- भवेत् – होगा
भावार्थ: यदि शस्त्रधारी धृतराष्ट्र के पुत्र मुझ निहत्थे तथा रणभूमि में प्रतिरोध न करने वाले को मारें, तो यह मेरे लिए श्रेयस्कर होगा।
अर्जुन की दयाद्रता और युद्ध से विमुखता
अर्जुन, जो कि एक महावीर योद्धा थे, अपने ही संबंधियों, गुरुओं और मित्रों के विरुद्ध युद्ध करने से पहले अत्यंत करुणा से भर गए। उन्होंने विचार किया कि यदि वे बिना हथियार के, प्रतिरोध न करते हुए, युद्धभूमि में खड़े रहें और कौरव पक्ष के योद्धा उन्हें मार डालें, तो भी यह उनके लिए अधिक श्रेयस्कर होगा बजाय कि वे अपने प्रियजनों का वध करें।
क्षत्रिय धर्म और अर्जुन का निर्णय
- क्षत्रिय धर्म: क्षत्रियों के लिए यह नियम था कि वे निहत्थे या विमुख शत्रु पर आक्रमण न करें।
- अर्जुन का संकल्प: अर्जुन ने निश्चय किया कि भले ही शत्रु इस नियम का उल्लंघन कर उन्हें मार डालें, फिर भी वे युद्ध नहीं करेंगे।
- दयाद्रता का कारण: अर्जुन की यह दयाद्रता उनके भगवान के प्रति महान भक्ति और मानवता के प्रति गहरी संवेदनशीलता का प्रतीक है।
तात्पर्य
क्षत्रियों के युद्ध-नियमों के अनुसार ऐसी प्रथा है कि निहत्थे तथा विमुख शत्रु पर आक्रमण न किया जाय। किन्तु अर्जुन ने निश्चय किया कि शत्रु भले ही इस विषम अवस्था में उस पर आक्रमण कर दें, किन्तु वह युद्ध नहीं करेगा। उसने इस पर विचार नहीं किया कि दूसरा दल युद्ध के लिए कितना उद्यत है। इस सब लक्षणों का कारण उसकी दयाद्रता है जो भगवान् के महान भक्त होने के कारण उत्पन्न हुई।
निष्कर्ष
अर्जुन का यह श्लोक उनके मन में चल रहे नैतिक द्वंद्व और करुणा की गहराई को दर्शाता है। यह हमें सिखाता है कि कभी-कभी जीवन में ऐसे क्षण आते हैं जब हमें अपने कर्तव्यों और मानवीय मूल्यों के बीच संतुलन स्थापित करना पड़ता है। अर्जुन की यह दयाद्रता और युद्ध से विमुखता हमें मानवता की महत्ता की याद दिलाती है।
Resources : श्रीमद्भागवत गीता यथारूप – बक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद, गीता प्रेस