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Bhagavad Gita Chapter 1 Verse-Shloka 27 – गीता अध्याय 1 श्लोक 27 अर्थ सहित – तान्समीक्ष्य स कौन्तेयः…..

श्रीमद् भागवत गीता अध्याय 1 श्लोक 27 (Bhagwat Geeta adhyay 1 shlok 27 in Hindi): महाभारत के युद्धभूमि में अर्जुन की करुणा से भरी दुविधा का वर्णन। कुन्तीपुत्र अर्जुन ने युद्ध के दौरान अपने बंधुओं को देखकर कैसे उनकी वीरता कम हो गई, जानें इस लेख में।

श्रीमद् भागवत गीता अध्याय 1 श्लोक 27

गीता अध्याय 1 श्लोक 27 अर्थ सहित

Bhagavad Gita Chapter 1 Shloka 27 in Hindi | FestivalHindu.com
Bhagavad Gita Chapter 1 Verse 27

श्लोक:

तान्समीक्ष्य स कौन्तेयः सर्वान्बन्धूनवस्थितान्।

कृपया परयाविष्टो विषीदन्निदमब्रवीत्॥ २७ ॥

अनुवाद:

तान्- उन सब को; समीक्ष्य- देखकर; सः- वह; कौन्तेयः- कुन्तीपुत्रः सर्वान्- सभी प्रकार के; बन्धून्- सम्बन्धियों को; अवस्थितान्- स्थित; कृपया- दयावश; परया- अत्यधिक; आविष्टः- अभिभूत; विषीदन्- शोक करता हुआ; इदम्- इस प्रकार; अब्रवीत्- बोला।

जब कुन्तीपुत्र अर्जुन ने मित्रों तथा सम्बन्धियों की इन विभिन्न श्रेणियों को देखा तो वह करुणा से अभिभूत हो गया और इस प्रकार बोला।

भावार्थ:

जब अर्जुन ने युद्धभूमि में अपने बंधुओं को देखा, तो वह अत्यधिक दया से अभिभूत हो गए। उन्होंने सोचा:

  • ये सभी मेरे अपने रिश्तेदार हैं।
  • मैं इनके खिलाफ कैसे युद्ध कर सकता हूँ?
  • इस युद्ध से कितनी तबाही होगी!

श्रीकृष्ण के शब्दों का प्रभाव

श्रीकृष्ण के शब्दों का अर्जुन पर वांछित प्रभाव पड़ा। युद्धभूमि के दोनों ओर की सेनाओं को देखकर उसका हृदय द्रवित हो गया। वे सभी उसके रिश्तेदार कौरव थे। जो वीर योद्धा कुछ मिनट पहले कौरवों को उनकी सारी दुष्टता की सजा देना चाहता था, वह अचानक भयभीत हो गया। इस युद्ध से होने वाली तबाही को समझकर उसकी वीरता कम होने लगी।

अर्जुन की दुविधा

इस दुविधा में अर्जुन के मन में कई प्रश्न उत्पन्न हुए:

  • क्या यह युद्ध धर्म का पालन है?
  • क्या अपने ही बंधुओं के खिलाफ लड़ना सही है?
  • इस युद्ध का परिणाम क्या होगा?

अर्जुन का नरम दिल

संजय ने अर्जुन को ‘कौन्तेय‘ कहकर संबोधित किया है, जो यह दर्शाता है कि अर्जुन अपनी माँ कुंती के समान नरम दिल के हो गए थे। अर्जुन अब बहुत उलझन में था और उसका मन सवालों से भर गया।

निष्कर्ष

अर्जुन की यह दुविधा और करुणा महाभारत का एक महत्वपूर्ण पहलू है। यह घटना हमें यह सिखाती है कि जीवन के कठिन क्षणों में भी हमें सही निर्णय लेने के लिए अपने मन को शांत और स्थिर रखना चाहिए। महाभारत के इस प्रसंग से हम यह सीख सकते हैं कि वास्तविक वीरता केवल शारीरिक शक्ति में नहीं, बल्कि मन की स्थिरता और करुणा में भी होती है।

Resources : श्रीमद्भागवत गीता यथारूप – बक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद, गीता प्रेस

अध्याय 1 (Chapter 1)

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