श्रीमद् भागवत गीता अध्याय 1 श्लोक 29 (Bhagwat Geeta adhyay 1 shlok 29 in Hindi): महाभारत के युद्ध के मैदान में, जब महान योद्धा अर्जुन अपने शत्रुओं के समक्ष खड़े हुए, उनकी शारीरिक और मानसिक अवस्था विचलित हो उठी। इसके एक उदाहरण के रूप में हमें गीता के अध्याय 1 श्लोक 29(Gita Chapter 1 Verse 29) में देखने को मिलता है:
श्रीमद् भागवत गीता अध्याय 1 श्लोक 29
वेपथुश्च शरीरे मे रोमहर्षश्च जायते ।
Bhagavad Gita Chapter 1 Verse-Shloka 29
गाण्डीवं स्त्रंसते हस्तात्त्वक्चैव परिदह्यते ॥ २९ ॥
गीता अध्याय 1 श्लोक 29 अर्थ सहित

श्लोक:
“वेपथुश्च शरीरे मे रोमहर्षश्च जायते ।
गाण्डीवं स्त्रंसते हस्तात्त्वक्चैव परिदह्यते ॥ २९ ॥”
भावार्थ:
वेपथुः- शरीर का कम्पन; च- भी; शरीरे- शरीर में; मे- मेरे; रोम-हर्षः- रोमांच; च- भीः जायते- उत्पन हो रहा है; गाण्डीवम्- अर्जुन का धनुष, गाण्डीव; स्त्रंसते-छूट या सरक रहा है; हस्तात्-हाथ से; त्वक्- त्वचा; च- भी; एव- निश्चय ही; परिदह्यते- जल रही है।
मेरा सारा शरीर काँप रहा है, मेरे रोंगटे खड़े हो रहे हैं, मेरा गाण्डीव धनुष मेरे हाथ से सरक रहा है और मेरी त्वचा जल रही है।
शारीरिक और मानसिक प्रतिक्रिया
शरीर का कम्पन और रोमांच
- वेपथुः: अर्जुन का पूरा शरीर कांपने लगा।
- रोम-हर्षः: उनके रोंगटे खड़े हो गए।
अर्जुन के शरीर में होने वाले ये शारीरिक बदलाव उनके मानसिक तनाव और भय को दर्शाते हैं।
गाण्डीव का छूटना और त्वचा में जलन
- गाण्डीवम् स्त्रंसते हस्तात्: उनका प्रसिद्ध धनुष, गाण्डीव, उनके हाथ से सरक रहा था।
- त्वक् परिदह्यते: उनकी त्वचा जल रही थी।
यह दर्शाता है कि अर्जुन कितने अधीर और व्याकुल हो चुके थे कि उनके हाथ से उनका हथियार भी छूट रहा था।
तात्पर्य और विश्लेषण
दो प्रकार की प्रतिक्रियाएं
- आध्यात्मिक परमानन्द: जब कोई दिव्य अनुभूति होती है।
- भौतिक भय: जब जीवन में भय या संकट होता है।
अर्जुन की अवस्था स्पष्ट रूप से भौतिक भय के कारण उत्पन्न हुई थी। यह भय जीवन की हानि का था और इस कारण उनके शरीर में ये सारे लक्षण उत्पन्न हुए थे।
देहात्मबुद्धि से जन्य लक्षण
अर्जुन की ये सारी प्रतिक्रियाएं देहात्मबुद्धि से उत्पन्न हो रही थीं, जो यह दर्शाती है कि वे अपने शरीर और जीवन के प्रति अत्यधिक चिंतित हो उठे थे।
निष्कर्ष
अर्जुन की यह अवस्था महाभारत के युद्ध में उनकी मानसिक स्थिति को उजागर करती है। उनके शारीरिक और मानसिक लक्षण हमें यह सिखाते हैं कि जीवन के संकटपूर्ण क्षणों में हमारी प्रतिक्रियाएं कैसे होती हैं और उनसे निपटने के लिए हमें कैसे मानसिक स्थिरता की आवश्यकता होती है। अर्जुन के उदाहरण से हम यह भी समझ सकते हैं कि जीवन में जब भी भय और संकट उत्पन्न हो, हमें धैर्य और आत्म-नियंत्रण बनाए रखना चाहिए।
Resources : श्रीमद्भागवत गीता यथारूप – बक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद, गीता प्रेस