श्रीमद् भागवत गीता अध्याय 1 श्लोक 11 (Bhagwat Geeta adhyay 1 shloka 11 in Hindi): महाभारत के युद्ध के आरंभ में, कौरवों के सेनापति भीष्म पितामह के शौर्य की प्रशंसा करते हुए दुर्योधन ने सभी योद्धाओं को उनके सुरक्षा की जिम्मेदारी सौंपी। दुर्योधन ने कहा:
श्रीमद् भागवत गीता अध्याय 1 श्लोक 11
अयनेषु च सर्वेषु यथाभागमवस्थिताः ।
Bhagavad Gita Chapter 1 Verse-Sloka 11
भीष्ममेवाभिरक्षन्तु भवन्तः सर्व एव हि ॥ ११ ॥
गीता अध्याय 1 श्लोक 11 अर्थ सहित

श्लोक:
अयनेषु च सर्वेषु यथाभागमवस्थिताः ।
भीष्ममेवाभिरक्षन्तु भवन्तः सर्व एव हि ॥ ११ ॥
भावार्थ:
अयनेषु - मोर्चों में; च - भी; सर्वेषु - सर्वत्र; यथा-भागम् अपने-अपने स्थानों पर; अवस्थिताः - स्थित; भीष्मम् - भीष्म पितामह की; एव - निश्चय ही; अभिरक्षन्तु - सहायता करनी चाहिए; भवन्तः - आप; सर्वे - सब के सब; एव हि - निश्चय ही।
अर्थात, “अतएव सैन्यव्यूह में अपने-अपने मोर्चों पर खड़े रहकर आप सभी भीष्म पितामह को पूरी-पूरी सहायता दें।”
रणनीतिक दृष्टिकोण: भीष्म पितामह की सुरक्षा
मोर्चों पर योद्धाओं की तैनाती
दुर्योधन ने अपने सभी योद्धाओं को निर्देश दिया कि वे अपने-अपने मोर्चों पर मजबूती से खड़े रहें और भीष्म पितामह की सुरक्षा सुनिश्चित करें। इसके पीछे की रणनीति यह थी कि भीष्म पितामह युद्ध में केंद्र बिंदु थे और उनकी उपस्थिति से कौरव सेना को साहस और प्रेरणा मिलती थी।
- सभी मोर्चों पर तैनाती: प्रत्येक योद्धा को अपने-अपने स्थानों पर मजबूती से खड़ा रहना चाहिए।
- भीष्म पितामह की सुरक्षा: चारों ओर से भीष्म पितामह की रक्षा करना अनिवार्य है।
- शत्रु की व्यूह रचना को तोड़ने से रोकना: सभी योद्धाओं को अपनी-अपनी स्थिति पर अडिग रहकर शत्रु को व्यूह तोड़ने से रोकना चाहिए।
दुर्योधन की कूटनीति
दुर्योधन ने अपने सहज कूटनीतिक ढंग से स्थिति संभालने का प्रयास किया। उसने बलपूर्वक कहा कि भीष्मदेव निस्सन्देह महानतम योद्धा हैं, किन्तु अब वे वृद्ध हो चुके हैं। अतः प्रत्येक सैनिक को चाहिए कि चारों ओर से उनकी सुरक्षा का विशेष ध्यान रखे। हो सकता है कि वे किसी एक दिशा में युद्ध करने में लग जाएँ और शत्रु इस व्यस्तता का लाभ उठा ले।
- वृद्धावस्था का ध्यान: भीष्म पितामह वृद्ध हो चुके हैं, इसलिए उनकी सुरक्षा पर विशेष ध्यान देना आवश्यक है।
- कूटनीति का प्रयोग: दुर्योधन ने सभी योद्धाओं को प्रेरित करने और उनकी भूमिका को महत्वपूर्ण बताने का प्रयास किया।
- शत्रु की चालों से सतर्क रहना: शत्रु के किसी भी चाल से बचने के लिए सभी योद्धाओं को सतर्क रहना चाहिए।
भीष्म पितामह की उपस्थिति का महत्व
दुर्योधन को पूर्ण विश्वास था कि कुरुओं की विजय भीष्मदेव की उपस्थिति पर निर्भर है। उसे युद्ध में भीष्मदेव तथा द्रोणाचार्य के पूर्ण सहयोग की आशा थी क्योंकि वह अच्छी तरह जानता था कि इन दोनों ने उस समय एक शब्द भी नहीं कहा था, जब अर्जुन की पत्नी द्रौपदी को असहायावस्था में भरी सभा में नग्न किया जा रहा था और जब उसने उनसे न्याय की भीख माँगी थी।
- भीष्मदेव की उपस्थिति: भीष्मदेव की उपस्थिति से कुरु सेना को मनोबल मिलता था।
- द्रोणाचार्य का सहयोग: द्रोणाचार्य का समर्थन भी दुर्योधन के लिए महत्वपूर्ण था।
- पाण्डवों के प्रति स्नेह का त्याग: दुर्योधन को आशा थी कि युद्ध में ये दोनों सेनापति पाण्डवों के प्रति अपने स्नेह को त्याग देंगे।
निष्कर्ष
महाभारत के युद्ध में भीष्म पितामह की सुरक्षा और उनकी उपस्थिति का महत्व अत्यंत महत्वपूर्ण था। दुर्योधन की रणनीति और कूटनीति ने इस युद्ध को और भी रोचक और जटिल बना दिया। भीष्म पितामह का शौर्य, उनकी वृद्धावस्था, और दुर्योधन की कूटनीति ने इस महायुद्ध को एक अद्वितीय गाथा बना दिया।
Resources : श्रीमद्भागवत गीता यथारूप – बक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद, गीता प्रेस