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Bhagavad Gita Chapter 1 Verse-Shloka 23 – गीता अध्याय 1 श्लोक 23 अर्थ सहित – योत्स्यमानानवेक्षेऽहं य…..

श्रीमद् भागवत गीता अध्याय 1 श्लोक 23 (Bhagwat Geeta adhyay 1 shlok 23 in Hindi): इस लेख में जानें कि कैसे अर्जुन ने महाभारत के युद्ध से पहले धृतराष्ट्र के दुर्बुद्धि पुत्र दुर्योधन के समर्थक योद्धाओं का निरीक्षण कर अपनी युद्ध नीति को सुदृढ़ किया। भगवद्गीता के अध्याय 1 श्लोक 23 में अर्जुन अपनी चिंता व्यक्त करते हुए कहते हैं:

श्रीमद् भागवत गीता अध्याय 1 श्लोक 23

गीता अध्याय 1 श्लोक 23 अर्थ सहित

Bhagavad Gita Chapter 1 Shloka 23 in Hindi | FestivalHindu.com
Bhagavad Gita Chapter 1 Sloka 23

श्लोक:

योत्स्यमानानवेक्षेऽहं य एतेऽत्र समागता: |

धार्तराष्ट्रस्य दुर्बुद्धेर्युद्धे प्रियचिकीर्षव: ॥ २३ ॥

भावार्थ:

योत्स्यमानान्- युद्ध करने वालों को; अवेक्षे- देखु; अहम्- मैं; ये- जो; एते-वे; अत्र- यहाँ; समागताः- एकत्र; धार्तराष्ट्रस्य- धृतराष्ट्र के पुत्र की; दुर्बुद्धेः- दुर्बुद्धि; युद्धे-युद्ध में; प्रिय-मंगल, भला; चिकीर्षवः- चाहने वाले।

मुझे उन लोगों को देखने दीजिये, जो यहाँ पर धृतराष्ट्र के दुर्बुद्धि पुत्र (दुर्योधन) को प्रसन्न करने की इच्छा से लड़ने के लिए आये हुए हैं।

धृतराष्ट्र के दुर्बुद्धि पुत्र: दुर्योधन

यह सर्वविदित था कि दुर्योधन अपने पिता धृतराष्ट्र की साँठगाँठ से पापपूर्ण योजनाएँ बनाकर पाण्डवों के राज्य को हड़पना चाहता था। अतः जिन समस्त लोगों ने दुर्योधन का पक्ष ग्रहण किया था वे उसी के समानधर्मा रहे होंगे। अर्जुन युद्ध प्रारम्भ होने के पूर्व यह तो जान ही लेना चाहता था कि कौन-कौन से लोग आये हुए हैं।

अर्जुन की रणनीति: युद्ध से पहले का निरीक्षण

अर्जुन की दृष्टि से यह निरीक्षण महत्वपूर्ण था। उनके समक्ष समझौता का प्रस्ताव रखने की उसकी कोई योजना नहीं थी। यह भी तथ्य था कि वह उनकी शक्ति का, जिसका उसे सामना करना था, अनुमान लगाने की दृष्टि से उन्हें देखना चाह रहा था, यद्यपि उसे अपनी विजय का विश्वास था क्योंकि कृष्ण उसकी बगल में विराजमान थे।

युद्ध के मैदान में अर्जुन की सोच

अर्जुन का यह विचारशील दृष्टिकोण हमें कई महत्वपूर्ण बिंदुओं पर विचार करने के लिए प्रेरित करता है:

  • विपक्ष की पहचान: युद्ध में सफलता पाने के लिए अपने शत्रुओं की पहचान और उनकी शक्तियों का आंकलन करना महत्वपूर्ण होता है।
  • मनःस्थिति का महत्व: युद्ध केवल शारीरिक शक्ति का नहीं बल्कि मानसिक तैयारी का भी खेल है।
  • विश्वास और आत्मबल: अर्जुन को कृष्ण पर विश्वास था, जो उसे युद्ध में विजय दिलाने का आत्मबल देता था।

निष्कर्ष

अर्जुन की यह विवेचना हमें यह सिखाती है कि किसी भी संघर्ष में सफलता पाने के लिए सिर्फ शारीरिक बल ही नहीं बल्कि मानसिक तैयारी, शत्रु की पहचान और आत्मविश्वास भी आवश्यक होते हैं। धृतराष्ट्र के दुर्बुद्धि पुत्र के समर्थन में आए योद्धाओं का निरीक्षण कर अर्जुन ने अपनी रणनीति को और मजबूत किया। यह श्लोक आज भी हमें संघर्षों में सफल होने के महत्वपूर्ण पाठ सिखाता है।

Resources : श्रीमद्भागवत गीता यथारूप – बक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद, गीता प्रेस

अध्याय 1 (Chapter 1)

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