श्रीमद् भागवत गीता अध्याय 1 श्लोक 26 (Bhagwat Geeta adhyay 1 shlok 26 in Hindi): महाभारत का युद्ध, जो कुरुक्षेत्र में लड़ा गया था, न केवल एक ऐतिहासिक घटना थी बल्कि जीवन के कई गहरे और महत्वपूर्ण पाठों से भरा हुआ है। गीता के श्लोक 1.26 में, श्रीमद्भगवद्गीता में वर्णित एक अद्भुत दृश्य सामने आता है, जब अर्जुन ने युद्धभूमि में अपने प्रियजनों को देखा। इस श्लोक में अर्जुन के मनोभावों और मानसिक संघर्ष का एक मार्मिक चित्रण है।
श्रीमद् भागवत गीता अध्याय 1 श्लोक 26
गीता अध्याय 1 श्लोक 26 अर्थ सहित
श्लोक:
“तत्रापश्यत्स्थितान् पार्थ: पितृ नाथ पितामहन् |
आचार्यान्मातुलानभ्रातृ नपुत्रानपौत्रांसखिनस्तथा |
शशुराणसुहृदश्चैव सेन्योरभयोरपि ॥ २६॥”
भावार्थ:
तत्र- वहाँ; अपश्यत्- देखा; स्थितान्- खड़े; पार्थः- पार्थ ने; पितृन्- पितरों (चाचा- ताऊ) को; अथ-भी; पितामहान्- पितामहों को; आचार्यान्- शिक्षकों को; मातुलान् - मामाओं को; भर्तान् - भाइयों को; पुत्रान्- पुत्रों को; पौत्रान् - पौत्रों को; सखीन्- मित्रों को; तथा- और; श्वासुरान्- ससुर को; सुहृदः- शुभचिन्तकों को; च- भी; एव-निश्चय ही; सेनयोः- सेनाओं के; उभयोः- दोनों पक्षों की; अपि- सहित।
इस श्लोक का अर्थ है: अर्जुन ने वहाँ पर दोनों पक्षों की सेनाओं के मध्य में अपने चाचा-ताउओं, पितामहों, गुरुओं, मामाओं, भाइयों, पुत्रों, पौत्रों, मित्रों, ससुरों और शुभचिन्तकों को भी देखा।
तात्पर्य:
अर्जुन युद्धभूमि में अपने सभी सम्बंधियों को देख सका। वह अपने पिता के समकालीन भूरिश्रवा जैसे व्यक्तियों, भीष्म तथा सोमदत्त जैसे पितामहों, द्रोणाचार्य तथा कृपाचार्य जैसे गुरुओं, शल्य तथा शकुनि जैसे मामाओं, दुर्योधन जैसे भाइयों, लक्ष्मण जैसे पुत्रों, अश्वत्थामा जैसे मित्रों एवं कृतवर्मा जैसे शुभचिन्तकों को देख सका। वह उन सेनाओं को भी देख सका, जिनमें उसके अनेक मित्र थे।
युद्धभूमि में अर्जुन के सामने खड़े लोग
- पितर और पितामह: अर्जुन ने अपने चाचा, ताऊ और पितामहों जैसे भीष्म और सोमदत्त को देखा।
- आचार्य और गुरु: अर्जुन के गुरुओं में द्रोणाचार्य और कृपाचार्य शामिल थे।
- मातुल और भाई: शल्य और शकुनि जैसे मामा, और दुर्योधन जैसे भाई वहाँ मौजूद थे।
- पुत्र और पौत्र: अर्जुन ने लक्ष्मण जैसे पुत्रों और पौत्रों को भी देखा।
- सखा और सुहृद: अश्वत्थामा जैसे मित्र और कृतवर्मा जैसे शुभचिंतक भी वहाँ थे।
अर्जुन के मनोभाव
युद्धभूमि में अपने प्रियजनों को देखकर अर्जुन के मन में भावनाओं का सैलाब उमड़ पड़ा। एक ओर कर्तव्य और धर्म का पालन करने का संघर्ष, और दूसरी ओर अपने प्रियजनों के प्रति प्रेम और संवेदनशीलता। यह दृश्य न केवल अर्जुन की आंतरिक स्थिति को दर्शाता है, बल्कि यह भी संकेत करता है कि युद्ध केवल बाहरी संघर्ष नहीं होता, बल्कि यह भीतर का भी एक गहरा संघर्ष होता है।
निष्कर्ष
श्री भगवद्गीता का यह श्लोक हमें सिखाता है कि जीवन में कठिन निर्णय लेने पड़ते हैं और कभी-कभी ये निर्णय हमारे सबसे करीबी लोगों को भी प्रभावित कर सकते हैं। अर्जुन के माध्यम से हम यह समझ सकते हैं कि हर बड़े कदम के पीछे एक गहरा और भावनात्मक संघर्ष होता है। यह श्लोक हमें अपने कर्तव्यों के प्रति सचेत रहने और सही निर्णय लेने की प्रेरणा देता है, चाहे परिस्थिति कितनी भी कठिन क्यों न हो।
Resources : श्रीमद्भागवत गीता यथारूप – बक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद, गीता प्रेस