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Bhagavad Gita Chapter 1 Verse-Shloka 42 – गीता अध्याय 1 श्लोक 42 अर्थ सहित – दोषैरेतै कुलघ्नानां…..

श्रीमद् भागवत गीता अध्याय 1 श्लोक 42 (Bhagwat Geeta adhyay 1 shlok 42 in Hindi): भगवद गीता अध्याय 1 श्लोक 42(Bhagavad Gita Chapter 1 Verse 42) में परिवार की परम्पराओं और समाज की योजनाओं के विनाश के दुष्परिणामों पर गहन विचार किया गया है। इस श्लोक में कहा गया है कि जो लोग कुल-परम्परा को नष्ट करते हैं और अवांछित संतानों को जन्म देते हैं, वे न केवल परिवार की परम्पराओं को बल्कि सामुदायिक योजनाओं को भी नष्ट कर देते हैं।

श्रीमद् भागवत गीता अध्याय 1 श्लोक 42

गीता अध्याय 1 श्लोक 42 अर्थ सहित

Bhagavad Gita Chapter 1 Shloka 42 in Hindi | FestivalHindu.com
Bhagavad Gita Chapter 1 Verse 42 in Hindi

श्लोक की व्याख्या

श्लोक:

दोषैरेतै कुलघ्नानां वर्णसड्करकारकै: |

उत्साद्यन्ते जातिधर्माः कुलधर्माश्र्च शाश्र्वताः || ४२ ||

अर्थ:

दोषैः – ऐसे दोषों से; एतैः – इन सब; कुलघ्नानाम् – परिवार नष्ट करने वालों का; वर्ण-सङकर – अवांछित संतानों के; कारकैः – कारणों से; उत्साद्यन्ते – नष्ट हो जाते हैं; जाति-धर्माः – सामुदायिक योजनाएँ; कुल-धर्माः – पारिवारिक परम्पराएँ; च – भी; शाश्र्वताः – सनातन |

भावार्थ

जो लोग कुल-परम्परा को विनष्ट करते हैं और इस तरह अवांछित सन्तानों को जन्म देते हैं, उनके दुष्कर्मों से समस्त प्रकार की सामुदायिक योजनाएँ तथा पारिवारिक कल्याण-कार्य विनष्ट हो जाते हैं।

तात्पर्य

सनातन-धर्म या वर्णाश्रम-धर्म द्वारा निर्धारित मानव समाज के चारों वर्णों के लिए सामुदायिक योजनाएँ तथा पारिवारिक कल्याण-कार्य इसलिए नियोजित हैं कि मनुष्य चरम मोक्ष प्राप्त कर सके। अतः समाज के अनुत्तरदायी नायकों द्वारा सनातन-धर्म परम्परा के विखण्डन से उस समाज में अव्यवस्था फैलती है, फलस्वरूप लोग जीवन के उद्देश्य विष्णु को भूल जाते हैं। ऐसे नायक अंधे कहलाते हैं और जो लोग इनका अनुगमन करते हैं वे निश्चय ही कुव्यवस्था की ओर अग्रसर होते हैं।

कुल-धर्म और सामुदायिक योजनाएँ

  • परिवार की परम्पराएँ: कुल-धर्म का पालन परिवार की परम्पराओं को सुरक्षित रखता है।
  • सामाजिक संरचना: सनातन धर्म की योजनाएँ समाज की संरचना को मजबूत बनाती हैं।
  • मोक्ष प्राप्ति का उद्देश्य: जीवन का मुख्य उद्देश्य मोक्ष प्राप्त करना है, जो सही परम्पराओं का पालन करके ही संभव है।

अनुत्तरदायी नायकों का प्रभाव

  • अव्यवस्था का फैलाव: अनुत्तरदायी नायकों के कारण समाज में अव्यवस्था फैलती है।
  • जीवन के उद्देश्य की भूला: जीवन का मुख्य उद्देश्य भूल जाने से व्यक्ति का सही मार्गदर्शन नहीं हो पाता।
  • कुव्यवस्था की ओर अग्रसर: अंधे नायकों का अनुगमन समाज को कुव्यवस्था की ओर ले जाता है।

निष्कर्ष

कुल-धर्म और सनातन परम्पराओं का पालन न केवल परिवार बल्कि समाज की संरचना को भी मजबूत बनाता है। यह समाज को व्यवस्थित और उद्देश्यपूर्ण जीवन जीने के लिए प्रेरित करता है। अनुत्तरदायी नायकों का प्रभाव समाज को विनाश की ओर ले जाता है, जिससे अव्यवस्था और कुव्यवस्था फैलती है। इसलिए, परिवार और समाज की भलाई के लिए इन परम्पराओं का पालन करना अत्यंत आवश्यक है।

Resources : श्रीमद्भागवत गीता यथारूप – बक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद, गीता प्रेस

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