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Bhagavad Gita Chapter 1 Verse-Shloka 14 – गीता अध्याय 1 श्लोक 14 अर्थ सहित – ततः श्र्वेतैर्हयैर्युक्ते महति…..

श्रीमद् भागवत गीता अध्याय 1 श्लोक 14 (Bhagwat Geeta adhyay 1 shlok 14 in Hindi): कृष्ण और अर्जुन की महत्त्वपूर्ण भूमिका महाभारत के युद्ध में जगजाहिर है। श्रीमद्भगवद्गीता के इस श्लोक में (1.14), यह बताया गया है कि किस प्रकार कृष्ण और अर्जुन ने अपने-अपने दिव्य शंख बजाए, जो उनके विजय का संकेत था।

श्रीमद् भागवत गीता अध्याय 1 श्लोक 14

गीता अध्याय 1 श्लोक 14 अर्थ सहित

Bhagavad Gita Chapter 1 Shloka 14 in Hindi | FestivalHindu.com
Bhagavad Gita Chapter 1 Shloka 14

श्लोक:

ततः श्र्वेतैर्हयैर्युक्ते महति स्यन्दने स्थितौ |
माधवः पाण्डवश्र्चैव दिव्यौ शङ्खौ प्रदध्मतुः || १४ ||

भावार्थ:

ततः – तत्पश्चात्; श्र्वैतैः – श्र्वेत; हयैः – घोड़ों से; युक्ते – युक्त; महति – विशाल; स्यन्दने – रथ में; स्थितौ – आसीन; माधवः – कृष्ण (लक्ष्मीपति) ने; पाण्डव – अर्जुन (पाण्डुपुत्र) ने; च – तथा; एव – निश्चय ही; दिव्यौ – दिव्य; शङखौ – शंख; प्रदध्मतुः – बजाये |

तत्पश्चात् श्वेत घोड़ों द्वारा खींचे जाने वाले विशाल रथ पर आसीन कृष्ण तथा अर्जुन ने अपने-अपने दिव्य शंख बजाये। भीष्मदेव द्वारा बजाए गए शंख की तुलना में, कृष्ण और अर्जुन के शंख दिव्य थे। दिव्य शंखों की ध्वनि से यह सूचित हो रहा था कि दूसरे पक्ष की विजय की कोई आशा नहीं थी क्योंकि कृष्ण पाण्डवों के पक्ष में थे। जहाँ भगवान कृष्ण होते हैं, वहाँ लक्ष्मी भी होती हैं। अतः, विजय और श्री दोनों ही अर्जुन की प्रतीक्षा कर रही थीं। अर्जुन का रथ अग्नि देवता द्वारा प्रदत्त था, जिससे यह सूचित हो रहा था कि तीनों लोकों में जहाँ कहीं भी यह रथ जायेगा, वहाँ विजय निश्चित है।

दिव्य रथ और श्वेत घोड़े

विशाल रथ: श्वेत घोड़ों से युक्त विशाल रथ में सवार कृष्ण और अर्जुन ने दिव्य शंख बजाए।

श्वेत घोड़े: श्वेत घोड़ों की पवित्रता और शक्ति को दर्शाता है।

दिव्य शंखों का महत्त्व

भीष्मदेव द्वारा बजाए गए शंख की तुलना में, कृष्ण और अर्जुन के शंख दिव्य थे। दिव्य शंखों की ध्वनि से यह सूचित हो रहा था कि:

  • दूसरे पक्ष की विजय की कोई आशा न थी।
  • कृष्ण पाण्डवों के पक्ष में थे, जो उनकी विजय का संकेत था।

विजय और लक्ष्मी का संबंध

जहाँ-जहाँ भगवान कृष्ण होते हैं, वहीं लक्ष्मी भी रहती हैं। कृष्ण के शंख द्वारा उत्पन्न दिव्य ध्वनि से सूचित हो रहा था कि:

  • विजय अर्जुन की प्रतीक्षा कर रही थी।
  • लक्ष्मी का निवास भी निश्चित था।

अग्नि देवता का रथ

अर्जुन का रथ अग्नि देवता द्वारा प्रदत्त था, जिससे यह सूचित हो रहा था कि:

  • तीनों लोकों में जहाँ कहीं भी यह रथ जायेगा, वहाँ विजय निश्चित है।

मुख्य बिंदु

  • कृष्ण और अर्जुन ने श्वेत घोड़ों से युक्त विशाल रथ में दिव्य शंख बजाए।
  • भीष्मदेव के शंख की तुलना में कृष्ण और अर्जुन के शंख दिव्य थे।
  • कृष्ण पाण्डवों के पक्ष में थे, जिससे उनकी विजय निश्चित थी।
  • जहाँ-जहाँ भगवान कृष्ण होते हैं, वहाँ लक्ष्मी भी रहती हैं।
  • अर्जुन का रथ अग्नि देवता द्वारा प्रदत्त था, जिससे विजय निश्चित थी।

निष्कर्ष

इस प्रकार, दिव्य शंखों की ध्वनि ने यह स्पष्ट कर दिया कि विजय पाण्डवों की ही होनी थी। कृष्ण और अर्जुन के दिव्य शंखों ने न केवल शत्रु पक्ष को निराश किया बल्कि यह भी बताया कि जहाँ भगवान कृष्ण हैं, वहाँ विजय और समृद्धि का निवास है। अर्जुन का रथ, जो अग्नि देवता द्वारा प्रदत्त था, भी इस बात का संकेत था कि हर परिस्थिति में पाण्डवों की विजय निश्चित थी।

Resources : श्रीमद्भागवत गीता यथारूप – बक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद, गीता प्रेस

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