महाशिवरात्रि पूरे देश में एक भव्य महोत्सव के रूप में मनाई जाती है, क्योंकि इसी दिन भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह संपन्न हुआ था। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, महाशिवरात्रि का व्रत करने से साधक को मोक्ष की प्राप्ति होती है और यह व्रत जीवन में कल्याणकारी माना गया है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था, इसलिए हर वर्ष इस तिथि को महाशिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है। इस पावन अवसर पर देशभर के शिव मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना और महाभिषेक किया जाता है। शिव भक्त इस दिन भगवान शिव की बारात भी निकालते हैं।

धार्मिक मान्यता है कि महाशिवरात्रि पर शिवजी की उपासना और व्रत करने से विवाह में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं और शीघ्र विवाह के योग बनते हैं। इस वर्ष महाशिवरात्रि का पर्व 26 फरवरी, बुधवार को मनाया जाएगा। हमारे प्राचीन धर्म ग्रंथों में महाशिवरात्रि मनाने के तीन प्रमुख कारण बताए गए हैं।
- शिव-पार्वती के मिलन की रात्रि – यह पावन रात्रि भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह की प्रतीक है, जो सत्य और अटल प्रेम का संदेश देती है।
- शिवलिंग के रूप में प्राकट्य – इसी दिन भगवान शिव ने स्वयं को शिवलिंग के रूप में प्रकट किया था, जो कल्याण और सृजन का प्रतीक माना जाता है।
- नीलकंठ की उपाधि – समुद्र मंथन के दौरान उत्पन्न कालकूट विष का पान कर भगवान शिव ने संपूर्ण सृष्टि की रक्षा की और नीलकंठ कहलाए। यह घटना त्याग, बलिदान और विश्वकल्याण का संदेश देती है।
भगवान शिव सत्यम, शिवम, सुंदरम के प्रतीक हैं।
वे सत्व, रज और तम – इन तीनों गुणों के स्वामी माने जाते हैं। संस्कृत साहित्य के महान उपन्यासकार श्री बाणभट्ट ने अपनी प्रसिद्ध रचना कादंबरी में मंगलाचरण के अंतर्गत शिवजी की स्तुति करते हुए लिखा है:
“रजोजुषे जन्मनि सत्ववृत्तये स्थितौ प्रजानां प्रलये तमःस्पृशे।
अजाय सर्गस्थितिनाशहेतवे त्रयीमयाय त्रिगुणात्मने नमः॥”
भोलेनाथ इस संसार में संतुलन बनाए रखते हैं और उनकी कृपा से मृत्यु भी टल सकती है। सनातन धर्म में शिवजी को सबसे बड़े आराध्य देवता माना जाता है। शिव शब्द से ई हटाने पर शव रह जाता है, जिसका अर्थ होता है निर्जीव शरीर। यही ई शक्ति का प्रतीक है, जो शिव में ऊर्जा का संचार कर उन्हें सृजन और संहार के स्वरूप में स्थापित करती है। इसी कारण किसी गंभीर बीमारी या संकट से मुक्ति पाने के लिए महामृत्युंजय मंत्र का जाप किया जाता है:
“ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥”
इस मंत्र का अर्थ है – हम भगवान शिव की आराधना करते हैं, जिनके तीन नेत्र हैं, जो सुगंध और आरोग्य प्रदान करने वाले हैं। जिस प्रकार एक फल बेल से अलग होकर मुक्त हो जाता है, उसी प्रकार हमें भी मृत्यु और नश्वरता के बंधन से मुक्ति प्राप्त हो।
महाशिवरात्रि के दिन करें इस स्तोत्र का पाठ (Shiv Panchakshar Stotra Path Lyrics)
महाशिवरात्रि के दिन प्रातः स्नान कर शुद्ध मन से व्रत का संकल्प लेना चाहिए। शिवालय जाकर श्रद्धा भाव से शिवलिंग पर जल अर्पित करें। रात्रि में दूध, दही, घी, शक्कर और शहद से अभिषेक करने के पश्चात भांग, धतूरा और बेलपत्र अर्पित करें। इस शुभ रात्रि में जागरण करते हुए शिव भजन का संकीर्तन करें या शिव चर्चा में शामिल हों। इस पावन अवसर पर भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए शिव पंचाक्षर स्तोत्र का सस्वर पाठ करना अत्यंत फलदायी माना जाता है। इस स्तोत्र का गायन करने से विवाह में आ रही है किसी भी प्रकार की बाधा से मुक्ति मिलती है।
शिव पंचाक्षर स्तोत्र पाठ
नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय
भास्माङगारागाया महेश्वराय
नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय
तस्मै “न” कराय नमः शिवाय
मंदाकिनी सलिलचन्दन चर्चिताय
नन्दीश्वर प्रमथनाथ महेश्वराय
मंदारपुष्प बहुपुष्प सुपूजिताय
तस्मै “म” काराय नमः शिवाय
शिवाय गौरिवदनाब्जवृन्द
सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय
श्रीनीलकण्ठाय वृषध्वजाय
तस्मै “शि” काराय नमः शिवाय
वसिष्ठकुम्भोद्भवगौतमार्य
मुनीन्द्रदेवार्चितशेखराय
चन्द्रार्क वैश्वानरलोचनाय
तस्मै “व” काराय नमः शिवाय
यक्षस्वरूपाय जटाधराय
पिनाकहस्ताय सनातनाय
दिव्याय देवाय दिगम्बराय
तस्मै “य” काराय नमः शिवाय
पञ्चाक्षरमिदं पुण्यं यः पठेच्छिवसन्निधौ ।
शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते ॥
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