श्रीमद् भागवत गीता अध्याय 3 श्लोक 3 (Bhagavad Gita Chapter 3 Verse 3 in Hindi): भगवद्गीता हिंदू धर्म का एक पवित्र ग्रंथ है, जो मनुष्य को जीवन के उच्चतम लक्ष्य, यानी आत्म-साक्षात्कार की ओर मार्गदर्शन करता है। गीता के तीसरे अध्याय के तीसरे श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को दो प्रमुख मार्गों के बारे में बताया है, जिनके माध्यम से मनुष्य परमात्मा तक पहुँच सकता है। ये मार्ग हैं – ज्ञानयोग और कर्मयोग। आइए, इन दोनों मार्गों को विस्तार से समझें।
श्रीमद् भागवत गीता अध्याय 3 श्लोक 3 (Bhagavad Gita Chapter 3 Verse 3)
श्लोक 3 . 3
Bhagavad Gita Chapter 3 Verse-Shloka 3
श्रीभगवानुवाच लोकेस्मिन्द्विविधा निष्ठा पुरा प्रोक्ता मयानघ |
ज्ञानयोगेन सांख्यानां कर्मयोगेन योगिनाम् || ३ ||
गीता अध्याय 3 श्लोक 3 अर्थ सहित (Gita Chapter 3 Verse 3 in Hindi with meaning)

भगवद्गीता श्लोक 3.3 का संदेश
श्लोक:
लोकेऽस्मिन् द्विविधा निष्ठा पुरा प्रोक्ता मयानघ।
ज्ञानयोगेन सांख्यानां कर्मयोगेन योगिनाम्॥
श्री-भगवान् उवाच – श्रीभगवान ने कहा; लोके – संसार में; अस्मिन् – इस; द्वि-विधा – दो प्रकार की; निष्ठा – श्रद्धा; पुरा – पहले; प्रोक्ता – कही गई; मया – मेरे द्वारा; अनघ – हे निष्पाप; ज्ञान-योगेन – ज्ञानयोग के द्वारा; सांख्यानाम् – ज्ञानियों का; कर्म-योगेन – भक्तियोग के द्वारा; योगिनाम् – भक्तों का |
भावार्थ:
भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं – हे निष्पाप अर्जुन! इस संसार में आत्म-साक्षात्कार के लिए दो प्रकार की श्रद्धा या निष्ठा है। एक है ज्ञानयोग, जो ज्ञानियों के लिए है, और दूसरा है कर्मयोग, जो कर्मयोगियों के लिए है।
ज्ञानयोग: ज्ञान के माध्यम से आत्म-साक्षात्कार
ज्ञानयोग उन लोगों के लिए है, जो वैश्लेषिक चिंतन और दर्शन के माध्यम से सत्य को समझने का प्रयास करते हैं। यह मार्ग बौद्धिक जिज्ञासा और तर्क पर आधारित है।
ज्ञानयोग की विशेषताएँ:
- यह मार्ग सांख्य दर्शन से प्रेरित है।
- इसमें आत्मा और प्रकृति के बीच के अंतर को समझना शामिल है।
- यह उन लोगों के लिए उपयुक्त है, जो गहन चिंतन और मनन करना चाहते हैं।
- इस मार्ग में व्यक्ति अपने बुद्धि और विवेक का उपयोग करता है।
कर्मयोग: भक्ति और सेवा के माध्यम से मोक्ष
कर्मयोग उन लोगों के लिए है, जो भक्ति और निष्काम कर्म के माध्यम से परमात्मा तक पहुँचना चाहते हैं। यह मार्ग कर्म के बंधनों से मुक्ति दिलाता है।
कर्मयोग की विशेषताएँ:
- यह मार्ग भक्ति और सेवा पर केंद्रित है।
- इसमें व्यक्ति अपने सभी कर्मों को भगवान को समर्पित कर देता है।
- यह मार्ग सरल और सीधा है, जो हर किसी के लिए सुलभ है।
- इसमें इंद्रियों को नियंत्रित करने की आवश्यकता नहीं होती, क्योंकि भक्ति स्वयं ही शुद्धिकरण की प्रक्रिया है।
ज्ञानयोग और कर्मयोग: तुलना
ज्ञानयोग | कर्मयोग |
---|---|
बौद्धिक चिंतन और दर्शन पर आधारित | भक्ति और सेवा पर आधारित |
ज्ञानियों के लिए उपयुक्त | सभी के लिए सुलभ |
अप्रत्यक्ष मार्ग | प्रत्यक्ष मार्ग |
इंद्रियों को नियंत्रित करना आवश्यक | भक्ति स्वयं शुद्धिकरण करती है |
कृष्णभावनामृत: दोनों मार्गों का अंतिम लक्ष्य
भगवद्गीता के अनुसार, चाहे कोई ज्ञानयोग का अनुसरण करे या कर्मयोग का, अंतिम लक्ष्य कृष्णभावनामृत को प्राप्त करना है। कृष्णभावनामृत का अर्थ है – भगवान श्रीकृष्ण के प्रति शुद्ध प्रेम और भक्ति।
कृष्णभावनामृत के लाभ:
- यह मनुष्य को कर्म के बंधनों से मुक्त करता है।
- यह सरल और दिव्य प्रक्रिया है।
- इसमें व्यक्ति सीधे भगवान से जुड़ जाता है।
- यह मार्ग धर्म और दर्शन का सही संतुलन प्रदान करता है।
निष्कर्ष
भगवद्गीता का यह श्लोक हमें सिखाता है कि आत्म-साक्षात्कार के लिए दो मार्ग हैं – ज्ञानयोग और कर्मयोग। ज्ञानयोग बौद्धिक जिज्ञासा वालों के लिए है, जबकि कर्मयोग भक्ति और सेवा में रुचि रखने वालों के लिए है। हालाँकि, दोनों मार्गों का अंतिम लक्ष्य एक ही है – कृष्णभावनामृत। इसलिए, चाहे हम किसी भी मार्ग को चुनें, हमें अपने जीवन का उद्देश्य भगवान की सेवा और प्रेम को बनाना चाहिए।
Resources : श्रीमद्भागवत गीता यथारूप – बक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद, गीता प्रेस