श्रीमद् भागवत गीता अध्याय 3 श्लोक 2 (Bhagavad Gita Chapter 3 Verse 2 in Hindi): भगवद्गीता के तीसरे अध्याय में कर्मयोग का गहन विवेचन किया गया है, जो मनुष्य को जीवन के भ्रम से मुक्त करके सही मार्ग दिखाता है। इस अध्याय के श्लोक 3.2 में अर्जुन भगवान कृष्ण से प्रश्न करते हैं कि उनके अनेकार्थक और गूढ़ उपदेशों से उनकी बुद्धि भ्रमित हो गई है। वह स्पष्टता चाहते हैं कि उनके लिए सर्वश्रेष्ठ मार्ग क्या है, जिससे वह वास्तविक लाभ प्राप्त कर सकें। यह श्लोक न केवल अर्जुन के लिए, बल्कि हर उस व्यक्ति के लिए प्रासंगिक है जो जीवन में सही दिशा और उद्देश्य की तलाश में है। इस लेख में हम श्लोक 3.2 के माध्यम से कर्मयोग के महत्व, अर्जुन के प्रश्न के तात्पर्य और जीवन में इसकी उपयोगिता को समझेंगे।
श्रीमद् भागवत गीता अध्याय 3 श्लोक 2 (Bhagavad Gita Chapter 3 Verse 2)
श्लोक 3 . 2
Bhagavad Gita Chapter 3 Verse-Shloka 2
व्यामिश्रेणेव वाक्येन बुद्धिं मोहयसीव मे |
तदेकं वद निश्र्चित्य येन श्रेयोSहमाप्नुयाम् || २ ||
गीता अध्याय 3 श्लोक 2 अर्थ सहित (Gita Chapter 3 Verse 2 in Hindi with meaning)

श्लोक 3.2: भ्रम से मुक्ति की ओर
व्यामिश्रेणेव वाक्येन बुद्धिं मोहयसीव मे।
तदेकं वद निश्र्चित्य येन श्रेयोSहमाप्नुयाम्॥ २॥
शब्दार्थ
- व्यामिश्रेण – अनेकार्थक
- इव – मानो
- वाक्येन – शब्दों से
- बुद्धिम् – बुद्धि
- मोहयसि – मोहित कर रहे हो
- मे – मेरी
- तत् – अतः
- एकम् – एकमात्र
- वद – कहिये
- निश्र्चित्य – निश्चय करके
- येन – जिससे
- श्रेयः – वास्तविक लाभ
- अहम् – मैं
- आप्नुयाम् – पा सकूँ
भावार्थ
अर्जुन कहते हैं, “हे कृष्ण! आपके अनेकार्थक और गूढ़ उपदेशों से मेरी बुद्धि भ्रमित हो गई है। कृपया मुझे स्पष्ट रूप से बताएं कि मेरे लिए सर्वश्रेष्ठ मार्ग क्या है, जिससे मैं वास्तविक लाभ प्राप्त कर सकूं।”
तात्पर्य
पिछले अध्याय में, भगवद्गीता में सांख्ययोग, बुद्धियोग, इंद्रिय निग्रह, निष्काम कर्मयोग और नवदीक्षित की स्थिति जैसे विभिन्न मार्गों का वर्णन किया गया है। हालांकि, इनमें एक स्पष्ट तारतम्य नहीं था। अर्जुन को लगा कि कर्म करने और समझने के लिए एक व्यवस्थित मार्गदर्शन की आवश्यकता है। इसलिए, वह भगवान कृष्ण से प्रश्न करते हैं ताकि सामान्य मनुष्य भी बिना किसी भ्रम के इन उपदेशों को समझ सके।
कर्मयोग: जीवन का सर्वोत्तम मार्ग
कर्मयोग क्या है?
कर्मयोग का अर्थ है “कर्म के माध्यम से ईश्वर से जुड़ना”। यह मार्ग हमें सिखाता है कि हम अपने कर्तव्यों को बिना फल की इच्छा के कैसे पूरा कर सकते हैं।
कर्मयोग के मुख्य सिद्धांत
- निष्काम कर्म: बिना फल की इच्छा के कर्म करना।
- स्वधर्म का पालन: अपने कर्तव्यों को ईमानदारी से निभाना।
- ईश्वर को समर्पण: सभी कर्मों को भगवान के चरणों में अर्पित करना।
कर्मयोग का महत्व
- यह मनुष्य को भ्रम और चिंता से मुक्त करता है।
- यह आत्मिक शांति और आनंद प्रदान करता है।
- यह जीवन में संतुलन और स्थिरता लाता है।
अर्जुन का प्रश्न: भ्रम से मुक्ति
अर्जुन का यह प्रश्न न केवल उनके लिए, बल्कि हर उस व्यक्ति के लिए महत्वपूर्ण है जो जीवन में सही मार्ग खोजना चाहता है। उनका प्रश्न हमें यह सिखाता है कि:
- जीवन में स्पष्टता और निश्चय की आवश्यकता होती है।
- भ्रमित होने पर गुरु या मार्गदर्शक की शरण लेना चाहिए।
- सच्चा लाभ केवल सही ज्ञान और निर्णय से ही प्राप्त होता है।
कृष्णभावनामृत: जीवन का उद्देश्य
अर्जुन के प्रश्न का उत्तर देते हुए, भगवान कृष्ण ने कृष्णभावनामृत का मार्ग प्रशस्त किया। यह मार्ग हमें सिखाता है कि:
- हर कर्म को भगवान के प्रति प्रेम और समर्पण के साथ करना चाहिए।
- जीवन का उद्देश्य केवल भौतिक सुख नहीं, बल्कि आत्मिक उन्नति है।
- कर्मयोग के माध्यम से हम ईश्वर के साथ एकाकार हो सकते हैं।
निष्कर्ष
भगवद्गीता का यह अध्याय हमें यह सिखाता है कि जीवन में सफलता और शांति पाने के लिए कर्मयोग सर्वश्रेष्ठ मार्ग है। अर्जुन के प्रश्न और भगवान कृष्ण के उत्तर हमें यह प्रेरणा देते हैं कि हम अपने कर्तव्यों को ईमानदारी से निभाएं और सभी कर्मों को ईश्वर को समर्पित करें। इस तरह, हम न केवल भ्रम से मुक्त हो सकते हैं, बल्कि जीवन के वास्तविक लाभ को भी प्राप्त कर सकते हैं।
Resources : श्रीमद्भागवत गीता यथारूप – बक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद, गीता प्रेस