पद्मपुराण में भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को बताया कि इस एकादशी का नाम विजया एकादशी है। इसका नाम ही इसके कल्याणकारी और विजय दिलाने वाले गुणों को दर्शाता है। इस एकादशी की महत्ता को संसार में प्रचारित करने के लिए स्वयं भगवान राम ने भी इस एकादशी का व्रत किया था। इसके बाद से विजय और मोक्ष की प्राप्ति के लिए लोग इस एकादशी का व्रत करने लगे।

विजया एकादशी की व्रत कथा
विजया एकादशी की व्रत कथा के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण ने बताया कि जब भगवान राम लंका पर विजय प्राप्त करने के लिए वानर सेना के साथ समुद्र तट पर पहुंचे, तो उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती यह थी कि वे अपनी सेना के साथ समुद्र को कैसे पार करें। इस समस्या को लेकर भगवान राम चिंतित हो गए। तब लक्ष्मणजी ने भगवान राम से कहा, “हे प्रभु, आप सब कुछ जानते हुए भी मानवीय लीला कर रहे हैं। इस छोटी सी समस्या के कारण आप चिंतित हैं। कृपया अपनी चिंता दूर करने के लिए पास में ही निवास करने वाले ऋषि बकदाल्भ्य से मिलें। वे आपको आगे का मार्ग बता सकते हैं।”
लक्ष्मणजी के आग्रहपूर्ण वचनों को सुनकर भगवान राम बकदाल्भ्य ऋषि के पास गए। उन्होंने ऋषि को अपनी सारी समस्याएं बताई और समाधान का मार्ग पूछा। ऋषि ने सलाह दी कि फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को सेना सहित भगवान नारायण की पूजा करें। इस विजया नामक एकादशी का व्रत ही उन्हें आगे बढ़ने का रास्ता प्रदान करेगा।
एक कलश पर पल्लव रखकर भगवान नारायण की प्रतिमा स्थापित करके उनकी पूजा करें। रात को जागरण करते हुए भगवान का नाम स्मरण करें और कीर्तन भजन गाएं। अगली सुबह भगवान की पूजा के बाद ब्राह्मण को दान दक्षिणा दें। इस व्रत से प्रतिष्ठा, विजय, संकट से मुक्ति और मोक्ष की प्राप्ति होती है। जो इस एकादशी व्रत की कथा को सुनता और पढ़ता है, उसे वाजपेयी नामक उत्तम यज्ञ का पुण्य प्राप्त होता है।
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