शरद पूर्णिमा का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। इस दिन चंद्रमा अपनी पूर्ण कला में होता है और उसकी शीतल चांदनी से धरती नहाती है। ऐसा माना जाता है कि इस रात चंद्रमा से अमृत की वर्षा होती है, जो अमरत्व का प्रतीक है। शरद पूर्णिमा की रात भगवान लक्ष्मी और भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना की जाती है। भगवान विष्णु को इस रात शेषनाग के ऊपर विश्राम करते हुए और माता लक्ष्मी को उनकी चरणों की सेवा में लीन रहते हुए दर्शाया जाता है। शरद पूर्णिमा की पूजा से भक्तों को वैभव, समृद्धि और सुख का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

शरद पूर्णिमा 2024: तिथि और शुभ मुहूर्त (Sharad Purnima 2024 Date & Time)
शरद पूर्णिमा का पर्व वर्ष 2024 में 16 अक्टूबर, बुधवार के दिन मनाया जाएगा। आइए, इस दिन से जुड़ी तिथियों और शुभ मुहूर्तों को विस्तार से जानें:
- पूर्णिमा तिथि प्रारंभ: 16 अक्टूबर 2024, सुबह 03:33 बजे
- पूर्णिमा तिथि समाप्त: 17 अक्टूबर 2024, सुबह 02:02 बजे
- लक्ष्मी पूजन का शुभ मुहूर्त: 16 अक्टूबर 2024, शाम 06:11 बजे से 08:26 बजे तक
- कोजागरी व्रत का पारण: 17 अक्टूबर 2024, सुबह 08:15 बजे
इन तिथियों और मुहूर्तों को ध्यान में रखते हुए आप शरद पूर्णिमा का पर्व विधि-विधान से मना सकते हैं।
शरद पूर्णिमा की पूजा विधि (Sharad Purnima Puja Vidhi)
शरद पूर्णिमा के पर्व को मनाने के लिए शुभ मुहूर्त में पूजा का आयोजन किया जाता है। आइए, इस दिन की पूजा विधि को चरण दर चरण समझते हैं:
- स्नान और स्वच्छ वस्त्र: शरद पूर्णिमा के दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें और स्वच्छ एवं धुले हुए वस्त्र धारण करें।
- पूजा स्थान की साफ-सफाई: पूजा स्थल को साफ-सुथरा करें और चौकी या आसन बिछाएं।
- आसन और मूर्ति स्थापना: आसन पर लाल कपड़ा बिछाएं और भगवान लक्ष्मी और भगवान विष्णु की मूर्ति या प्रतिमा स्थापित करें।
- षोडशोपचार पूजा: भगवान को अक्षत, पुष्प, फल, मिठाई और पंचामृत अर्पित करें। इसके बाद धूप और दीप जलाएं।
- शरद पूर्णिमा कथा: शरद पूर्णिमा से जुड़ी कथा का पाठ करें या किसी विद्वान से श्रवण करें।
- मंत्र जाप और आरती: श्री लक्ष्मी चालीसा का पाठ करें और भगवान लक्ष्मी एवं भगवान विष्णु की आरती उतारें। आप “ॐ श्रीं महालक्ष्मीये नमः” या “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” जैसे मंत्रों का जाप भी कर सकते हैं।
- व्रत और रात्रि जागरण: कुछ श्रद्धालु शरद पूर्णिमा के दिन व्रत रखते हैं और रातभर जागरण करके भक्तिभाव में लीन रहते हैं।
- व्रत पारण: अगले दिन सूर्योदय के बाद व्रत का पारण करें। आप अपने इष्टानुसार खीर, पूड़ी या अन्य शुद्ध शाकाहारी भोजन ग्रहण कर सकते हैं।
माता लक्ष्मी को प्रसन्न करने के विशेष उपाय (Special ways to please Goddess Lakshmi)
शरद पूर्णिमा मुख्य रूप से माता लक्ष्मी की आराधना का पर्व है। इस दिन कुछ विशेष उपाय करके आप माता लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं:
- लक्ष्मी पूजन: शरद पूर्णिमा के दिन विधि-विधान से लक्ष्मी पूजन का आयोजन करें।
- कौड़ियां और अष्टलक्ष्मी: माता लक्ष्मी को कौड़ियां और अष्टलक्ष्मी अर्पित करें। कौड़ियां धन-धान्य की प्रतीक मानी जाती हैं, वहीं अष्टलक्ष्मी आठ प्रकार की लक्ष्मी का स्वरूप हैं, जिनकी कृपा से जीवन में सभी प्रकार की संपन्नता प्राप्त होती है।
- दीपों से घर की सजावट: अपने घर को दीपों से जगमगाएं। माता लक्ष्मी को प्रकाश अत्यंत प्रिय है। यह माना जाता है कि दीपों की रोशनी से नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बढ़ता है।
- गाय को गुड़ और चावल: गाय को पवित्र माना जाता है। शरद पूर्णिमा के दिन गाय को गुड़ और चावल खिलाएं। इस कर्म से पुण्य की प्राप्ति होती है और माता लक्ष्मी की कृपा बरसती है।
- दान का महत्व: दान का कार्य सभी धर्मों में श्रेष्ठ माना जाता है। शरद पूर्णिमा के पावन अवसर पर गरीबों और जरूरतमंदों को दान करें। इससे समाज में सुख-समृद्धि का प्रसार होता है और माता लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं।
शरद पूर्णिमा की लोक मान्यताएं और परंपराएं
शरद पूर्णिमा के साथ कई लोक मान्यताएं और परंपराएं भी जुड़ी हुई हैं। आइए, इनके बारे में भी जानते हैं:
- अमृत वर्षा: कुछ क्षेत्रों में यह मान्यता है कि शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा से अमृत की वर्षा होती है। लोग इस रात छत पर खीर या दूध से भरे बर्तन रखते हैं, ताकि उसमें अमृत की कुछ बूंदें गिर जाएं।
- खीर का भोग: शरद पूर्णिमा पर खीर का विशेष महत्व है। इस दिन भगवान को खीर का भोग लगाया जाता है और प्रसाद के रूप में भी ग्रहण किया जाता है। खीर चावल, दूध और चीनी से मिलकर बना एक मीठा व्यंजन है, जो इस त्योहार की मिठास का प्रतीक माना जाता है।
- आकाशदीप: दक्षिण भारत में शरद पूर्णिमा के दिन आकाशदीप जलाने की परंपरा है। इसके लिए एक बड़े बांस के ढांचे पर कपड़े का लेप लगाकर उसमें तेल भरकर जलाया जाता है। यह दीप दूर से ही दिखाई देता है और वातावरण को रोशन करता है।
- कौमुदी व्रत कथा: शरद पूर्णिमा को कुछ क्षेत्रों में कौमुदी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन कौमुदी व्रत कथा का पाठ किया जाता है, जो भगवान इंद्र और देवताओं से जुड़ी एक रोचक कथा है। इस कथा के अनुसार, एक बार देवताओं को दानवों से पराजय का सामना करना पड़ा था। देवताओं ने विष्णु भगवान से सहायता मांगी। भगवान विष्णु ने देवताओं को उपदेश दिया कि वे शरद पूर्णिमा के दिन कौमुदी व्रत रखें और माता लक्ष्मी की आराधना करें। देवताओं ने विष्णु भगवान के बताए अनुसार व्रत रखा और माता लक्ष्मी की पूजा की। माता लक्ष्मी ने देवताओं को आशीर्वाद दिया, जिसके बल पर देवताओं ने दानवों पर विजय प्राप्त की।
- कला और साहित्य में शरद पूर्णिमा: शरद पूर्णिमा की मनमोहक चांदनी ने सदियों से कलाकारों और साहित्यकारों को प्रेरित किया है। कवियों ने इस रात की खूबसूरती का वर्णन अपनी रचनाओं में किया है, तो वहीं कलाकारों ने अपनी कलाकृतियों में शरद पूर्णिमा के चांद्र प्रकाश को जीवंत किया है। शरद पूर्णिमा भारतीय संस्कृति का एक अभिन्न अंग है, जो हमें प्रकृति के सौंदर्य और आध्यात्मिकता का बोध कराती है।
उपसंहार
शरद पूर्णिमा का पर्व खुशियों और समृद्धि का स्वागत करने का अवसर है। इस दिन हम प्रकृति के सौंदर्य का आनंद लेते हैं, भगवान की आराधना करते हैं और अपने प्रियजनों के साथ मिलकर खुशियां मनाते हैं। शरद पूर्णिमा हमें दान, परोपकार और सकारात्मकता का महत्व भी सिखाती है। आइए, इस पावन अवसर पर हम सब मिलकर प्रार्थना करें कि माता लक्ष्मी हमारे जीवन में सुख-समृद्धि का वास करें और सारा संसार खुशियों से भरपूर रहे।
ALSO READ:-
Laxmi Mata Ki Aarti : लक्ष्मी माता की आरती ॐ जय लक्ष्मी माता…