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Makar Sankranti 2025: मकर संक्रांति के दिन कब करें स्नान जाने तिथि और धर्मराज से जुड़ी पौराणिक कथा

मकर संक्रांति फसल के मौसम की शुरुआत और सूर्य के मकर राशि में प्रवेश का प्रतीक है। इसके बाद दिन बड़े होने लगते हैं और उत्तरायण की अवधि लगभग छह महीने तक रहती है। साल की सभी 12 संक्रांतियों में से मकर संक्रांति को सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन लोग गंगा स्नान, सूर्य को अर्घ्य और दान-पुण्य जैसे शुभ कार्य करते हैं। आइए जानते हैं, इस दिन स्नान का सबसे अच्छा समय क्या है, ताकि शुभ फल प्राप्त किया जा सके।

मकर संक्रांति
Makar Sankranti 2025

मकर संक्रांति 2025 स्नान मुहूर्त

हिंदू पंचांग के अनुसार, मकर संक्रांति पर महा पुण्यकाल की शुरुआत सुबह 09 बजकर 03 मिनट पर होगी और इसका समापन सुबह 10 बजकर 48 मिनट पर होगा। पुण्य काल सुबह 09 बजकर 03 मिनट से शाम 05 बजकर 46 मिनट तक रहेगा। इसके अलावा, ब्रह्म मुहूर्त सुबह 05 बजकर 27 मिनट से 06 बजकर 21 मिनट तक रहेगा। इस समयावधि में स्नान करना अत्यंत शुभ माना जाता है। इसलिए, मकर संक्रांति के दिन इन शुभ मुहूर्तों में स्नान कर पुण्य का लाभ उठाया जा सकता है।

मकर संक्रांति महत्व

मकर संक्रांति पर गंगा स्नान का अत्यधिक महत्व होता है, खासकर प्रयागराज के त्रिवेणी तट पर। इस दिन कुंभ के चलते इसका महत्व और भी बढ़ जाता है। स्नान के लिए सबसे शुभ समय ब्रह्म मुहूर्त माना जाता है। ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करने से विशेष पुण्य और लाभ प्राप्त होता है। इसलिए, मकर संक्रांति के दिन ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करने की परंपरा को विशेष रूप से महत्व दिया जाता है। महा पुण्य काल और पुण्य काल में स्नान करने का भी विधान है। माना जाता है कि गंगा स्नान से सभी कष्ट समाप्त हो जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

मकर संक्रांति 2025 पर स्नान करते हुए इन मंत्रों का करें जाप

  • गंगा पापं शशी तापं दैन्यं कल्पतरुस्तथा। पापं तापं च दैन्यं च हन्ति सज्जनसङ्गमः।।
  • ऊँ आदित्याय विदमहे दिवाकराय धीमहि तन्न: सूर्य: प्रचोदयात ।।
  • नमामि गंगे! तव पादपंकजं सुरसुरैर्वन्दितदिव्यरूपम्। भुक्तिं च मुक्तिं च ददासि नित्यम् भावानुसारेण सदा नराणाम्।।
  • ॐ सप्त-तुरंगाय विद्महे सहस्र-किरणाय धीमहि तन्नो रविः प्रचोदयात् ।।
  • ऊँ आकृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्नमृतं मर्त्यण्च ।हिरण्य़येन सविता रथेन देवो याति भुवनानि पश्यन ।।

मकर संक्रांति पौराणिक कथा

एक समय की बात है जब पृथ्वीलोक पर बबरुवाहन नामक राजा का राज था। उनके राज्य में हर प्रकार की समृद्धि थी। वहीं, एक हरिदास नामक ब्राह्मण भी रहता था, जिसकी पत्नी गुणवती धर्मव्रत और पतिव्रता थी। गुणवती ने अपना पूरा जीवन देवी-देवताओं की उपासना में समर्पित कर दिया था। वह सभी प्रकार के व्रत और दान धर्म करती थी और अतिथि सेवा को अपना धर्म मानती थी। अपनी भक्ति में लगी गुणवती धीरे-धीरे वृद्ध हो गई और मृत्यु के बाद धर्मराज के दूत उसे यमलोक ले गए। यमलोक में यमराज के सुंदर सिंहासन पर विराजमान थे और चित्रगुप्त उनके समीप बैठे थे।

चित्रगुप्त धर्मराज को प्राणियों का लेखा-जोखा सुना रहे थे, तभी यमदूत गुणवती को लेकर पहुंचे। गुणवती यमराज को देखकर भयभीत हो गई और सिर झुकाकर खड़ी हो गई। चित्रगुप्त ने गुणवती का ब्यौरा धर्मराज को सुनाया। धर्मराज ने गुणवती के सत्कर्मों की प्रशंसा की, लेकिन उनके चेहरे पर उदासी देखी। गुणवती ने पूछ लिया, “हे प्रभु, मैंने जीवन में सारे सत्कर्म किए हैं, फिर भी आपके चेहरे पर उदासी क्यों है? क्या मुझसे कोई भूल हुई है?”

धर्मराज ने कहा, “हे देवी, तुमने सभी देवी-देवताओं के व्रत और उपासना तो की है, लेकिन मेरे नाम से कभी कोई पूजा या दान नहीं किया।” गुणवती ने क्षमा याचना करते हुए कहा, “हे प्रभु, मुझे आपकी उपासना के बारे में जानकारी नहीं थी। कृपया मुझे ऐसा उपाय बताएं, जिससे सभी मनुष्य आपकी कृपा के पात्र बन सकें। मैं मृत्यु लोक पर जाकर आपकी भक्ति करना चाहती हूं और लोगों को इसके बारे में बताना चाहती हूं।” धर्मराज ने बताया, “मकर संक्रांति के दिन से मेरी पूजा शुरू करनी चाहिए और एक साल तक मेरी कथा सुननी चाहिए।

मेरी पूजा करने वालों को धीरज रखना, मन को वश में रखना, क्षमा करना, किसी प्रकार का दुष्कर्म नहीं करना, मानसिक और शारीरिक शुद्धि का ध्यान रखना, इन्द्रियों को वश में रखना, बुरे विचारों को मन में न लाना, पूजा-पाठ और दान पुण्य करना, व्रत रखना और सच बोलना जैसे धर्म के दस नियमों का पालन करना चाहिए। एक साल तक मेरी कथा नियम से सुनें, दान पुण्य और परोपकार के काम करें, और अगली मकर संक्रांति पर इस व्रत का उद्यापन करें। इसके बाद मेरी मूर्ति बनाकर विधि विधान से प्राण प्रतिष्ठा करवाएं और हवन पूजन करें, साथ ही चित्रगुप्त की पूजा भी करें।”

इसके बाद गुणवती ने ब्राह्मण भोज का आयोजन किया और बांस की टोकरी में 5 सेर अनाज का दान किया। साथ ही, जरूरतमंदों को गद्दा, तकिया, कम्बल, छप्पन, लोटा और वस्त्र आदि का दान किया। संभव हो तो गाय का दान भी किया। धर्मराज की पूरी कथा सुनने के बाद, गुणवती ने पुनः धर्मराज से प्रार्थना की कि हे प्रभु! मुझे मृत्यु-लोक में वापस जाने दें ताकि मैं आपका व्रत कर सकूं और इस व्रत का प्रचार लोगों में कर सकूं।

धर्मराज ने उसकी प्रार्थना स्वीकार की और गुणवती को धरती पर लौटने की अनुमति दी। धरती पर वापस आकर, गुणवती ने धर्मराज द्वारा बताए गए व्रत के बारे में अपने पति को बताया। मकर संक्रांति पर गुणवती और उसके पति ने इस व्रत को शुरू किया और धर्मराज की कृपा से उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हुई।

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