महाकुंभ का सबसे प्रमुख आकर्षण शाही स्नान होता है, जिसे दुनियाभर से लोग देखने आते हैं। शाही स्नान के साथ-साथ नागा साधु भी इस मेले का मुख्य आकर्षण होते हैं। नागा साधुओं का जीवन अन्य साधुओं की तुलना में बहुत कठिन होता है और उनका संबंध शैव परंपरा की स्थापना से जुड़ा है। क्या आप जानते हैं कि पहला नागा साधु कौन था? अगर नहीं, तो आप सही जगह पर हैं। इस आर्टिकल में आपको मिलेगी नागा साधुओ से जुडी कई जानकरी।

अखाड़ा की स्थापना किसने की थी?
8वीं शताब्दी में, आदि शंकराचार्य ने अखाड़ा प्रणाली की स्थापना की। इस प्रणाली के तहत, सनातन धर्म की रक्षा के उद्देश्य से शस्त्र और शास्त्र दोनों में निपुण साधुओं का संगठन बनाया गया।
संगठन की स्थापना किसने की थी?
आदि गुरु शंकराचार्य ने साधुओं और सैनिकों का एक संगठन बनाया, जिन्हें शास्त्र और शस्त्र दोनों का अभ्यास था। इन योद्धा साधुओं को ‘नागा’ नाम दिया गया।
नागा साधु कौन होते हैं?
नागा साधु भगवान शिव के अनुयायी होते हैं, जो तलवार, त्रिशूल, गदा, तीर धनुष जैसे हथियार धारण करते हैं। इन्हें अक्सर महाकुंभ, अर्धकुंभ, या सिंहस्थ कुंभ में देखा जाता है।
नागा योद्धाओं का गठन क्यों किया गया था?
धर्म की रक्षा के लिए, आदि शंकराचार्य ने नागा योद्धाओं को तैयार किया। उन्होंने नागाओं को बाहरी आक्रमणों से पवित्र धार्मिक स्थलों, धार्मिक ग्रंथों और आध्यात्मिक ज्ञान की रक्षा की जिम्मेदारी सौंपी थी।
नागा साधु कैसे बनते हैं?
भारत में नागा साधुओं का इतिहास बहुत पुराना है, लेकिन आज भी उनका जीवन आम लोगों के लिए एक रहस्य बना हुआ है। सनातन परंपरा की रक्षा और इसे आगे बढ़ाने के लिए विभिन्न संन्यासी अखाड़ों में हर महाकुंभ के दौरान नागा साधु बनने की प्रक्रिया अपनाई जाती है।
शस्त्र और शास्त्र का उपयोग क्यों होता था?
आदिगुरु शंकराचार्य भारत के लोगों को यह संदेश देना चाहते थे कि धर्म की रक्षा के लिए शास्त्र के साथ-साथ शस्त्र का होना भी आवश्यक है।
नागा साधु बनने में कितने साल लगते हैं?
नागा साधु बनने की प्रक्रिया कठिन होती है और इसे पूरा करने में 12 साल लगते हैं। नागा साधुओं के पंथ में शामिल होने में लगभग छह साल लगते हैं। इस दौरान, नए सदस्यों के पास पहनने के लिए केवल एक लंगोट होता है। कुंभ मेले में अंतिम प्रण लेने के बाद, वे लंगोट भी त्याग देते हैं।
नागा साधु पिंडदान क्यों करते हैं?
नागा साधु बनने के लिए सबसे पहले लंबे समय तक ब्रह्मचारी के रूप में जीवन व्यतीत करना होता है। इसके बाद, साधु को ‘महापुरुष’ और फिर ‘अवधूत’ का दर्जा दिया जाता है। अंतिम प्रक्रिया महाकुंभ के दौरान संपन्न होती है, जिसमें साधु स्वयं का पिंडदान और दंडी संस्कार करता है, जिसे ‘बिजवान’ कहा जाता है।
नागा साधुओं के 17 श्रृंगार कौन से हैं?
ईष्टदेव महादेव से जुड़े नागा साधुओं के श्रृंगार की सूची:
- भभूत: क्षणभंगुर जीवन की सत्यता का आभास कराती है। नागा साधु इसे सबसे पहले अपने शरीर पर मलते हैं।
- चंदन: भगवान शिव, जिन्होंने हलाहल का पान किया था, को अर्पित किया जाता है। नागा साधु भी अपने हाथ, माथे और गले में चंदन का लेप लगाते हैं।
- रुद्राक्ष: भगवान शिव के आंसुओं से उत्पन्न। नागा साधु सिर, गले और बाजुओं में रुद्राक्ष की माला धारण करते हैं।
- तिलक: माथे पर लंबा तिलक भक्ति का प्रतीक होता है।
- सूरमा: आंखों का शृंगार सूरमा से करते हैं।
- कड़ा: नागा साधु हाथों और पैरों में पीतल, तांबे, सोने या चांदी के अलावा लोहे का कड़ा पहनते हैं। माना जाता है कि भगवान शिव भी पैरों में कड़ा धारण करते थे।
- चिमटा: नागा साधुओं का एक अस्त्र। हमेशा हाथ में रखते हैं।
- डमरू: भगवान शिव का प्रिय वाद्य। नागा साधुओं के श्रृंगार का हिस्सा।
- कमंडल: जल लेकर चलने के लिए धारण करते हैं।
- जटा: प्राकृतिक तरीके से गुथी हुई जटाएं। पांच बार लपेटकर पंचकेश शृंगार किया जाता है।
- लंगोट: भगवा रंग की लंगोट धारण करते हैं।
- अंगूठी: विभिन्न प्रकार की अंगूठियां पहनते हैं, जिनमें से हर एक किसी न किसी बात का प्रतीक होती है।
- रोली: माथे पर भभूत के अलावा रोली का लेप भी लगाते हैं।
- कुंडल: कानों में चांदी या सोने के बड़े-बड़े कुंडल, जो सूर्य और चंद्रमा के प्रतीक माने जाते हैं।
- माला: कमर में माला धारण करते हैं।
- मधुर वाणी: नागा साधुओं की मधुर वाणी उनके श्रृंगार का हिस्सा है।
- साधना: सर्वमंगल की कामना से नागा साधु जो साधना करते हैं, वह उनका महत्वपूर्ण श्रृंगार है।
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