महाकुंभ मेले का पांचवां स्नान पर्व माघी पूर्णिमा इस वर्ष 12 फरवरी, बुधवार को पड़ रहा है। इस दिन कल्पवास का संकल्प पूर्ण होता है, और सभी कल्पवासी कन्या भोज का आयोजन करते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, माघी पूर्णिमा की रात देवी-देवता, किन्नर, गंधर्व, यक्ष और तीर्थ सभी अपने लोकों को लौट जाते हैं। इसलिए इस दिन रात्रि जागरण का विशेष महत्व होता है। साथ ही, ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करना अत्यंत शुभ और पुण्यदायी माना जाता है।

महाकुंभ मेले का पांचवां स्नान पर्व माघी पूर्णिमा इस वर्ष 12 फरवरी, बुधवार को मनाया जाएगा। माघ मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को माघी पूर्णिमा के रूप में मनाने की परंपरा है। इसी के साथ पौष पूर्णिमा से संगम की रेती पर आरंभ हुए भजन, पूजन और अनुष्ठान का समापन भी हो जाता है। माघी पूर्णिमा के पावन स्नान के पश्चात साधु-संत अपने-अपने मठों और मंदिरों की ओर लौट जाते हैं, वहीं कल्पवास कर रहे लाखों श्रद्धालु अगले वर्ष पुनः आने का संकल्प लेकर अपने घर लौटते हैं। इस दिन स्नान और दान का विशेष महत्व बताया गया है, और इस बार ग्रह-नक्षत्रों के विशेष संयोग के कारण यह अवसर और भी अधिक शुभ माना जा रहा है।
माघी पूर्णिमा पर संपन्न होगा कल्पवास (Maghi Purnima 2025)
सनातन धर्म में प्रत्येक धार्मिक अनुष्ठान का पूर्ण फल पूर्णाहुति के माध्यम से प्राप्त होता है। माघी पूर्णिमा के दिन कल्पवास का संकल्प संपन्न होता है। कल्पवास करने वाले श्रद्धालुओं के लिए त्रिजटा स्नान के उपरांत घर लौटने का विधान है। हालांकि, कृष्ण स्नान का शुभ मुहूर्त 14 फरवरी को निर्धारित है, लेकिन अधिकांश कल्पवासी 12 फरवरी, माघी पूर्णिमा के दिन ही संगम में पुण्य स्नान कर अपने घरों को प्रस्थान करेंगे।
कन्या भोज से संपन्न होता है कल्पवास
कल्पवास के समापन पर हर कल्पवासी कन्या भोज का आयोजन करता है। इससे पहले, वे गंगा जी में अपनी सामर्थ्य के अनुसार भोग बनाकर अर्पित करते हैं। तत्पश्चात, गंगा आरती और वंदन कर मां गंगा से क्षमा याचना करते हैं। अंत में, कन्याओं को भोजन कराकर कल्पवास की पूर्णता की जाती है।
माघी पूर्णिमा पर देवी-देवता होंगे विदा
माघी पूर्णिमा के दिन रात्रि जागरण कर भजन-कीर्तन करने की परंपरा होती है। इस अवसर पर देवताओं से प्रार्थना की जाती है कि यदि कोई भूल या त्रुटि हुई हो, तो उसे क्षमा करें। इस दिन सभी देवी-देवता, किन्नर, गंधर्व, यक्ष और तीर्थ विदा होते हैं, इसलिए रात्रि जागरण का विशेष महत्व होता है। अचला सप्तमी पर ऋषि विदा होते हैं, जबकि माघी पूर्णिमा के दिन देवी-देवता, किन्नर और गंधर्व अपनी दिव्य लोकों की ओर प्रस्थान करते हैं।
माघी पूर्णिमा 2025 स्नान मुहूर्त (Maghi Purnima 2025 Snan Muhurat)
स्वामी महेशाश्रम महाराज के अनुसार, पौष पूर्णिमा से अमावस्या तक तिल दान का विशेष महत्व होता है, जबकि माघी पूर्णिमा के दिन चावल (अक्षत) दान करने का विधान है। इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में स्नान कर चावल का दान करना अत्यंत शुभ माना जाता है। माघी पूर्णिमा के दिन त्रिदेव विदा होते हैं, इसलिए सुबह 3:27 बजे से 5:34 बजे तक का ब्रह्म मुहूर्त अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस समय स्नान और दान करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है।
माघी पूर्णिमा पर दान (Maghi Purnima 2025 Daan)
माघी पूर्णिमा के दिन स्नान करने के बाद चावल का दान करना अत्यंत शुभ माना जाता है। मान्यता के अनुसार, कल्पवासियों के लिए यह नियम है कि वे जो अन्न साथ लाए हैं, उसे वापस न ले जाएं। इसके बजाय, संत, महात्मा या जरूरतमंदों को अन्न दान करें और दान किए गए चावल में से एक मुट्ठी प्रसाद के रूप में लें। इस दिन चावल और वस्त्र दान करने का विशेष महत्व होता है, जिससे पुण्य की प्राप्ति होती है और जीवन में समृद्धि बनी रहती है।
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