मधुराष्टकम पाठ: सनातन धर्म में बुधवार का दिन भगवान श्रीकृष्ण और श्रीराधा रानी की विशेष पूजा-अर्चना के लिए अति शुभ माना जाता है। इस दिन श्रद्धापूर्वक विधि-विधान से श्रीकृष्ण और राधारानी की आराधना करने से साधक को विशेष फल की प्राप्ति होती है। इसी दिन भगवान गणेश जी की पूजा का भी विधान बताया गया है। श्रद्धालु अपने-अपने इष्टदेव की भक्ति और उपासना में लीन होकर इस दिन को पवित्र बना सकते हैं।

ऐसा विश्वास किया जाता है कि वे ही साधक सच्चे अर्थों में भगवान श्रीकृष्ण के अनन्य भक्त बन पाते हैं, जो आध्यात्मिक जीवन का अनुसरण करते हैं। जो लोग भौतिक सुख-सुविधाओं में आसक्त रहते हैं, वे भगवान की शरण में नहीं आ पाते। जो व्यक्ति काम, क्रोध और लोभ में डूबे रहते हैं, उन्हें श्रीकृष्ण की दिव्य भक्ति का सच्चा अनुभव नहीं हो पाता।
श्रीमद्भगवद्गीता में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को उपदेश देते हुए कहा है—
“हे पार्थ! जो लोग भौतिक सुखों की प्राप्ति के लिए मेरे नाम का स्मरण या पूजा करते हैं, वे वास्तव में माया के जाल में फंसे रहते हैं। उनके भीतर काम, क्रोध और लोभ छिपा रहता है। वे अपने प्रिय भोगों या वांछित वस्तुओं की प्राप्ति के लिए मेरी आराधना करते हैं। किन्तु जो मन से स्थिर हैं, जिन्होंने अपनी इन्द्रियों पर नियंत्रण पा लिया है, वे ही वास्तव में मेरी शरण में आते हैं। ऐसे भक्तों का उद्धार मैं स्वयं करता हूँ। तुम भी निश्चिंत होकर मेरी शरण में आ जाओ, मैं तुम्हारा भी कल्याण करूंगा।”
अतः हमें तन, मन और धन से पूरी निष्ठा और समर्पण भाव के साथ भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करनी चाहिए। ऐसा करने से श्रीकृष्ण अति प्रसन्न होते हैं और अपनी अनंत कृपा से साधक को मनोवांछित फल प्रदान करते हैं।
यदि आप भी श्रीकृष्ण और श्रीराधा रानी की कृपा प्राप्त करना चाहते हैं, तो बुधवार के दिन विधिवत रूप से उनकी पूजा करें। इस पूजा के समय मधुराष्टकम् का पाठ करना अत्यंत कल्याणकारी माना गया है। मधुराष्टकम् भगवान श्रीकृष्ण के रूप, लीलाओं और उनके संपूर्ण अस्तित्व की मधुरता का अद्भुत गुणगान है, जो भक्ति भाव को और गहराई प्रदान करता है।
मधुराष्टकम के लाभ और महत्त्व
आध्यात्मिक शांति: मधुराष्टकम का नित्य पाठ करने से मन को गहन शांति और सुख की अनुभूति होती है।
भक्ति भाव में वृद्धि: यह स्तोत्र भगवान श्रीकृष्ण के प्रति भक्ति को और प्रगाढ़ करता है और ह्रदय में प्रेम और समर्पण की भावना जाग्रत करता है।
वाणी और विचारों में मधुरता: नियमित रूप से मधुराष्टकम का स्मरण करने से हमारे विचारों, वचनों और कर्मों में माधुर्य आता है।
सकारात्मक ऊर्जा का संचार: इस स्तुति का पाठ वातावरण को सकारात्मकता से भर देता है और जीवन में शुभता का संचार करता है।
मधुराष्टकम पाठ
अधरं मधुरं वदनं मधुरं नयनं मधुरं हसितं मधुरं ।
हृदयं मधुरं गमनं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥१॥
वचनं मधुरं चरितं मधुरं वसनं मधुरं वलितं मधुरं ।
चलितं मधुरं भ्रमितं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥२॥
वेणुर्मधुरो रेणुर्मधुरः पाणिर्मधुरः पादौ मधुरौ ।
नृत्यं मधुरं सख्यं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥३॥
गीतं मधुरं पीतं मधुरं भुक्तं मधुरं सुप्तं मधुरं ।
रूपं मधुरं तिलकं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥४॥
करणं मधुरं तरणं मधुरं हरणं मधुरं रमणं मधुरं ।
वमितं मधुरं शमितं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥५॥
गुञ्जा मधुरा माला मधुरा यमुना मधुरा वीची मधुरा ।
सलिलं मधुरं कमलं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥६॥
गोपी मधुरा लीला मधुरा युक्तं मधुरं मुक्तं मधुरं।
दृष्टं मधुरं सृष्टं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥७॥
गोपा मधुरा गावो मधुरा यष्टिर्मधुरा सृष्टिर्मधुरा ।
दलितं मधुरं फलितं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥८॥
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