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July Purnima 2024 : देवस्नान पूर्णिमा 2024 तिथि, महत्व, पूजा विधि, और पौराणिक कथा

देवस्नान पूर्णिमा हिंदू धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक है, जिसे श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया जाता है। यह आषाढ़ मास की पूर्णिमा तिथि को पड़ता है और इस वर्ष 2024 में यह 21 जून को मनाया जाएगा। देवस्नान पूर्णिमा का पर्व भगवान जगन्नाथ, भगवान बलभद्र और देवी सुभद्रा के लिए समर्पित है। इस दिन इन विग्रहों को पवित्र जल और सामग्री से स्नान कराया जाता है, जो आगामी रथयात्रा उत्सव की शुरुआत का प्रतीक भी माना जाता है.

July Purnima 2024

देवस्नान पूर्णिमा का धार्मिक महत्व (Devsnaan Purnima Importance)

देवस्नान पूर्णिमा का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। आइए इस दिन के धार्मिक महत्व को विस्तार से जानें:

  • पवित्र स्नान का प्रतीक: इस दिन भगवान जगन्नाथ, भगवान बलभद्र और देवी सुभद्रा को 108 कलशों से पवित्र जल, दूध, दही, घी, शहद, चंदन और विभिन्न प्रकार के फूलों से स्नान कराया जाता है। यह स्नान न केवल गर्मी के मौसम में शरीर को शीतलता प्रदान करने का प्रतीक है, बल्कि माना जाता है कि इससे भगवानों को अनादर (बीमारी) से मुक्ति मिलती है और उनमें नए सिरे से ऊर्जा का संचार होता है।
  • रथयात्रा उत्सव का प्रारंभ: देवस्नान पूर्णिमा के बाद, भक्तों को भगवान जगन्नाथ, भगवान बलभद्र और देवी सुभद्रा के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त होता है। ये विग्रह गुप्त रूप से 15 दिनों के लिए अणासर गृह में विराजमान रहते हैं, और माना जाता है कि देवस्नान पूर्णिमा के पवित्र स्नान के बाद ही वे पुनः दर्शन देते हैं। देवस्नान पूर्णिमा के बाद ही भव्य रथयात्रा उत्सव आरंभ होता है, जो जगन्नाथ मंदिर, पुरी से आरंभ होकर गुंडिचा मंदिर तक जाती है।
  • पारिवारिक कल्याण और सौभाग्य: देवस्नान पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु की पूजा करने और दान-पुण्य करने का विशेष महत्व माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि इससे व्यक्ति को पारिवारिक कल्याण, सुख-समृद्धि और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। भक्त इस दिन भगवान से मनोवांछित फल की प्राप्ति के लिए भी प्रार्थना करते हैं।

देवस्नान पूर्णिमा की पूजा विधि (Devsnaan Purnima Puja Vidhi)

देवस्नान पूर्णिमा के पावन अवसर पर आप घर पर ही विधि-विधान से पूजा कर सकते हैं। आइए जानें देवस्नान पूर्णिमा की सरल पूजा विधि:

  1. पूजा की तैयारी: देवस्नान पूर्णिमा के दिन सूर्योदय से पहले उठें और स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण करें। अपने पूजा स्थान को साफ करें और एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछाएं।
  2. विग्रह स्थापना: यदि आपके पास भगवान जगन्नाथ, भगवान बलभद्र और देवी सुभद्रा की मूर्तियां हैं तो उन्हें चौकी पर स्थापित करें। अन्यथा, आप भगवान विष्णु की तस्वीर रख सकते हैं।
  3. आसन और स्नान सामग्री : विग्रहों के सामने आसन बिछाएं और पूजा की थाली तैयार करें। थाली में दूध, दही, घी, शहद, गंगाजल, तुलसी के पत्ते, चंदन का लेप, विभिन्न प्रकार के फूल और 108 छोटे कलश रखें। आप चाहें तो थाली में ताजे फल और मिठाई भी रख सकते हैं।
  4. आवाहन और स्नान: सबसे पहले भगवान गणेश, माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु का आवाहन करें। फिर, मंत्रों का उच्चारण करते हुए विग्रहों को पवित्र जल से स्नान कराएं। इसके बाद, एक-एक करके प्रत्येक कलश से दूध, दही, घी, शहद, गंगाजल, चंदन का लेप और फूल चढ़ाएं।
  5. वस्त्र और आभूषण: भगवानों को स्नान कराने के बाद, उन्हें सुंदर वस्त्र पहनाएं और आभूषण अर्पित करें। आप चाहें तो विग्रहों को तिलक भी लगा सकते हैं।
  6. दीप प्रज्वलन और आरती: विग्रहों के सामने दीप प्रज्वलित करें और धूप अगरबत्ती जलाएं। इसके बाद, भगवान जगन्नाथ, भगवान बलभद्र और देवी सुभद्रा की आरती करें। आप अपने इष्ट मंत्रों का जाप भी कर सकते हैं।
  7. भोग और प्रसाद: भगवानों को भोग अर्पित करें। आप उन्हें फल, पंचामृत, पान, मीठाई आदि का भोग लगा सकते हैं। पूजा के उपरांत भगवान का प्रसाद ग्रहण करें और परिवार के साथ वितरित करें।
  8. दान-पुण्य: देवस्नान पूर्णिमा के दिन दान-पुण्य का विशेष महत्व है। गरीबों और जरूरतमंदों को भोजन, वस्त्र या दक्षिणा दान करें। पुण्य कथाओं का पाठ भी इस दिन शुभ माना जाता है।

देवस्नान पूर्णिमा से जुड़ी पौराणिक कथाएं (Devsnaan Purnima Katha)

देवस्नान पूर्णिमा से जुड़ी कई पौराणिक कथाएं हैं, जो इस दिन के महत्व को दर्शाती हैं। आइए जानें इन कथाओं को:

  1. भगवान कृष्ण की कथा: एक कथा के अनुसार, भगवान कृष्ण अपने बड़े भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ द्वारका से गुप्त रूप से पुरी आए थे। वहां उन्होंने जगन्नाथ नाम धारण किया और राजा इंद्रद्युम्न को दर्शन दिए। राजा इंद्रद्युम्न ने भगवान जगन्नाथ की मूर्ति बनवाई और उनकी पूजा करने लगे। यही दिन देवस्नान पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है।
  2. अनुवासर और गुप्तवास की कथा: एक अन्य कथा के अनुसार, देवस्नान पूर्णिमा के दिन भगवान जगन्नाथ बीमार हो जाते हैं। उन्हें ठीक होने में 15 दिन लगते हैं, इसलिए उन्हें गुप्त रूप से अणासर गृह में रखा जाता है। इस अवधि को अनुवासर या गुप्तवास कहा जाता है। देवस्नान पूर्णिमा पर भगवान जगन्नाथ को पवित्र जल से स्नान कराने के बाद ही उनका स्वास्थ्य ठीक होता है और वे रथयात्रा उत्सव में शामिल होते हैं।
  3. लक्ष्मी-कुबेर की कथा: पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवस्नान पूर्णिमा के दिन ही माता लक्ष्मी अपने भाई कुबेर को धन का लेखा-जोखा देती हैं। इसलिए, इस दिन धन-समृद्धि के लिए भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करना शुभ माना जाता है।

देवस्नान पूर्णिमा के उत्सव (Devsnaan Purnima Celebrations)

देवस्नान पूर्णिमा का मुख्य उत्सव पुरी, ओडिशा में जगन्नाथ मंदिर में होता है। हजारों श्रद्धालु इस पवित्र स्नान समारोह को देखने के लिए पुरी पहुंचते हैं। आइए जानें पुरी में देवस्नान पूर्णिमा के उत्सव की झलकियां:

  • स्नान यात्रा : देवस्नान पूर्णिमा के दिन जगन्नाथ मंदिर में स्नान यात्रा का आयोजन किया जाता है। इस यात्रा में भगवान जगन्नाथ, भगवान बलभद्र और देवी सुभद्रा के विग्रहों को मंदिर के भीतर से विशेष रूप से सजाए गए स्नान मंडप (Snana Mandapa) तक ले जाया जाता है।
  • पवित्र जल से स्नान: स्नान मंडप में विग्रहों को 108 कलशों से पवित्र जल, दूध, दही, घी, शहद, चंदन का लेप और विभिन्न प्रकार के फूलों से स्नान कराया जाता है। यह समारोह वैदिक मंत्रों के उच्चारण और ढोल-नगाड़ों की ध्वनि के बीच संपन्न होता है।
  • राजसी वेशभूषा: स्नान के बाद, भगवानों को सुंदर वस्त्र और आभूषण पहनाए जाते हैं। इस अवसर पर भगवान जगन्नाथ को राजा के समान वेशभूषा धारण कराया जाता है, भगवान बलभद्र को बलशाली योद्धा के रूप में सजाया जाता है, और देवी सुभद्रा को सुंदर रानी के वस्त्र पहनाए जाते हैं।
  • भक्तों का उत्साह: देवस्नान पूर्णिमा के उत्सव में हजारों श्रद्धालु शामिल होते हैं। वे भगवानों के जयकारे लगाते हैं, भजन गाते हैं और नृत्य करते हैं। पूरा वातावरण भक्ति और उत्साह से भर जाता है।
  • रथयात्रा की तैयारी: देवस्नान पूर्णिमा के बाद, रथ निर्माण का कार्य शुरू हो जाता है। तीन विशाल रथों का निर्माण किया जाता है, जिन्हें भगवान जगन्नाथ, भगवान बलभद्र और देवी सुभद्रा रथयात्रा के लिए उपयोग किया जाता है।

उपसंहार

देवस्नान पूर्णिमा हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण त्योहार है, जो भगवान जगन्नाथ, भगवान बलभद्र और देवी सुभद्रा के प्रति आस्था और श्रद्धा का प्रतीक है। यह दिन भक्तों को आशा और उत्साह प्रदान करता है। देवस्नान पूर्णिमा भगवानों के पवित्र स्नान के साथ-साथ आगामी रथयात्रा उत्सव की शुरुआत का भी प्रतीक है। आप चाहे तो घर पर ही विधि-विधान से पूजा कर इस पावन पर्व का हिस्सा बन सकते हैं।

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