You are currently viewing Jaya Ekadashi Vrat Katha: जया एकादशी व्रत कथा और महत्व

Jaya Ekadashi Vrat Katha: जया एकादशी व्रत कथा और महत्व

माघ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को जया एकादशी कहा जाता है। विष्णु पुराण में बताया गया है कि इस एकादशी के व्रत का पालन करने वाले को कभी भी भूत, पिशाच आदि की योनि में जन्म नहीं मिलता। इस दिन व्रत रखने वालों को जया एकादशी की व्रत कथा जरूर सुननी चाहिए। आइए, जया एकादशी की व्रत कथा को विस्तार से जानें।

जया एकादशी
Jaya Ekadashi Vrat Katha

जया एकादशी व्रत कथा (Jaya Ekadashi Vrat Katha)

भगवान कृष्ण ने महाराज युधिष्ठिर को बताया कि एक बार इंद्र की सभा में अप्सराएं नृत्य कर रही थीं। सभा में प्रसिद्द गंधर्व पुष्पवंत, उसकी बेटी पुष्पवती, चित्रसेन की पत्नी मालिनी और उसका पुत्र माल्यवान भी थे। उस समय पुष्पवती, माल्यवान को देखकर मोहित हो गई और उसके मन में काम का भाव जाग उठा। पुष्पवती के रूप, सौंदर्य और हाव-भाव ने माल्यवान को भी कामासक्त कर दिया। दोनों कामासक्त होकर यौन क्रियाओं में लिप्त हो गए।

राजा इंद्र ने उन्हें अलग करने के लिए बुलाकर नाचने का आदेश दिया। कामातुर होने के कारण, वे सही से नृत्य नहीं कर पा रहे थे। इंद्र ने उनकी स्थिति समझी और क्रोधित होकर उन्हें शाप दे दिया कि वे मृत्यु लोक में स्त्री-पुरुष के रूप में पिशाच बनकर अपने कर्मों का फल भुगतेंगे।

इंद्र के शाप से पीड़ित होकर दोनों हिमालय में पिशाच बन गए और दुखपूर्वक जीवन व्यतीत करने लगे। उन्हें पूरी रात नींद नहीं आती थी। एक दिन पिशाच ने अपनी पत्नी से कहा, “हमने ऐसे कौन से पाप किए होंगे, जो हमें यह कष्टदायक पिशाच योनि मिली है।”

एक दिन अचानक उनकी भेंट देवर्षि नारद से हो गई। देवर्षि ने उनके दुख का कारण पूछा। पिशाच ने अपनी पूरी कहानी सुना दी। नारद जी ने उन्हें माघ मास के शुक्ल पक्ष की जया एकादशी का महत्व बताया और उक्त एकादशी का व्रत रखने की सलाह दी। नारद की सलाह मानकर, दोनों ने विधिपूर्वक जया एकादशी का व्रत रखा और पूरी रात भगवान नारायण का स्मरण करते हुए जागरण किया।

दूसरे दिन प्रातः भगवान विष्णु की कृपा से उनकी पिशाच देह छूट गई और वे अपने पूर्व शरीर को प्राप्त कर इंद्रलोक पहुंचे। वहां पहुँचकर उन्होंने इंद्र को प्रणाम किया। इंद्र उन्हें पूर्वरूप में देखकर चकित हो गए और पूछा कि वे कैसे अपनी पिशाच देह से मुक्त हुए। दोनों ने उन्हें पूरी घटना सुनाई।

जया एकादशी व्रत महत्व (Jaya Ekadashi Vrat Mahatva)

जया एकादशी का महत्व ‘पद्म पुराण’ और अन्य धार्मिक ग्रंथों में भी प्रकट किया गया है। भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को इस व्रत के बारे में बताया था कि इसे करने से ‘ब्रह्महत्या’ जैसे पापों से भी मुक्ति मिल सकती है। यह भी माना जाता है कि इस व्रत को पूरी श्रद्धा से करने वाले साधक को भूत-प्रेत और पिशाच योनि की यातनाओं से छुटकारा मिलता है।

जया एकादशी व्रत पूजा विधि (Jaya Ekadashi Vrat Puja Vidhi)

जया एकादशी के दिन प्रातः जल्दी उठकर भगवान विष्णु का ध्यान करें और व्रत का संकल्प लें। स्नान के बाद पूजा स्थल पर भगवान विष्णु की एक छोटी मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें। अब भगवान विष्णु को चंदन, तिल, फल, दीपक और धूप अर्पित करें। इस दिन विष्णु सहस्रनाम और नारायण स्तोत्र का पाठ करना शुभ माना जाता है। एकादशी के अगले दिन, द्वादशी को, ब्राह्मणों को भोजन कराएं और उन्हें दक्षिणा देकर विदा करें, इसके बाद ही भोजन ग्रहण करें।

ALSO READ:

Maha Shivratri Vrat Katha: महाशिवरात्रि व्रत कथा

Shri Brihaspati Bhagwan Ki Vrat Katha: श्री बृहस्पति भगवान की व्रत कथा

Ganesh Chaturthi Vrat Katha: गणेश चतुर्थी व्रत की कथा

Leave a Reply