पुत्रदा एकादशी का दिन भगवान विष्णु की आराधना के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है। इस दिन व्रत रखने और भगवान विष्णु की पूजा करने से सभी इच्छाएं पूर्ण होती हैं। जो भक्त पूर्ण श्रद्धा और समर्पण के साथ इस व्रत का पालन करते हैं, उन्हें भगवान विष्णु का विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है। हिंदू धर्म में पुत्रदा एकादशी का विशेष महत्व है, क्योंकि यह दिन भगवान विष्णु को समर्पित है।

धार्मिक मान्यता के अनुसार, जो दंपत्ति इस दिन विधि-विधान से पूजा-अर्चना करते हैं, उन्हें संतान सुख की प्राप्ति होती है। यह व्रत न केवल संतान प्राप्ति की कामना रखने वालों के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह जीवन में सुख-शांति और समृद्धि का भी प्रतीक है। पुत्रदा एकादशी के शुभ अवसर पर भगवान विष्णु की पूजा करने से जीवन के कष्ट दूर होते हैं और मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। आइए जानते हैं कि इस बार पुत्रदा एकादशी की पूजा किस शुभ मुहूर्त में संपन्न होगी।
पुत्रदा एकादशी व्रत का शुभ समय (Putrada Ekadashi 2025 Date and Time)
साल 2025 की पहली पुत्रदा एकादशी का आरंभ 9 जनवरी को दोपहर 12 बजकर 22 मिनट से होगा। यह तिथि अगले दिन 10 जनवरी को सुबह 10 बजकर 19 मिनट पर समाप्त होगी। उदयातिथि को ध्यान में रखते हुए, इस वर्ष पुत्रदा एकादशी का व्रत 10 जनवरी को रखा जाएगा। व्रत करने वाले भक्तों को इस दिन भगवान विष्णु की विधिपूर्वक पूजा-अर्चना करनी चाहिए।
पूजा के लिए विशेष योग (Putrada Ekadashi 2025 Shubh Yog)
पुत्रदा एकादशी के दिन ब्रह्म योग का विशेष संयोग बन रहा है, जो अत्यंत शुभ और कल्याणकारी माना जाता है। धर्मग्रंथों में इस योग का विशेष महत्व बताया गया है। मान्यता है कि इस पावन योग में भगवान विष्णु की पूजा करने से भक्तों को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। यह योग जीवन में सुख-समृद्धि और शांति लाने वाला माना जाता है। ऐसे में भक्त पूरी श्रद्धा और विधि-विधान के साथ पूजा-अर्चना कर सकते हैं।
साल में दो बार मनाई जाती है पुत्रदा एकादशी
हिंदू धर्म में पुत्रदा एकादशी का विशेष महत्व है और यह साल में दो बार मनाई जाती है। पहली बार यह पवित्र तिथि पौष मास में आती है और दूसरी बार श्रावण मास में। यह दिन मुख्य रूप से संतान की प्राप्ति और उनके उज्ज्वल भविष्य की कामना के लिए समर्पित होता है। धर्मग्रंथों के अनुसार, इस तिथि पर भगवान विष्णु की पूजा और व्रत करने से संतान संबंधी सभी इच्छाएं पूर्ण होती हैं। यह तिथि धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से अत्यधिक फलदायी मानी जाती है।
पुत्रदा एकादशी का महत्व (Putrada Ekadashi Mahatva)
पुत्रदा एकादशी को संतान सुख प्रदान करने वाली पवित्र तिथि माना गया है। यह व्रत विशेष रूप से उन दंपतियों के लिए महत्वपूर्ण है जो संतान की कामना करते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन भगवान विष्णु की पूजा और व्रत करने से संतान से जुड़ी सभी समस्याओं का समाधान होता है। यह व्रत न केवल संतान प्राप्ति के लिए किया जाता है, बल्कि उनकी दीर्घायु, सुख-शांति और समृद्धि के लिए भी शुभ माना जाता है। इस व्रत के माध्यम से व्यक्ति पूर्वजन्म के पापों से मुक्त होकर मोक्ष की प्राप्ति कर सकता है।
पुत्रदा एकादशी व्रत कथा (Putrada Ekadashi Vrat Katha)
पौराणिक मान्यता के अनुसार, एक समय भद्रावती नामक नगर में राजा सुकेतुमान अपनी प्रजा के प्रिय थे। वे एक अत्यंत समृद्ध और संपन्न राज्य के स्वामी थे, लेकिन संतानहीन होने के कारण उनके मन में सदैव चिंता और दुख बना रहता था। संतान के बिना वे अपनी वंश परंपरा और अपने अंतिम संस्कार की अनुष्ठानिक जिम्मेदारियों को निभाने वाले किसी उत्तराधिकारी के अभाव में स्वयं को अधूरा महसूस करते थे।
राजा सुकेतुमान संतान प्राप्ति की आकांक्षा में एक दिन वन में भटकने लगे। उन्हें एक आश्रम मिला जहां कई संत तपस्या में लीन थे। संतों ने राजा की परेशानी को समझा और उन्हें पौष पुत्रदा एकादशी का व्रत करने की सलाह दी। उन्होंने बताया कि इस व्रत के पालन से संतान सुख का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इस सुझाव से राजा अत्यंत प्रसन्न हुए और राज्य में वापस लौटकर रानी के साथ व्रत-पूजन आरंभ किया।
राजा और रानी ने पौष पुत्रदा एकादशी का व्रत पूरी निष्ठा और श्रद्धा के साथ किया, जिससे प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उन्हें योग्य संतान का वरदान दिया। कालांतर में राजा सुकेतुमान के घर में एक पुत्र का जन्म हुआ, जो उनके वंश को आगे बढ़ाने वाला बना। इस प्रकार, इस व्रत से संतान प्राप्ति का आशीर्वाद पाने की परंपरा शुरू हुई।
पुत्रदा एकादशी व्रत विधि (Putrada Ekadashi Vrat Vidhi)
पुत्रदा एकादशी के दिन भक्त प्रातःकाल गंगा जल से स्नान कर व्रत का संकल्प लेते हैं। भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र के सामने दीप प्रज्वलित कर उन्हें पुष्प, तुलसी पत्र अर्पित करें और विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें। व्रत निर्जल रखने का विशेष महत्व है, लेकिन स्वास्थ्य कारणों से फलाहार लिया जा सकता है। व्रत के दौरान केवल सात्विक आहार का पालन करें। इस दिन दान करने का भी अत्यधिक महत्व है। अन्न, वस्त्र, और धन का दान करना शुभ फल प्रदान करता है और पुण्य लाभ बढ़ाता है।
ALSO READ:-