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Hartalika Teej Vrat Katha: हरतालिका तीज व्रत कथा संपूर्ण पाठ, जानें भविष्य पुराण के अनुसार क्या है हरतालिका तीज की पूरी व्रत कथा

भविष्य पुराण में हरतालिका तीज पर वैवाहिक जीवन में सुख, शांति और आनंद प्राप्ति के लिए जिस कथा का वर्णन मिलता है, उसका पाठ करना चाहिए। हरतालिका व्रत रखने वाले व्रतियों को इस कथा का पाठ करना या श्रवण करना आवश्यक माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस कथा के बिना हरतालिका तीज का व्रत अधूरा रहता है।

हरतालिका तीज

हरतालिका तीज व्रत कथा आरंभ

जिनके केशों में मंदार (आक) के पुष्पों की माला सजती है और जिन भगवान शंकर के मस्तक पर चंद्रमा और गले में मुण्डों की माला है, जो माता पार्वती दिव्य वस्त्रों में सुशोभित हैं और भगवान शंकर दिगंबर वेश धारण करते हैं, उन दोनों भवानी-शंकर को मेरा प्रणाम है।

एक बार कैलाश पर्वत के शिखर पर माता पार्वती ने महादेव से पूछा, “हे प्रभु! कृपया मुझे वह गुप्त रहस्य बताइए जो सभी धर्मों में सबसे सरल और महान फलदायी है। हे नाथ! अगर आप प्रसन्न हैं, तो इसे मेरे सामने प्रकट करें। हे जगत नाथ! आप आदि, मध्य और अंत रहित हैं, आपकी माया का कोई पार नहीं है। मैंने आपको किस प्रकार प्राप्त किया है? कौन से व्रत, तप या दान के पुण्य फल से आप मुझे वर रूप में मिले? कृपया मुझे यह बताएं।”

महादेव बोले, “हे देवी! सुनिए, मैं आपको उस व्रत के बारे में बताता हूं, जो परम गुप्त है। जैसे तारागणों में चंद्रमा और ग्रहों में सूर्य श्रेष्ठ हैं, वर्णों में ब्राह्मण, देवताओं में गंगा, पुराणों में महाभारत, वेदों में सामवेद और इन्द्रियों में मन श्रेष्ठ हैं, वैसे ही इस व्रत का विवरण पुराणों और वेदों में मिलता है। इसी व्रत के प्रभाव से आपको मेरा आधा आसन प्राप्त हुआ है।

हे प्रिये! मैं आपको उसी व्रत का वर्णन करता हूं। सुनो, भाद्रपद (भादों) मास के शुक्ल पक्ष की हस्त नक्षत्रयुक्त तृतीया (तीज) के दिन इस व्रत का अनुष्ठान मात्र करने से सभी पापों का नाश हो जाता है। आपने पहले हिमालय पर्वत पर इस महान व्रत को किया था, जो मैं आपको सुनाता हूं।”

पार्वती जी बोलीं, “हे प्रभु, मैंने यह व्रत किसलिए किया था, यह जानने की इच्छा हो रही है। कृपया मुझे बताइए।”

शंकर जी बोले, “आर्यावर्त में एक महान पर्वत है जिसे हिमालय कहते हैं। वहाँ विभिन्न प्रकार की भूमि और पेड़ों की सुंदरता है। सदा बर्फ से ढका रहने वाला यह पर्वत गंगा की कल-कल ध्वनि से ओम की ध्वनि से गूंजता रहता है।”

“हे पार्वती! आपने अपने बाल्यकाल में उसी स्थान पर कठोर तपस्या की थी। बारह वर्ष के महीनों में जल में रहकर और वैशाख मास में अग्नि में तप किया। श्रावण के महीने में खुली जगह में हस्त नक्षत्र युक्त तृतीया के दिन आपने विधि विधान से मेरा पूजन किया और रात भर गीत गाना करते हुए जागरण किया।”

“हे पार्वती! तुम्हारे उस महाव्रत के प्रभाव से मेरा आसन डोलने लगा। मैं उसी स्थान पर आ पहुंचा जहाँ तुम और तुम्हारी सखी दोनों थीं। मैंने आकर तुमसे कहा, ‘हे सुंदर, मैं तुमसे प्रसन्न हूं। बताओ, तुम मुझसे क्या वरदान चाहती हो?’ तब तुमने कहा, ‘हे देव, यदि आप मुझसे प्रसन्न हैं तो कृपया मेरे पति बनें।’ इस पर मैंने ‘तथास्तु’ कहा और कैलाश पर्वत की ओर चला गया।

सुबह होते ही तुमने उस बालू की प्रतिमा को नदी में विसर्जित कर दिया। हे शुभे, तुमने अपनी सखी सहित व्रत का पारायण किया। इतने में तुम्हारे पिता हिमवान तुम्हें ढूंढते-ढूंढते उस घने वन में आ पहुंचे। उन्होंने नदी के तट पर दो कन्याओं को देखा और तुम्हारे पास आ गए। उन्होंने तुम्हें गले लगाया और रोते हुए कहा, ‘बेटी, तुम इस सिंह और व्याघ्रों से युक्त घने जंगल में क्यों आई हो?’”

“तुमने कहा, ‘हे पिता, मैंने पहले ही अपना शरीर शंकर जी को समर्पित कर दिया था, लेकिन आपने इसके विपरीत कार्य किया। इसलिए मैं वन में आ गई।’ यह सुनकर हिमवान ने कहा, ‘मैं तुम्हारी इच्छा के विरुद्ध यह कार्य नहीं करूंगा।’ तब वे तुम्हें घर ले आए और तुम्हारा विवाह मेरे साथ कर दिया।”

“हे प्रिये, उस व्रत के प्रभाव से तुम्हें मेरा अर्द्धासन प्राप्त हुआ। मैंने इस व्रतराज का वर्णन अब तक किसी के सम्मुख नहीं किया।”

“हे देवी! अब मैं तुम्हें बताता हूं कि इसका नाम हरतालिका क्यों पड़ा। तुम्हारी सखी ने तुम्हारा हरण किया था, इसलिए इस व्रत का नाम हरतालिका पड़ा।”

पार्वती जी बोलीं, “हे स्वामी! आपने इस व्रत का नाम तो बताया, लेकिन कृपया इसकी विधि और फल भी बताइए कि इसके करने से क्या लाभ होता है।”

भगवान शंकर जी बोले, “इस स्त्री जाति के सर्वोत्तम व्रत की विधि सुनो। सौभाग्य की इच्छा रखने वाली महिलाएं इस व्रत को विधिपूर्वक करें। केले के खम्बों से मण्डप बनाकर और वन्दनवारों से उसे सजाएं। विविध रंगों के उत्तम रेशमी वस्त्र की चांदनी तानें। चंदन आदि सुगंधित द्रव्यों का लेपन करें और स्त्रियों का समूह एकत्र हो। शंख, भेरी व मृदंग बजाएं। विधिपूर्वक मंगलाचार करके श्री गौरी शंकर की बालू से बनी प्रतिमा स्थापित करें। फिर भगवान शिव और पार्वती जी की गंध, धूप, पुष्प आदि के साथ विधिपूर्वक पूजा करें।”

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