भगवद गीता अध्याय 3 श्लोक 20 का सरल अर्थ और तात्पर्य | कर्मणैव हि संसिद्धिमास्थिता जनकादयः |

श्रीमद् भागवत गीता अध्याय 3 श्लोक 20 (Bhagavad Geeta Adhyay 3 Shloka 20 in Hindi): श्लोक 3.20 श्रीमद्भगवद्गीता के कर्मयोग अध्याय में एक अत्यंत प्रेरणादायक श्लोक है जिसमें भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को जनक जैसे राजाओं का उदाहरण देकर यह सिखाते हैं कि आदर्श जीवन जीने और समाज को प्रेरणा देने के लिए व्यक्ति को कर्तव्य-कर्म करना आवश्यक है। यह लेख श्लोक की विस्तृत व्याख्या, भावार्थ, तात्पर्य और इसके आधुनिक जीवन में प्रासंगिक अर्थों को सरल हिंदी में प्रस्तुत करता है।

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भगवद गीता अध्याय 3 श्लोक 20 — संस्कृत मूल पाठ

भगवद गीता अध्याय 3 श्लोक 20 — संस्कृत मूल पाठ | Festivalhindu.com
भगवद गीता अध्याय 3 श्लोक 20

कर्मणैव हि संसिद्धिमास्थिता जनकादयः |
लोकसङ्ग्रहमेवापि सम्पश्यन्कर्तुमर्हसि || 20

भगवद गीता श्लोक 3.20 शब्दार्थ

  • कर्मणा – कर्म से
  • एव – ही
  • हि – निश्चय ही
  • संसिद्धिम् – पूर्णता / सिद्धि
  • आस्थिताः – प्राप्त की / स्थित हुए
  • जनकादयः – जनक तथा अन्य राजा
  • लोकसंग्रहम् – समाज की भलाई / लोक कल्याण
  • एव अपि – भी
  • सम्पश्यन् – सोचते हुए / ध्यान में रखते हुए
  • कर्तुम् – करने के लिए
  • अर्हसि – योग्य हो

भावार्थ (सरल हिंदी में)

जनक जैसे महान राजाओं ने केवल अपने नियत कर्मों को करने से ही जीवन में सिद्धि प्राप्त की थी। अतः हे अर्जुन! तुम्हें भी समाज के लोगों को सही मार्ग दिखाने के लिए कर्म करना चाहिए।

तात्पर्य (गूढ़ व्याख्या)

भगवान श्रीकृष्ण इस श्लोक में अर्जुन को यह बताते हैं कि जो व्यक्ति आत्मबोध या ज्ञान प्राप्त कर चुका है, वह भी समाज के लिए कर्म करना नहीं छोड़ता। जनक जैसे राजा इसका आदर्श उदाहरण हैं।

जनक कौन थे?

  • जनक मिथिला (वर्तमान बिहार) के महान राजा थे।
  • वे परम ज्ञानी, योगी, और श्रीराम के ससुर थे।
  • वे मुक्त आत्मा थे, फिर भी समाज के कल्याण के लिए कर्तव्य-कर्म में लगे रहे।

कर्म और लोकसंग्रह की भावना

क्यों करते थे जनक नियत कर्म?

  • वे आत्मसिद्ध थे, कर्म से मुक्त भी हो सकते थे।
  • परंतु उन्होंने समाज को आदर्श दिखाने के लिए कर्म करना जारी रखा।
  • उनका उद्देश्य लोकसंग्रह, यानी समाज को एकत्र कर सही दिशा देना था।

भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन का उदाहरण

  • श्रीकृष्ण स्वयं सर्वशक्तिमान होते हुए भी युद्धभूमि में गए।
  • उन्होंने शांति के लिए हर उपाय किया, परंतु अधर्म के विरुद्ध युद्ध करना अनिवार्य हो गया।
  • उनका कर्म समाज को यह दिखाने के लिए था कि धर्म की रक्षा हेतु हिंसा भी आवश्यक हो सकती है।

कृष्णभावना में स्थित व्यक्ति का दृष्टिकोण

जो व्यक्ति ईश्वर में स्थित है, उसे अपने लिए कुछ प्राप्त करने की इच्छा नहीं होती। फिर भी:

  • वह कर्म करता है ताकि अन्य लोग उसका अनुसरण कर सकें।
  • उसका प्रत्येक कार्य दूसरों को प्रेरणा देने वाला होता है।

आधुनिक संदर्भ में गीता अध्याय 3 श्लोक 20 की प्रासंगिकता

परिवार में:

– माता-पिता यदि अपने बच्चों के समक्ष श्रेष्ठ कर्म करेंगे तो वही बच्चों के जीवन का आदर्श बनेंगे।

कार्यस्थल में:

– एक नेता या मैनेजर स्वयं कार्य करेगा तो अधीनस्थ भी कर्मठ बनेंगे।

शिक्षा में:

– शिक्षक यदि स्वयं समय का पालन करेगा, निष्ठा से पढ़ाएगा, तभी छात्र उसमें प्रेरणा पाएंगे।

भगवद गीता अध्याय 3 श्लोक 20 का प्रेरणादायक संदेश

“कर्तव्य करते रहो — चाहे तुम्हें उसकी आवश्यकता न भी हो, पर समाज को आदर्श की आवश्यकता हमेशा रहती है।”

निष्कर्ष

श्रीमद्भगवद्गीता का यह श्लोक हमें सिखाता है कि जीवन में केवल स्वयं के मोक्ष की चिंता करना ही धर्म नहीं है, बल्कि समाज को सही दिशा देना भी उतना ही बड़ा कर्तव्य है। जनक जैसे राजाओं की भांति हमें भी निष्काम भाव से कर्म करना चाहिए, ताकि आने वाली पीढ़ियाँ हमें देखकर प्रेरणा पा सकें।

FAQs (अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न)

प्रश्न 1: गीता के श्लोक 3.20 में क्या कहा गया है?

उत्तर:
श्लोक 3.20 में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि जनक जैसे महान राजाओं ने केवल अपने कर्मों के पालन से ही सिद्धि प्राप्त की थी। इसलिए, समाज के लोगों को सही मार्ग दिखाने के लिए हमें भी अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए।

प्रश्न 2: जनक राजा कौन थे और उनका इस श्लोक से क्या संबंध है?

उत्तर:
जनक मिथिला के राजा और सीता जी के पिता थे। वे आत्मज्ञानी और मुक्त आत्मा थे, फिर भी उन्होंने समाज को आदर्श दिखाने के लिए अपने नियत कर्मों को पूरी निष्ठा से किया। यही कारण है कि भगवान श्रीकृष्ण उन्हें आदर्श रूप में प्रस्तुत करते हैं।

प्रश्न 3: ‘लोकसंग्रह’ का अर्थ क्या है?

उत्तर:
‘लोकसंग्रह’ का अर्थ है – समाज का मार्गदर्शन करना, लोगों को एकजुट करना और उन्हें कर्तव्य की ओर प्रेरित करना। यह श्लोक बताता है कि ज्ञानी व्यक्ति को भी कर्म करके समाज को प्रेरणा देनी चाहिए।

प्रश्न 4: क्या आत्मज्ञानी व्यक्ति को भी कर्म करना चाहिए?

उत्तर:
हाँ, भगवान श्रीकृष्ण के अनुसार, आत्मज्ञानी व्यक्ति को भी कर्म करते रहना चाहिए ताकि आम लोग उन्हें देखकर प्रेरणा लें और सही मार्ग पर चलें। यही कर्मयोग का सिद्धांत है।

प्रश्न 5: इस श्लोक 3.20 की आज के युग में क्या प्रासंगिकता है?

उत्तर:
आज के समय में भी यह श्लोक अत्यंत प्रासंगिक है। चाहे हम माता-पिता हों, शिक्षक हों या समाज के नेता — यदि हम अपने कर्मों में निष्ठा और आदर्श दिखाएँगे, तो समाज स्वयं सही दिशा में आगे बढ़ेगा।

Resources : श्रीमद्भागवत गीता यथारूप – बक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद

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