अक्षय का अर्थ है “जो कभी खत्म न हो।” इसलिए अक्षय तृतीया के दिन पूजा, यज्ञ, पितृ-तर्पण, और दान-पुण्य जैसे कार्य करना अत्यंत शुभ माना जाता है। इन कार्यों से जीवनभर पुण्य की प्राप्ति होती है। हिंदू धर्म में अक्षय तृतीया का विशेष महत्व है। यह पर्व हर साल वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। इसे एक शुभ और पवित्र दिन माना जाता है।

अक्षय तृतीया को “अबूझ मुहूर्त” भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है कि इस दिन शुभ कार्यों के लिए विशेष मुहूर्त देखने की आवश्यकता नहीं होती। इस दिन विवाह जैसे मांगलिक कार्य भी बिना मुहूर्त देखे किए जा सकते हैं। हालांकि, इस वर्ष अक्षय तृतीया के दिन शुभ कार्यों पर रोक है। इसके पीछे विशेष कारण है, जिसकी जानकारी आगे दी जा रही है।
अक्षय तृतीया का महत्व (Akshay Tritiya Mahatva)
भगवान विष्णु को समर्पित अक्षय तृतीया पर्व का हिंदू धर्म में विशेष स्थान है। यह भी मान्यता है कि इसी दिन भगवान परशुराम का पृथ्वी पर अवतरण हुआ था, इसलिए इस दिन को परशुराम जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। इसके अलावा, अक्षय तृतीया से जुड़ी कई पौराणिक कथाएं इसके महत्व को दर्शाती हैं।
एक कथा के अनुसार, इसी दिन भगीरथ के कठोर प्रयासों से देवी गंगा पृथ्वी पर अवतरित हुई थीं। इसके साथ ही, इस दिन देवी अन्नपूर्णा का जन्मदिन भी मनाया जाता है। मान्यता है कि अक्षय तृतीया पर जो भी शुभ कार्य किए जाते हैं, उनमें निरंतर वृद्धि होती है।
किसी नए कार्य की शुरुआत इस दिन करना अत्यंत शुभ माना जाता है, क्योंकि इससे सफलता और समृद्धि प्राप्त होती है। साथ ही, इस दिन विवाह बंधन में बंधने वाले दंपतियों का वैवाहिक जीवन प्रेम और सामंजस्य से भरपूर होता है।
अक्षय तृतीया कब है? (Akshay Tritiya 2025 Date and Time)
वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि की शुरुआत 30 अप्रैल 2025 को शाम 5 बजकर 29 मिनट पर होगी, और इसका समापन 1 मई 2025 को दोपहर 2 बजकर 12 मिनट पर होगा। उदया तिथि के आधार पर, अक्षय तृतीया का पावन पर्व बुधवार, 30 अप्रैल 2025 को मनाया जाएगा। पूजा के लिए शुभ मुहूर्त प्रातः 5:41 से दोपहर 12:18 तक है।
अक्षय तृतीया 2025 पर क्यों नहीं होंगे विवाह?
इस वर्ष अक्षय तृतीया के दिन विवाह नहीं हो पाएंगे, क्योंकि इस दिन कोई शुभ विवाह मुहूर्त नहीं रहेगा। इसका मुख्य कारण यह है कि अक्षय तृतीया पर गुरु और शुक्र तारा दोनों अस्त रहेंगे। ज्योतिष शास्त्र में विवाह के लिए गुरु और शुक्र ग्रह का उदय होना अनिवार्य माना गया है, क्योंकि ये ग्रह विवाह के प्रमुख कारक माने जाते हैं। पिछले वर्ष 2024 में भी यही स्थिति रही थी, जब गुरु और शुक्र तारा अस्त होने के कारण अक्षय तृ तीया पर विवाह का मुहूर्त नहीं बना था।
अक्षय तृतीया पौराणिक कथा (Akshay Tritiya Katha)
अक्षय तृतीया के दिन मां लक्ष्मी और भगवान विष्णु की पूजा के बाद पौराणिक कथा का पाठ करना अत्यंत शुभ माना गया है। कथा के अनुसार, धर्मदास नाम के एक व्यक्ति ने अक्षय तृतीया का व्रत किया। व्रत के पश्चात उन्होंने ब्राह्मण को दान स्वरूप पंखा, जौ, नमक, गेहूं, गुड़, घी, सोना और दही अर्पित किया।
धर्मदास की पत्नी को यह सब पसंद नहीं आया, और उसने अपने पति को ऐसा करने से रोकने का भरसक प्रयास किया। बावजूद इसके, धर्मदास अपनी श्रद्धा और आस्था पर अडिग रहे। वे हर साल पूरे समर्पण के साथ अक्षय तृतीया का व्रत और दान-पुण्य करते रहे। इस कथा के माध्यम से अक्षय तृ तीया के व्रत और दान की महिमा का संदेश मिलता है।
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