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Bhagavad Gita Chapter 1 Verse-Shloka 28 – गीता अध्याय 1 श्लोक 28 अर्थ सहित – दृष्ट्वेमं स्वजनं कृष्ण…..

श्रीमद् भागवत गीता अध्याय 1 श्लोक 28 (Bhagwat Geeta adhyay 1 shlok 28 in Hindi): महाभारत के युद्धक्षेत्र में अर्जुन की मनोदशा को समझना हमें मानवीय संवेदनाओं और करुणा की गहराई में ले जाता है। उनके शब्दों में छिपी व्यथा और हृदय की कोमलता का विश्लेषण एक ऐसा दृष्टिकोण प्रदान करता है जो हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि युद्ध केवल बाहरी संघर्ष नहीं बल्कि भीतरी द्वंद्व का भी प्रतीक है।

श्रीमद् भागवत गीता अध्याय 1 श्लोक 28

गीता अध्याय 1 श्लोक 28 अर्थ सहित

Bhagavad Gita Chapter 1 Shloka 28 in Hindi | FestivalHindu.com
Bhagavad Gita Chapter 1 Verse 28

श्लोक:

दृष्ट्वेमं स्वजनं कृष्ण युयुत्सुं समुपस्थितम्।
सीदन्ति मम गात्राणि मुखं च परिशुष्यति ॥ २८ ॥

अर्जुनः उवाच- अर्जुन ने कहा; दृष्ट्वा- देख कर; इमम्- इन सारे; स्व-जनम्- सम्बन्धियों को; कृष्ण-हे कृष्ण; युयुत्सुम्-युद्ध की इच्छा रखने वाले; समुपस्थितम् - उपस्थित; सीदन्ति-काँप रहे हैं; मम- मेरे; गात्राणि- शरीर के अंग; मुखम्- मुँह; च-भी; परिशुष्यति-सूख रहा है।

अर्जुन कहते हैं, “हे कृष्ण! इस प्रकार युद्ध की इच्छा रखने वाले अपने मित्रों तथा सम्बन्धियों को अपने समक्ष उपस्थित देखकर मेरे शरीर के अंग काँप रहे हैं और मेरा मुँह सूखा जा रहा है।”

भावार्थ

यथार्थ भक्ति से युक्त मनुष्य में वे सारे सद्‌गुण रहते हैं, जो सत्पुरुषों या देवताओं में पाये जाते हैं, जबकि अभक्त अपनी शिक्षा तथा संस्कृति के द्वारा भौतिक योग्यताओं में चाहे कितना ही उन्नत क्यों न हो, इन ईश्वरीय गुणों से विहीन होता है। अर्जुन अपने स्वजनों, मित्रों और सम्बन्धियों को युद्धभूमि में देखकर करुणा से अभिभूत हो जाते हैं। उनके अंग काँपने लगते हैं और मुँह सूख जाता है, जो उनकी मानसिक दशा को दर्शाता है। यह लक्षण अर्जुन की कोमलता और हृदय की शुद्धता का प्रतीक हैं, जो भगवान के शुद्ध भक्त का लक्षण है।

युद्ध की विभीषिका और अर्जुन की कोमलता

तात्पर्य:

  • अर्जुन की करुणा उनके स्वजनों, मित्रों और सम्बन्धियों के प्रति स्पष्ट रूप से दिखाई देती है।
  • युद्धभूमि में अपने सगे सम्बन्धियों को देखकर अर्जुन दया और करुणा से अभिभूत हो जाते हैं।
  • उनके अंगों में कंपन होने लगता है और मुँह सूख जाता है, जो उनकी मानसिक दशा को दर्शाता है।
  • अर्जुन का यह उद्गार उनकी कोमलता और हृदय की शुद्धता का प्रतीक है।

अर्जुन की करुणा: भक्ति और मानवीय गुण

अर्जुन की करुणा का विश्लेषण:

  • युद्ध की विभीषिका: अर्जुन युद्ध के भयावह परिणामों को सोचकर करुणा से अभिभूत हो जाते हैं।
  • मानवीय संवेदनाएं: उनके शब्दों में मानवीय संवेदनाओं की गहराई और करुणा स्पष्ट झलकती है।
  • भक्ति का प्रभाव: यथार्थ भक्ति से युक्त मनुष्य में देवताओं के सद्गुण विद्यमान होते हैं।

निष्कर्ष: करुणा और भक्ति का संगम

अर्जुन का यह उद्गार हमें यह सिखाता है कि भक्ति और करुणा एक दूसरे के पूरक हैं। भले ही युद्ध की परिस्थिति कितनी ही भयावह क्यों न हो, एक सच्चे भक्त के हृदय में करुणा और दया सदैव बनी रहती है। अर्जुन की यह मनोदशा हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि सच्ची भक्ति और मानवीय संवेदनाएं ही हमारे जीवन को सही दिशा प्रदान कर सकती हैं।

Resources : श्रीमद्भागवत गीता यथारूप – बक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद, गीता प्रेस

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