Kamada Ekadashi Vrat Katha| जाने कामदा एकादशी की पूरी व्रत कथा | ये एकादशी व्रत करता है सभी पापो का नाश

कामदा एकादशी व्रत कथा : धर्मराज युधिष्ठिर विनम्रतापूर्वक बोले — “हे भगवन्! मैं आपको सहस्त्रों बार नमन करता हूँ। आपने कृपा करके चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की पावन पापमोचनी एकादशी का महत्व, विधि और उसका पुण्यफल विस्तारपूर्वक समझाया। अब मेरी विनती है कि आप मुझे चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी के विषय में भी बताने की कृपा करें। कृपया बताइए कि उस एकादशी का क्या नाम है, उसकी व्रत-विधि क्या है और वह किस पुण्य को प्रदान करने वाली है?”

भगवान श्रीकृष्ण मुस्कराकर बोले — “हे धर्मराज! चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को कामदा एकादशी कहा जाता है। यह व्रत सभी पापों का नाश करने वाला और मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाला माना गया है। प्राचीन काल की एक कथा के अनुसार, यही जिज्ञासा राजा दिलीप ने अपने गुरु वशिष्ठ जी से व्यक्त की थी। तब गुरु वशिष्ठ जी ने जो ज्ञान और कथा उन्हें सुनाई, वही मैं आज तुम्हें सुना रहा हूँ, ताकि समस्त प्राणियों का कल्याण हो सके।”

कामदा
Kamada Ekadashi Vrat Katha

कामदा एकादशी व्रत कथा (Kamada Ekadashi Vrat Katha)

बहुत प्राचीन समय की बात है, जब भोगीपुर नामक एक समृद्ध और वैभवशाली नगरी हुआ करती थी। इस नगर पर पुण्यात्मा और ऐश्वर्यशाली राजा पुण्डरीक का शासन था। भोगीपुर नगर देवताओं, अप्सराओं, किन्नरों और गंधर्वों का प्रिय निवास स्थान था। इन्हीं गंधर्वों में ललित नामक एक प्रतिभाशाली गायक और उसकी सुंदर पत्नी ललिता, एक सुप्रसिद्ध नर्तकी, अपने भव्य गृह में प्रेमपूर्वक निवास करते थे। दोनों एक-दूसरे से अत्यधिक स्नेह करते थे और कुछ समय के लिए भी अलग होना उन्हें असह्य लगता था।

एक दिन की बात है, जब ललित अन्य गंधर्वों के साथ राजा पुण्डरीक की राजसभा में संगीत प्रस्तुति दे रहा था। गान के मध्य ही उसे अपनी प्रिय ललिता का स्मरण हो आया, जिससे उसका ध्यान विचलित हो गया और सुर व ताल का संतुलन बिगड़ गया। सभा में उपस्थिति एक नाग, जिसका नाम कार्कोट था, ने ललित के स्वर भंग का कारण भाँप लिया और राजा को इसकी सूचना दे दी।

राजा पुण्डरीक ललित के इस व्यवहार से अत्यंत क्रोधित हो गया। उसने कहा— “हे ललित! तुम सभा जैसे गंभीर स्थान पर भी अपनी पत्नी के प्रेम में डूबे हुए हो और उस कारण संगीत की मर्यादा को भंग कर रहे हो। अतः मैं तुम्हें शाप देता हूँ कि अब तुम नरभक्षी दैत्य बनकर अपने कर्म का दंड भोगोगे।”

इस प्रकार ललित को श्राप प्राप्त हुआ और वह गंधर्व से एक भयानक राक्षस में परिवर्तित हो गया। यह कथा कामदा एकादशी व्रत की महिमा को दर्शाती है, जिसमें भक्तजन अपनी गलतियों और पापों से मुक्ति पाने के लिए श्रीहरि विष्णु का आश्रय लेते हैं।

धर्मराज युधिष्ठिर ने अत्यंत श्रद्धा और विनम्रता के साथ भगवान श्रीकृष्ण से निवेदन किया — “हे सर्वज्ञ भगवान! मैं आपको सहस्र बार प्रणाम करता हूँ। आपने पूर्व में चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की पवित्र पापमोचनी एकादशी के व्रत का महत्व, उसकी विधि और उसके पुण्य फलों का जो विस्तार से वर्णन किया, वह वास्तव में कल्याणकारी है। अब मेरी आपसे प्रार्थना है कि कृपा करके चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी के विषय में भी मुझे विस्तारपूर्वक बताएं। कृपया बताइए कि इस एकादशी का क्या नाम है, इसकी पूजा-विधि कैसी है और यह कौन-कौन से शुभ फल प्रदान करती है?”

भगवान श्रीकृष्ण मधुर मुस्कान के साथ बोले — “हे धर्मराज! चैत्र शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम कामदा एकादशी है। यह व्रत महान पुण्यदायी, पापों का पूर्णतः नाश करने वाला और सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाला माना जाता है। इसकी महिमा इतनी है कि इसके व्रत से अकाल मृत्यु, भूत-प्रेत बाधा, पाप और मानसिक संताप दूर हो जाते हैं।

प्राचीन काल में यही प्रश्न राजा दिलीप ने अपने गुरु महर्षि वशिष्ठ से किया था। तब वशिष्ठ जी ने जो दिव्य कथा और ज्ञान उन्हें प्रदान किया था, वही ज्ञान मैं आज तुम्हें सौंप रहा हूँ, ताकि यह संसार के सभी प्राणियों के लिए धर्म, भक्ति और मुक्ति का मार्ग प्रशस्त कर सके।”

एक बार ललिता अपने पति ललित की खोज में चलते-चलते विन्ध्याचल पर्वत पर जा पहुँची। वहाँ उसने एक शांत और दिव्य स्थान देखा, जहाँ महर्षि श्रृंगी का तपोमय आश्रम स्थित था। व्याकुल हृदय से ललिता तुरंत आश्रम में पहुँची और अत्यंत विनम्रता के साथ ऋषि के चरणों में नतमस्तक होकर निवेदन करने लगी।

ललिता को इस प्रकार दीन अवस्था में देखकर ऋषि श्रृंगी ने सौम्यता से पूछा, “हे सौभाग्यवती! तुम कौन हो और इस घने वन में किस उद्देश्य से आई हो?”

ललिता ने भावुक होकर उत्तर दिया, “हे मुनिवर! मेरा नाम ललिता है। मैं गंधर्व कन्या हूँ। मेरे पति ललित को राजा पुण्डरीक के श्राप के कारण राक्षस योनि में जाना पड़ा है। अब वे भयानक रूप धारण कर चुके हैं और इस पीड़ा से मेरा हृदय व्यथित है। कृपा करके आप मुझे ऐसा उपाय बताइए जिससे मेरे पति को इस श्राप से मुक्ति मिल सके।”

महर्षि श्रृंगी ने गंभीरता से कहा, “हे ललिता! सौभाग्य से निकट ही चैत्र शुक्ल पक्ष की कामदा एकादशी आने वाली है। यह एकादशी समस्त पापों को हरने वाली और सभी इच्छाओं को पूर्ण करने वाली मानी जाती है। यदि तुम श्रद्धा और नियमपूर्वक इस एकादशी का व्रत करो और व्रत का संपूर्ण पुण्य अपने पति को अर्पित कर दो, तो निश्चित ही वे राक्षस योनि से मुक्त होकर अपने पूर्व स्वरूप को प्राप्त कर लेंगे। राजा का दिया हुआ श्राप भी इस पुण्य के प्रभाव से शांत हो जाएगा।”

ऋषि की यह वाणी सुनकर ललिता के मन में आशा का संचार हुआ और उसने व्रत करने का संकल्प लिया।

मुनि श्रृंगी की वाणी को श्रद्धा से सुनने के बाद, ललिता ने चैत्र शुक्ल पक्ष की कामदा एकादशी का व्रत पूरे नियम और भक्ति भाव से किया। जब द्वादशी तिथि आई, तब उसने ब्राह्मणों को आमंत्रित कर विधिपूर्वक पूजन किया और सभी नियमों का पालन करते हुए व्रत का पुण्य फल अपने पति को अर्पित करने के लिए भगवान श्रीहरि से प्रार्थना करने लगी।

ललिता ने विनम्र भाव से कहा— “हे भगवन! मैंने यह एकादशी व्रत पूर्ण श्रद्धा और विश्वास के साथ किया है। मेरी यही प्रार्थना है कि इसका समस्त पुण्य मेरे पति को प्राप्त हो, जिससे वह राक्षस योनि से मुक्त होकर पुनः अपने वास्तविक स्वरूप को प्राप्त करें।”

भगवान विष्णु की कृपा से जैसे ही व्रत का पुण्य फल अर्पित किया गया, उसी क्षण उसका पति ललित भयंकर राक्षस स्वरूप से मुक्त होकर पहले जैसा सुंदर, तेजस्वी और दिव्य गंधर्व बन गया। वह सुंदर वस्त्रों और आभूषणों से अलंकृत होकर अपनी प्रिय पत्नी ललिता के साथ प्रसन्नता पूर्वक विहार करने लगा। कुछ समय पश्चात, वे दोनों दिव्य विमान पर आरूढ़ होकर स्वर्गलोक की ओर प्रस्थान कर गए।

महर्षि वशिष्ठ ने इस कथा को सुनाते हुए राजा दिलीप से कहा— “हे राजन्! जो भक्तजन कामदा एकादशी का व्रत श्रद्धा और विधि-विधान से करते हैं, वे न केवल समस्त पापों से मुक्त हो जाते हैं, बल्कि दुर्गति, पिशाच या राक्षस जैसी योनियों से भी छुटकारा पा लेते हैं। संसार में इस एकादशी के समान पुण्यदायी व्रत कोई दूसरा नहीं है। इस व्रत की कथा को श्रद्धा से पढ़ने अथवा सुनने से भी मनुष्य को वाजपेय यज्ञ के समान फल की प्राप्ति होती है।”

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FAQs

कामदा एकादशी व्रत क्यों किया जाता है?

कामदा एकादशी व्रत का मुख्य उद्देश्य पापों का नाश और मनोकामनाओं की पूर्ति है। यह व्रत व्यक्ति को राक्षस, पिशाच या अन्य नीच योनियों से मुक्ति दिलाने वाला माना गया है। जो भक्त सच्चे भाव से यह व्रत करते हैं, उन्हें ईश्वर की विशेष कृपा प्राप्त होती है।

कामदा एकादशी व्रत से कौन-कौन से लाभ प्राप्त होते हैं?

इस व्रत से सभी प्रकार के पाप नष्ट हो जाते हैं। राक्षस जैसी भयावह योनियों से मुक्ति मिलती है और मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। कथा अनुसार, व्रत का पुण्य फल किसी प्रियजन को समर्पित कर देने से भी वह उद्धार को प्राप्त कर सकता है।

कामदा एकादशी की व्रत विधि क्या है?

कामदा एकादशी के दिन व्रती को ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करके भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए। दिनभर उपवास करके भगवान का ध्यान करना चाहिए। अगले दिन द्वादशी को व्रत का पुण्य ब्राह्मणों को भोजन कराकर या दान देकर पूर्ण करना चाहिए।

क्या कामदा एकादशी व्रत कथा सुनने से भी पुण्य मिलता है?

हाँ, महर्षि वशिष्ठ के अनुसार, कामदा एकादशी व्रत कथा का श्रवण या पाठ करने से वाजपेय यज्ञ के समान पुण्य प्राप्त होता है। यह कथा सुनने मात्र से ही श्रद्धालु को आत्मिक शांति और मोक्ष मार्ग का लाभ मिलता है।

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