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Meera Bai Story: जानिये मीरा बाई कौन थी, उनका विवाह किससे हुआ था, क्यों लिया था पुनर्जन्म और भी बहुत कुछ

कृष्ण भक्त मीराबाई की मृत्यु आज भी एक रहस्य बनी हुई है। उनके जीवन के अंत का कोई ठोस प्रमाण नहीं मिलता, और इसे लेकर विद्वानों के अलग-अलग मत हैं। कुछ के अनुसार, मीराबाई का निधन वर्ष 1546 में हुआ, जबकि अन्य का मानना है कि यह 1548 में हुआ था। इसी तरह, उनकी मृत्यु का स्थान भी स्पष्ट नहीं है, हालांकि अधिकतर मत इसे द्वारका से जोड़ते हैं। आइए, इस लेख के माध्यम से मीराबाई के जीवन से जुड़ी अन्य रोचक बातों को जानें।

मीराबाई का जन्म कब और कहाँ हुआ था?

ऐतिहासिक साक्ष्यों के अनुसार, मीराबाई का जन्म 1498 ईस्वी में राजस्थान के मेड़ता में हुआ था। उनके पिता मेड़ता के शासक थे। कहा जाता है कि बचपन में उनकी मां ने मीराबाई से मजाक में कहा कि श्रीकृष्ण उनके दूल्हा हैं। इस बात को मीराबाई ने हृदय से सत्य मान लिया। तभी से उनका श्रीकृष्ण के प्रति ऐसा लगाव हो गया कि उन्होंने उन्हें ही अपना सब कुछ मान लिया और जीवनभर कृष्ण भक्ति में लीन रहीं।

मीराबाई का विवाह किससे हुआ था?

जैसे-जैसे मीराबाई बड़ी हुईं, उनका श्रीकृष्ण के प्रति प्रेम और गहरा होता गया, भले ही उनका विवाह भोजराज के साथ हो गया था। अन्य युवतियों की तरह मीराबाई भी अपने पति को लेकर कल्पनाएं करती थीं, लेकिन उनकी सभी भावनाएं और विचार केवल श्रीकृष्ण के लिए ही समर्पित रहते थे। मीराबाई का विवाह 1516 ईस्वी में मेवाड़ के राजकुमार और राणा सांगा के पुत्र भोजराज के साथ हुआ था। दुर्भाग्यवश, भोजराज 1518 में एक संघर्ष में घायल हो गए और 1521 में उनका निधन हो गया।

मीराबाई ने सती प्रथा को स्वीकार करने से साफ इनकार किया था

मीराबाई ने पति भोजराज की मृत्यु के बाद सती प्रथा को स्वीकार करने से साफ इनकार कर दिया। उस समय की सामाजिक परंपराओं के विपरीत, मीरा ने अपने जीवन को श्रीकृष्ण की भक्ति के लिए समर्पित कर दिया। धीरे-धीरे वे सांसारिक मोह-माया से दूर हो गईं और साधु-संतों के साथ संगति कर भजन-कीर्तन में अपना समय बिताने लगीं। हालांकि, मीराबाई की कृष्ण भक्ति को उनके ससुराल के राजपरिवार ने उचित नहीं समझा और उन्हें बार-बार अत्याचारों का सामना करना पड़ा।

मीराबाई को विष कौन देना चाहता था?

पति की मृत्यु के बाद मीराबाई की कृष्ण भक्ति दिन-प्रतिदिन गहरी होती गई। वे मंदिरों में जाकर श्रीकृष्ण की मूर्ति के समक्ष भक्तों के बीच घंटों नृत्य और कीर्तन करती थीं। मीराबाई की भक्ति का यह अनोखा तरीका उनके ससुराल पक्ष को पसंद नहीं आया। परिवारजनों ने उनके इस आचरण को राजपरिवार की गरिमा के खिलाफ माना और उन्हें मारने के लिए कई बार विष देने का प्रयास किया। लेकिन मीराबाई का श्रीकृष्ण के प्रति प्रेम और भक्ति हर बार इन षड्यंत्रों पर भारी पड़ गई।

मीराबाई की मृत्यु कब और कैसे हुई?

सन् 1533 में राव बीरमदेव ने मीराबाई को मेड़ता बुला लिया, और इसके अगले ही वर्ष 1534 में गुजरात के बहादुरशाह ने चित्तौड़ पर अधिकार कर लिया। मीराबाई ने इसके बाद ब्रज की तीर्थ यात्रा का रुख किया। कुछ समय वृंदावन में व्यतीत करने के बाद, वे सन् 1546 के आस-पास द्वारका चली गईं। अधिकांश विद्वानों का मानना है कि यहीं पर मीराबाई अपनी कृष्ण भक्ति में लीन होकर श्रीकृष्ण की मूर्ति में विलीन हो गईं।

मीराबाई पिछले जन्म में कौन थी?

मान्यता है कि मीराबाई अपने पिछले जन्म में वृंदावन की एक गोपी थीं, जिनका नाम माधवी था। कहा जाता है कि वे भगवान श्रीकृष्ण के एक गोप सखा की पत्नी थीं। विवाह के बाद, उनकी सास ने उन्हें श्रीकृष्ण की ओर देखने तक से मना कर दिया था, क्योंकि उनकी सास भगवान के दिव्य स्वरूप से अनजान थीं। माधवी को अपनी इस गलती का एहसास गोवर्धन लीला के दौरान हुआ, जब उन्होंने भगवान के भगवत स्वरूप को पहचाना। अपने पिछले जन्म की अधूरी भक्ति को पूर्ण करने के लिए ही उन्होंने इस जन्म में मीराबाई का रूप धारण किया।

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