यशोदा जयंती फाल्गुन माह में मनाई जाने वाली एक महत्वपूर्ण तिथि है, जिसे भगवान श्री कृष्ण की पालक माता यशोदा के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। यह दिन विशेष रूप से द्वारका, ब्रज, वृंदावन और मथुरा में अत्यंत महत्व रखता है। इस दिन माता यशोदा के प्रति भक्तजन अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हैं और उनके जीवन से प्रेरणा लेने का प्रयास करते हैं।
यशोदा जयंती 2025 तिथि (Yashoda Jayanti 2025 Date)
यशोदा जयंती 2025 में 18 फरवरी को पड़ रही है।
माता यशोदा का जीवन और योगदान
ब्रज के राजा नंद की पत्नी माता यशोदा ने श्री कृष्ण की परवरिश की। जब भगवान श्री कृष्ण के वास्तविक माता-पिता, वसुदेव और देवकी, कंस की जेल में बंद थे, तब माता यशोदा ने श्री कृष्ण को अपने पुत्र के रूप में अपनाया और उनका पालन-पोषण किया। उनका स्नेह और समर्पण भगवान कृष्ण के जीवन में एक विशेष स्थान रखता है।
माता यशोदा का नाम भगवान श्री कृष्ण के बाल्यकाल की लीलाओं में अमर है। उन्होंने श्री कृष्ण को न केवल ममता और प्रेम से संभाला, बल्कि उन्हें एक आदर्श माता का स्वरूप भी प्रदान किया। उनकी ममता और करुणा के उदाहरण आज भी सभी माताओं के लिए प्रेरणा बने हुए हैं।
श्री कृष्ण और माता यशोदा से जुड़ी प्रमुख घटनाएँ
माता यशोदा और श्री कृष्ण के जीवन से जुड़े कई प्रसंग भक्तों के हृदय में बसे हुए हैं। इनमें से कुछ प्रमुख घटनाएँ हैं:
- ब्रह्मांड दर्शन का प्रसंग:
एक बार जब बालक श्री कृष्ण मिट्टी खा रहे थे, तब माता यशोदा ने उन्हें डांटते हुए उनके मुंह में झाँक कर देखा। इस दृश्य ने उन्हें चकित कर दिया, क्योंकि उन्होंने श्री कृष्ण के मुख में संपूर्ण ब्रह्मांड के दर्शन किए। यह घटना माता यशोदा के लिए एक दिव्य अनुभव थी, जो इस बात का प्रमाण थी कि श्री कृष्ण केवल एक साधारण बालक नहीं, बल्कि ईश्वर का स्वरूप हैं। - दामोदर लीला (चक्की से बांधने की घटना):
एक अन्य प्रसंग में माता यशोदा ने श्री कृष्ण को दंड देने के लिए उन्हें एक चक्की से बांध दिया। श्री कृष्ण की यह बाल लीला “दामोदर लीला” के नाम से प्रसिद्ध है। इस घटना में श्री कृष्ण ने अपनी ममतामयी माँ के प्रेम को समझते हुए उनके प्रयासों को सफल होने दिया। यह कथा भगवान और भक्त के बीच के गहरे प्रेम और समर्पण को दर्शाती है।
यशोदा जयंती का महत्व (Yashoda Jayanti Mahatva)
यशोदा जयंती उत्तर भारत में प्रचलित पारंपरिक हिंदू चंद्र कैलेंडर के अनुसार फाल्गुन कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाई जाती है। यह चंद्रमा के क्षीण होने के छठे दिन पड़ती है। इस पावन दिन पर भक्तजन माता यशोदा के जीवन और उनके श्री कृष्ण के प्रति अद्वितीय प्रेम को स्मरण करते हैं।
यशोदा जयंती पर विशेष रूप से भगवान श्री कृष्ण और माता यशोदा की पूजा-अर्चना की जाती है। भक्तजन इस दिन उपवास रखते हैं और मंदिरों में विशेष कार्यक्रमों का आयोजन होता है। ब्रज, वृंदावन और मथुरा में इस दिन का माहौल अद्भुत होता है। लोग भजन-कीर्तन करते हैं और माता यशोदा की ममता और स्नेह के प्रति अपनी श्रद्धा अर्पित करते हैं।
माता यशोदा का आदर्श जीवन
माता यशोदा का जीवन एक माँ के लिए प्रेरणा का स्रोत है। उन्होंने न केवल श्री कृष्ण को बालपन में अपने स्नेह और देखभाल से पोषित किया, बल्कि उनका जीवन यह सिखाता है कि एक माँ का प्यार निस्वार्थ और असीम होता है। उनकी ममता, स्नेह और समर्पण से भरा जीवन सभी के लिए अनुकरणीय है।
यशोदा जयंती मनाने का मुख्य उद्देश्य भी यही है कि लोग माता यशोदा के जीवन से प्रेरणा लें और अपने बच्चों के प्रति ममता और स्नेह का भाव रखें। उनका जीवन यह संदेश देता है कि प्रेम और समर्पण से भगवान को भी अपने भक्त के सामने झुकना पड़ता है।
यशोदा जयंती का उत्सव हमें माता यशोदा और भगवान श्री कृष्ण के बीच के उस अनमोल संबंध की याद दिलाता है, जो प्रेम, विश्वास और भक्ति से भरा हुआ है। यही कारण है कि यह दिन सभी भक्तों के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर बन जाता है।