चैत्र कृष्ण पक्ष की सप्तमी को शीतला सप्तमी के नाम से जाना जाता है। इस दिन माता शीतला की पूजा की जाती है, जो धार्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है। शीतला सप्तमी के अगले दिन शीतला अष्टमी या बसौड़ा पर्व मनाया जाता है। इस वर्ष शीतला सप्तमी का पर्व 21 मार्च मनाया जाएगा। इस दिन माता शीतला को बासी भोजन का भोग लगाने की परंपरा है।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, माता शीतला की पूजा करने से महामारियों से रक्षा होती है। यह माना जाता है कि जो व्यक्ति शीतला सप्तमी का व्रत रखता है और माता शीतला की विधिपूर्वक पूजा करता है, उसे चेचक, बुखार, फोड़े-फुंसी और आंखों से जुड़ी समस्याओं से मुक्ति मिलती है। इस शुभ अवसर पर व्रत रखने वाले भक्तों को माता शीतला की पौराणिक कथा अवश्य पढ़नी चाहिए।
शीतला सप्तमी महत्व
माता शीतला को स्वच्छता, स्वास्थ्य और सुख-समृद्धि की देवी माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि जिस घर में शीतला सप्तमी पर शीतला माता का व्रत और पूजन विधिपूर्वक किया जाता है, वहां सदैव सुख-शांति का वास होता है और रोगों से मुक्ति प्राप्त होती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, नेत्र रोग, ज्वर, चेचक, कुष्ठ रोग, फोड़े-फुंसी और अन्य चर्म रोगों से पीड़ित व्यक्ति यदि माता शीतला की आराधना करता है, तो उसे रोगों से राहत मिलती है। यही नहीं, भक्त के कुल में भी यदि कोई इन रोगों से प्रभावित हो, तो माता की कृपा से ये रोग-दोष समाप्त हो जाते हैं।
शीतला सप्तमी पूजा विधि
शीतला सप्तमी के एक दिन पूर्व माता शीतला को भोग लगाने के लिए घरों में विभिन्न प्रकार के पकवान तैयार किए जाते हैं। पूजा के दिन महिलाएं सुबह-सुबह मीठे चावल, दही, रोटी, हल्दी, चने की दाल और एक लोटे में पानी लेकर शीतला सप्तमी की पूजा करती हैं। पूजा के दौरान माता को जल अर्पित करें और उस जल की कुछ बूंदें अपने ऊपर छिड़कें। जो जल माता को चढ़ाएं और चढ़ने के बाद जो बहता है, उसे एक लोटे में इकट्ठा कर लें। यह जल पवित्र माना जाता है। इसे घर के सभी सदस्य अपनी आंखों पर लगाएं और थोड़ा जल पूरे घर में छिड़कें। ऐसा करने से घर की नकारात्मक ऊर्जा समाप्त हो जाती है।
इसके बाद सभी तैयार खाद्य पदार्थों से माता को भोग लगाएं। भोग के बाद थाली में जो भोजन बचा हो, उसे कुम्हार को दान कर दें। इसके पश्चात माता शीतला की कथा पढ़ें और अपने परिवार के लिए सुख-शांति और आरोग्य की प्रार्थना करें।धार्मिक मान्यता के अनुसार, मां शीतला का वास वट वृक्ष में होता है। इसलिए इस दिन वट वृक्ष का पूजन करना भी शुभ और फलदायी माना जाता है। इससे मां शीतला की कृपा प्राप्त होती है और परिवार पर आने वाले रोग-दोषों से रक्षा होती है।
शीतला सप्तमी व्रत पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, एक राजा के इकलौते पुत्र को एक बार शीतला रोग (चेचक) हो गया। उसी राज्य में एक गरीब काछी परिवार के पुत्र को भी यही रोग हुआ था। हालांकि, काछी परिवार भगवती शीतला के परम भक्त थे और पूजा-पाठ के नियमों का सख्ती से पालन करते थे। उनके घर में हमेशा साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखा जाता था। विधि-विधान से भगवती की पूजा होती थी।
उनके घर में नमक का सेवन वर्जित था, सब्जियों में छौंक नहीं लगाया जाता था, और तली-भुनी चीजें खाने से परहेज किया जाता था। गरम चीजों का सेवन भी न तो काछी करता था और न ही अपने शीतला रोगी पुत्र को देता था। इन सभी नियमों और सावधानियों का पालन करने के कारण काछी का पुत्र बहुत जल्दी स्वस्थ हो गया।
राजा ने अपने पुत्र की शीतला रोग से मुक्ति के लिए भगवती शीतला के मंडप में शतचंडी पाठ शुरू करवाया। रोज हवन और बलिदान किए जाते थे, और राजपुरोहित पूरी निष्ठा से भगवती की पूजा में लगे रहते थे। हालांकि, राजमहल में विपरीत रूप से रोज कड़ाही चढ़ाई जाती थी और तरह-तरह के गरम और स्वादिष्ट पकवान बनाए जाते थे। सब्जियों के अलावा मांसाहारी व्यंजन भी पकाए जाते थे। इन पकवानों की सुगंध से राजकुमार का मन ललचाता था, और वह भोजन के लिए जिद करता था। इकलौता पुत्र होने के कारण उसकी हर जिद पूरी कर दी जाती थी।
इसका परिणाम यह हुआ कि शीतला का प्रकोप घटने के बजाय और अधिक बढ़ने लगा। राजकुमार के शरीर पर बड़े-बड़े फोड़े निकल आए, जिनमें खुजली और जलन बहुत बढ़ गई। राजा ने शीतला के प्रकोप को शांत करने के लिए हर संभव प्रयास किया, लेकिन अज्ञानतावश महल में किए जा रहे गलत कार्यों के कारण रोग और बढ़ गया। इस स्थिति से राजा अत्यधिक परेशान हो गया और समझ नहीं पा रहा था कि उनकी सारी कोशिशों के बावजूद शीतला का प्रकोप शांत क्यों नहीं हो रहा है।
एक दिन राजा के गुप्तचरों ने सूचना दी कि काछी-पुत्र को भी शीतला रोग हुआ था, लेकिन अब वह पूरी तरह ठीक हो चुका है। यह सुनकर राजा को अत्यंत आश्चर्य हुआ। उसने सोचा, “मैं शीतला देवी की इतनी सेवा कर रहा हूं, पूजा-अनुष्ठानों में कोई कमी नहीं कर रहा हूं, फिर भी मेरा पुत्र ठीक होने के बजाय और अधिक बीमार होता जा रहा है। दूसरी ओर, काछी-पुत्र बिना किसी विशेष पूजा या सेवा के ही स्वस्थ हो गया।” इन विचारों में खोए हुए राजा को गहरी नींद आ गई।
तभी श्वेत वस्त्र धारण किए भगवती ने राजा के स्वप्न में प्रकट होकर कहा, “हे राजन! मैं तुम्हारी भक्ति और सेवा से प्रसन्न हूं, यही कारण है कि तुम्हारा पुत्र अभी तक जीवित है। परंतु उसके रोग का ठीक न होना इस बात का संकेत है कि तुमने शीतला रोग के समय पालन किए जाने वाले नियमों का उल्लंघन किया है। इस स्थिति में तुम्हें रोगी के भोजन में नमक का त्याग करना चाहिए, क्योंकि नमक से फोड़ों में खुजली बढ़ती है।
इसके अलावा, बिना छौंक की सब्जियां बनानी चाहिए, क्योंकि छौंक की सुगंध रोगी का मन भटकाती है। साथ ही, रोगी को अन्य लोगों के पास जाने से बचाना चाहिए, ताकि संक्रमण न फैले। इन सभी नियमों का पालन करने से तुम्हारा पुत्र शीघ्र स्वस्थ हो जाएगा।” यह समझाकर देवी अंतर्ध्यान हो गईं।
सुबह उठते ही राजा ने देवी के बताए हुए सभी नियमों का पालन करना आरंभ कर दिया। इन उपायों से राजकुमार की स्थिति में सुधार होने लगा और वह अंततः पूरी तरह स्वस्थ हो गया। शीतला माता की पूजा के साथ इस दिन भगवान श्रीकृष्ण और माता देवकी का पूजन कर सात्विक भोग लगाने की परंपरा है। इस प्रकार विधिपूर्वक पूजन और कथा सुनने से पुण्य की प्राप्ति होती है और जीवन के कष्टों का निवारण होता है।
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