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Mahashivratri 2025: रुद्राभिषेक है भगवान शिव का अभिषेक, जाने इसके लाभ, विधि और रुद्राभिषेक आरंभ होने के पीछे की कथा

रुद्राभिषेक शिवलिंग पर रुद्र मंत्रों के साथ किया जाने वाला अभिषेक है, जिसे भगवान शिव को प्रसन्न करने का सबसे उत्तम उपाय माना जाता है। त्रयोदशी, प्रदोष और सोमवार के दिन रुद्राभिषेक करना विशेष रूप से शुभ और कल्याणकारी होता है। इस अभिषेक से समस्त कष्टों और दुखों का नाश होता है तथा मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

रुद्राभिषेक
Mahashivratri 2025

रुद्राभिषेक क्या है? (Rudrabhishek Kya Hai?)

“अभिषेक” शब्द का अर्थ स्नान कराना या करवाना होता है, और रुद्राभिषेक का अर्थ है भगवान रुद्र (शिव) का पवित्र अभिषेक। इस प्रक्रिया में शिवलिंग पर रुद्र मंत्रों के उच्चारण के साथ जल, दूध, शहद, दही, घी, बेलपत्र आदि चढ़ाए जाते हैं। यह विशेष अभिषेक रुद्र रूप भगवान शिव की आराधना का सबसे प्रभावशाली स्वरूप माना जाता है। अभिषेक के कई प्रकार होते हैं, लेकिन रुद्राभिषेक को सर्वश्रेष्ठ माना गया है। इसे स्वयं करना या विद्वान ब्राह्मणों द्वारा करवाना अत्यधिक फलदायी होता है। भगवान शिव अपनी जटा में गंगा को धारण किए हुए हैं, इसलिए वे जलधारा से विशेष रूप से प्रसन्न होते हैं।

सर्वदोष नाश के लिए रुद्राभिषेक विधि (Rudrabhishek Vidhi)

रुद्राभिषेक का अर्थ है शिवलिंग पर रुद्र मंत्रों के साथ अभिषेक करना, जिसे समस्त दोषों और कष्टों के नाश के लिए अत्यंत प्रभावी उपाय माना गया है। वेदों के अनुसार, शिव और रुद्र एक ही स्वरूप हैं, इसलिए भगवान शिव को रुद्र भी कहा जाता है।

संस्कृत में कहा गया है—
“रुतम्-दु:खम्, द्रावयति-नाशयतीतिरुद्र:”
अर्थात, जो सभी दुखों का नाश करते हैं, वे ही रुद्र हैं। धार्मिक ग्रंथों में वर्णित है कि मनुष्य के दुखों का मूल कारण उसके स्वयं के किए गए पाप होते हैं। इन पापों को नष्ट करने और जीवन में सुख-समृद्धि लाने के लिए रुद्राभिषेक सबसे श्रेष्ठ साधना मानी गई है।

रुद्राभिषेक का वेदों में महत्व (Rudrabhishek Mahatva)

रुद्र शिव का ही एक स्वरूप हैं, और उनकी पूजा के लिए ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद में भी रुद्राभिषेक मंत्रों का वर्णन मिलता है। शास्त्रों और वेदों में बताया गया है कि शिवलिंग पर रुद्राभिषेक करने से जीवन में शुभता और कल्याण प्राप्त होता है

किस दिन करना चाहिए रुद्राभिषेक?

रुद्राभिषेक किसी भी दिन किया जा सकता है, लेकिन त्रयोदशी तिथि, प्रदोष काल और सोमवार को इसका विशेष महत्व माना गया है। इन दिनों में किया गया रुद्राभिषेक अत्यंत कल्याणकारी और शुभ फलदायी होता है। श्रावण मास और महाशिवरात्रि के दौरान किसी भी दिन किया गया रुद्राभिषेक शीघ्र मनोकामनाएं पूर्ण करने वाला और अद्भुत फल देने वाला माना जाता है।

क्यों करते हैं रुद्राभिषेक ?

रुद्राष्टाध्यायी के अनुसार, शिव ही रुद्र हैं और रुद्र ही शिव। संस्कृत में कहा गया है—
“रुतम्-दु:खम्, द्रावयति-नाशयतीतिरुद्र:”
अर्थात, रुद्र रूप में प्रतिष्ठित भगवान शिव हमारे समस्त कष्टों और दुखों का शीघ्र नाश कर देते हैं

वास्तव में, जो भी कष्ट हम अपने जीवन में भोगते हैं, वे हमारे स्वयं के कर्मों का परिणाम होते हैं। जाने-अनजाने में किए गए प्रकृति के विरुद्ध आचरण ही हमारे दुखों का मूल कारण बनते हैं। रुद्राभिषेक करने से न केवल हमारे जीवन के दोषों का नाश होता है, बल्कि सुख, समृद्धि और शांति भी प्राप्त होती है।

रुद्राभिषेक की उत्पत्ति कैसे हुई?

पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान विष्णु की नाभि से उत्पन्न कमल से ब्रह्माजी की उत्पत्ति हुई। जब ब्रह्माजी अपने जन्म का कारण जानने के लिए भगवान विष्णु के पास पहुँचे, तो विष्णु जी ने उन्हें उनकी उत्पत्ति का रहस्य बताया और कहा कि उनकी सृष्टि का मूल कारण वे स्वयं हैं। लेकिन ब्रह्माजी इस बात को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हुए, जिसके परिणामस्वरूप दोनों के बीच एक भयंकर युद्ध छिड़ गया।

इस महासंग्राम से भगवान रुद्र क्रोधित हो गए और वे एक विशाल लिंग के रूप में प्रकट हुए। जब ब्रह्मा और विष्णु ने इस लिंग का आदि और अंत जानने का प्रयास किया, तो वे असफल रहे और अंततः अपनी हार स्वीकार कर ली। दोनों देवताओं ने इस लिंग का अभिषेक किया, जिससे भगवान शिव प्रसन्न हुए। यही क्षण रुद्राभिषेक की परंपरा की शुरुआत माना जाता है।

एक अन्य कथा के अनुसार, भगवान शिव एक बार माता पार्वती और अपने परिवार के साथ नंदी पर विहार कर रहे थे। तभी माता पार्वती की दृष्टि मर्त्यलोक (पृथ्वी) पर गई, जहाँ उन्होंने भक्तों को रुद्राभिषेक करते हुए देखा। यह देखकर उन्होंने भगवान शिव से जिज्ञासा प्रकट की – “हे नाथ! मर्त्यलोक में इस प्रकार आपकी पूजा क्यों की जाती है, और इसका फल क्या होता है?”

भगवान शिव ने उत्तर दिया – “हे प्रिये! जो व्यक्ति शीघ्रता से अपनी इच्छाओं की पूर्ति करना चाहता है, वह मेरी विभिन्न सामग्रियों से अभिषेक करता है। मैं आशुतोष (शीघ्र प्रसन्न होने वाला) हूँ, और जो भक्त श्रद्धा भाव से रुद्राभिषेक करता है, मैं उसे मनोवांछित फल प्रदान करता हूँ।”

शिव जी ने आगे बताया कि यदि कोई भक्त शुक्ल यजुर्वेदीय रुद्राष्टाध्यायी से अभिषेक करता है, तो मैं शीघ्र प्रसन्न होकर उसकी मनोकामनाएँ पूर्ण करता हूँ। अभिषेक के लिए उपयोग किए जाने वाले पदार्थ भी व्यक्ति की इच्छाओं के अनुरूप होते हैं –

  • जो व्यक्ति वाहन प्राप्त करना चाहता है, उसे दही से अभिषेक करना चाहिए।
  • यदि कोई रोग और कष्टों से मुक्ति चाहता है, तो उसे कुशा के जल से अभिषेक करना चाहिए।

इस प्रकार, रुद्राभिषेक विशेष इच्छाओं की पूर्ति के लिए किया जाता है और भगवान शिव की कृपा शीघ्र प्राप्त होती है।

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