Mahabharat Story: यह प्रसंग महाभारत के युद्ध का है, जहाँ भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं युद्ध में शस्त्र न उठाने का संकल्प लिया था। उन्होंने अर्जुन के सारथी बनकर उसे धर्म का मार्ग दिखाया। लेकिन युद्ध के दौरान एक ऐसा क्षण भी आया जब उन्हें अपना यह प्रण तोड़ने की नौबत आ गई। आइए जानते हैं इसकी वजह। भीष्म पितामह महाभारत के महानतम योद्धाओं में गिने जाते हैं। वे धर्म, नीति और कर्तव्य के प्रतीक माने जाते हैं।

उन्होंने जीवनभर ब्रह्मचर्य का पालन करने और विवाह न करने का व्रत लिया था, इसी कारण उन्हें ‘भीष्म’ की उपाधि मिली। महाभारत के युद्ध में उन्होंने कौरव पक्ष से युद्ध करते हुए सेनापति की जिम्मेदारी निभाई थी।
इसलिए भगवान श्रीकृष्ण ने तोड़ा अपना प्रण
कुरुक्षेत्र के युद्ध में एक समय ऐसा आया जब भीष्म पितामह पांडवों के विनाश के लिए पूरी तरह तैयार हो गए थे। उन्होंने यह दृढ़ निश्चय कर लिया था कि या तो वे पांचों पांडवों का अंत कर देंगे या फिर भगवान श्रीकृष्ण को युद्ध में शस्त्र उठाने के लिए विवश कर देंगे। दूसरी ओर, अर्जुन जब अपने समक्ष भीष्म पितामह को युद्धभूमि में खड़ा देखता है, तो वह हिचकिचाने लगता है और युद्ध से पीछे हट जाता है।
अर्जुन की यह हालत देखकर भगवान श्रीकृष्ण अत्यंत क्रोधित हो जाते हैं। वे अपना शस्त्र न उठाने का व्रत तोड़ते हुए रथ से नीचे उतरते हैं और एक टूटे हुए रथ का पहिया उठाकर भीष्म पितामह की ओर प्रहार करने के लिए दौड़ पड़ते हैं।
महाभारत के युद्ध में क्यों लिया श्रीकृष्ण ने प्रण तोड़ने का निर्णय
भीष्म पितामह भली-भांति जानते थे कि महाभारत का यह युद्ध धर्म और अधर्म के बीच हो रहा है, जिसमें पांडव धर्म के पक्ष में हैं जबकि कौरव अधर्म का साथ दे रहे हैं। इसके बावजूद वे अपनी प्रतिज्ञा के कारण कौरवों की ओर से युद्ध कर रहे थे और पांडवों का विनाश करने के लिए प्रतिबद्ध थे। दूसरी ओर अर्जुन अपने पितामह के विरुद्ध युद्ध करने से झिझक रहे थे, जिससे धर्म संकट में पड़ता दिख रहा था।
इस स्थिति को देखकर भगवान श्रीकृष्ण ने महसूस किया कि यदि वे अपने शस्त्र न उठाने के व्रत पर अडिग रहते हैं, तो अधर्म को बल मिलेगा और धर्म की पराजय हो जाएगी। इसी कारण उन्होंने निर्णय लिया कि धर्म की रक्षा हेतु उन्हें अपनी प्रतिज्ञा तोड़नी होगी। तब वे अर्जुन से कहते हैं, “मैंने शस्त्र न उठाने का संकल्प लिया था, लेकिन धर्म की रक्षा के लिए आज मैं इसे भंग करने जा रहा हूँ और भीष्म का वध करूंगा।”
अर्जुन ने दिया श्रीकृष्ण को वचन
जब अर्जुन ने भीष्म पितामह से युद्ध करने से पीछे हटने का संकेत दिया, तो भगवान श्रीकृष्ण क्रोध में आ गए और धर्म की रक्षा के लिए स्वयं शस्त्र उठाकर भीष्म की ओर बढ़ चले। उसी क्षण अर्जुन दौड़कर श्रीकृष्ण के चरणों में गिर पड़ा और उन्हें रोकने की कोशिश की। अर्जुन को अपनी भूल का एहसास हुआ और उसने प्रभु को यह दृढ़ आश्वासन दिया कि अब वह पूरे संकल्प और साहस के साथ युद्ध करेगा और भीष्म पितामह का सामना करने से पीछे नहीं हटेगा।
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FAQs
भगवान श्रीकृष्ण ने महाभारत युद्ध में स्वयं शस्त्र क्यों उठाने का निर्णय लिया?
जब अर्जुन भीष्म पितामह से युद्ध करने में संकोच करने लगे और धर्म संकट में पड़ गया, तब श्रीकृष्ण ने यह महसूस किया कि अगर वे शस्त्र नहीं उठाएंगे तो अधर्म की जीत हो जाएगी। इसलिए उन्होंने धर्म की रक्षा हेतु अपना प्रण तोड़ने का निर्णय लिया।
महाभारत के युद्ध में भीष्म पितामह ने श्रीकृष्ण को शस्त्र उठाने के लिए क्यों उकसाया?
भीष्म पितामह ने प्रतिज्ञा ली थी कि या तो वे पांडवों का वध करेंगे या श्रीकृष्ण को शस्त्र उठाने के लिए विवश कर देंगे। यह उनके युद्ध कौशल और निष्ठा का एक उदाहरण था।
महाभारत के युद्ध में अर्जुन ने श्रीकृष्ण को शस्त्र उठाने से कैसे रोका?
जब श्रीकृष्ण क्रोधित होकर रथ से उतरकर भीष्म पर प्रहार करने दौड़े, तब अर्जुन ने दौड़कर उनके चरण पकड़ लिए और उन्हें रोकने की कोशिश की। उसने वचन दिया कि अब वह पूरी शक्ति के साथ युद्ध करेगा।
भीष्म पितामह ने अधर्म का साथ क्यों दिया जब वे धर्मप्रिय माने जाते थे?
भीष्म पितामह कौरवों के प्रति अपनी निष्ठा और प्रतिज्ञा के कारण उनके पक्ष में युद्ध कर रहे थे, भले ही उन्हें यह ज्ञात था कि पांडव धर्म की ओर हैं। उनका कर्तव्यबोध ही उन्हें कौरवों की ओर ले गया।