सनातन धर्म में कुंभ मेले का विशेष स्थान है। यह आयोजन न केवल धार्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है, बल्कि भारतीय संस्कृति और आस्था का प्रतीक भी है। कुंभ मेले का वर्णन पौराणिक धर्मग्रंथों में कई जगह मिलता है। “कुंभ” और “मेला” दो शब्दों से मिलकर बने इस आयोजन का इतिहास समुद्र मंथन से जुड़ा हुआ है।
धार्मिक मान्यता के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान अमृत कलश से अमृत की चार बूंदें धरती पर चार स्थानों पर गिरी थीं। ये स्थान हैं – प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक। इन्हीं चार स्थानों पर कुंभ मेले का आयोजन होता है। कुंभ मेला केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं है; यह पवित्रता, आस्था और परंपराओं का ऐसा संगम है जो लाखों श्रद्धालुओं को आत्मिक शांति और मुक्ति का अनुभव कराता है। कुंभ मेला से जुड़ी तीन प्रमुख पौराणिक कथाएं हैं, जो इस मेले के महत्व को विस्तार से समझाती हैं।

पहली कथा: गरुण, नागराज और अमृत कलश (Kumbh Mele Ki Pehli Katha)
कुंभ मेले से पहली दूसरी कथा प्रजापति कश्यप की दो पत्नियों, कद्रू और विनीता के बीच हुए विवाद से संबंधित है। कद्रू और विनीता के बीच यह विवाद था कि सूर्य के रथ के घोड़े सफेद हैं या काले। कद्रू ने छल करते हुए अपने नागपुत्रों से सूर्य के घोड़ों को काले रंग का दिखा दिया, जिससे विनीता इस शर्त में हार गईं।
परिणामस्वरूप, विनीता को दासी बनकर रहना पड़ा। जब विनीता के पुत्र गरुण ने अपनी माता की यह दुर्दशा देखी, तो उसने अपनी मां को इस दासता से मुक्त कराने का निश्चय किया। कद्रू ने गरुण को चुनौती दी कि यदि वह नागलोक से अमृत कलश लेकर आए, तो विनीता को मुक्त कर दिया जाएगा।
गरुण ने अपनी अद्भुत शक्ति और साहस से नागलोक से अमृत कलश प्राप्त किया। जब वह इसे लेकर गंधमादन पर्वत की ओर जा रहे थे, तब इंद्र ने चार बार उन पर हमला किया। इस संघर्ष के दौरान अमृत की बूंदें धरती पर चार स्थानों – हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक – पर गिरीं। यही वे स्थान हैं, जहां आज कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है।
दूसरी कथा: अमृत की बूंदों का पृथ्वी पर गिरना (Kumbh Mele Ki Dusri Katha)
कुंभ मेले की दूसरी और सबसे प्रचलित कथा समुद्र मंथन से प्राप्त अमृत कलश से जुड़ी है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब देवता और असुर समुद्र मंथन से निकले अमृत कलश के लिए संघर्ष कर रहे थे, तब भगवान विष्णु ने अमृत को असुरों से बचाने के लिए मोहिनी रूप धारण किया।
भगवान विष्णु ने अमृत कलश को सुरक्षित रखने के लिए छलपूर्वक उसे देवताओं के पक्ष में कर दिया और अमृत कलश को लेकर भागने लगे। इस दौरान, अमृत कलश से अमृत की कुछ बूंदें चार स्थानों – हरिद्वार, नासिक, उज्जैन और प्रयागराज – पर गिर गईं। इन स्थानों को पवित्र मानते हुए यहां कुंभ मेले का आयोजन किया जाने लगा।
तीसरी कथा: समुद्र मंथन और अमृत कलश की उत्पत्ति (Kumbh Mele Ki Tisri Katha)
कुंभ मेले की तीसरी कथा समुद्र मंथन से संबंधित है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार ऋषि दुर्वासा ने देवराज इंद्र को दिव्य शक्तियों वाला एक पवित्र माला प्रदान किया। इंद्र ने इस माला को अपने हाथी ऐरावत के सिर पर रखा, लेकिन हाथी ने इसे ज़मीन पर गिरा दिया और अपने पैरों से कुचल दिया। इस घटना से ऋषि दुर्वासा अत्यंत क्रोधित हो गए और उन्होंने इंद्र को श्राप दिया, जिसके फलस्वरूप पृथ्वी पर सूखा और विपत्ति छा गई।
इस संकट को दूर करने के लिए देवताओं और दानवों ने मिलकर समुद्र मंथन किया। मंथन से कई अद्भुत वस्तुएं निकलीं, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण था अमृत कलश। अमृत प्राप्त होने के बाद, इसे नागलोक में छिपा दिया गया। बाद में गरुण ने इसे वहां से लाकर देवताओं को सौंपा। ऐसा कहा जाता है कि अमृत कलश को चार स्थानों पर रखा गया था – प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक। यही वे स्थान हैं, जहां कुंभ मेले का आयोजन होता है।
कुंभ मेले का महत्व (Kumbh Mele Ka Mahatva)
कुंभ मेला सनातन धर्म का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन है, जहां करोड़ों श्रद्धालु एकत्र होते हैं। यह मेला आध्यात्मिक उन्नति, आत्मशुद्धि और मोक्ष प्राप्ति का साधन माना जाता है। कुंभ मेले के दौरान इन पवित्र स्थलों पर स्नान करने से पापों का नाश होता है और भक्तों को पुण्य की प्राप्ति होती है।
कुंभ मेला केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति, अध्यात्म और लोक परंपराओं का उत्सव है। यह मानवता, भक्ति और एकता का संदेश देता है। चार पवित्र स्थलों पर आयोजित होने वाला यह मेला हर 12 साल में होता है, और इसका आयोजन धार्मिक मान्यताओं और खगोलीय गणनाओं के आधार पर किया जाता है।
कुंभ मेला न केवल भारत में, बल्कि दुनिया भर में अपनी भव्यता और धार्मिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है। इस मेले का हर पहलू – चाहे वह पवित्र स्नान हो, संतों और महात्माओं की उपस्थिति हो, या लाखों श्रद्धालुओं का समर्पण – भारतीय संस्कृति और धार्मिक परंपराओं की महानता को दर्शाता है।
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