Sawan Sankashti Chaturthi 2025: संकष्टी चतुर्थी सावन माह में आने वाली एक अत्यंत पावन तिथि है, जो भगवान श्रीगणेश को समर्पित होती है। इस दिन भक्तगण व्रत रखकर गणपति बप्पा से जीवन के सभी संकटों को दूर करने की प्रार्थना करते हैं। सावन का महीना स्वयं शिव और गणेश जी का प्रिय होता है, जिससे इस चतुर्थी का महत्व और भी बढ़ जाता है। व्रती दिनभर उपवास रखते हैं और रात्रि को चंद्रोदय के समय गणेश जी की पूजा-अर्चना करते हैं। मान्यता है कि संकष्टी व्रत से सुख, समृद्धि, संतान सुख और मानसिक शांति की प्राप्ति होती है। सावन की संकष्टी चतुर्थी विशेष रूप से मनोकामना पूर्ति का उत्तम अवसर मानी जाती है।

जुलाई 2025 में संकष्टी चतुर्थी की तिथि और पूजा मुहूर्त
संकष्टी चतुर्थी का व्रत 14 जुलाई को रखा जाएगा ।
2025 जुलाई महीने की दूसरी मासिक गणेश चतुर्थी का व्रत 28 जुलाई को रखा जाएगा।
संकष्टी चतुर्थी व्रत का महत्व
संकष्टी का अर्थ है — “संकट को हरने वाली।” इस दिन व्रत करने से जीवन के संकट दूर होते हैं और श्रीगणेश का आशीर्वाद प्राप्त होता है। मान्यता है कि स्वयं माता पार्वती ने सबसे पहले यह व्रत भगवान शिव के कहने पर किया था ताकि श्रीगणेश को जीवनदान मिल सके। उसी समय से इस व्रत की परंपरा प्रारंभ हुई।
कुछ प्रमुख कारण जिनसे यह व्रत महत्वपूर्ण माना जाता है:
- यह व्रत संकटमोचन गणेश की कृपा पाने का उपाय है।
- व्रत से बुद्धि, विवेक और निर्णय शक्ति में वृद्धि होती है।
- यह संतान सुख, रोगमुक्ति और जीवन में शुभता लाने में सहायक है।
- आर्थिक समस्याएं और कोर्ट-कचहरी के झंझटों में राहत मिलती है।
संकष्टी चतुर्थी व्रत की विधि
व्रत की शुरुआत:
- प्रातः स्नान करके साफ वस्त्र पहनें।
- संकल्प लें कि आप संकष्टी व्रत पूर्ण श्रद्धा से करेंगे।
- दिन भर उपवास रखें। निर्जला उपवास सर्वश्रेष्ठ माना जाता है, लेकिन फलाहार भी कर सकते हैं।
पूजन सामग्री
- मूर्त्ति या चित्र भगवान गणेश का
- दूर्वा घास (21 गूंथी हुई)
- लाल फूल, सिंदूर, हल्दी
- धूप, दीपक, नैवेद्य (गुड़, मोदक, फल आदि)
- जल से भरा कलश और एक चांदी या तांबे का पात्र
पूजा विधि
- श्री गणेश की प्रतिमा को स्वच्छ स्थान पर स्थापित करें।
- गणेश जी को पंचामृत से स्नान कराएं (यदि मूर्त्ति हो तो)।
- दूर्वा, सिंदूर, लड्डू अर्पित करें।
- “ॐ गं गणपतये नमः” मंत्र का 108 बार जाप करें।
- चंद्रोदय के समय चंद्रमा को अर्घ्य दें और फिर चंद्रमा और गणेशजी दोनों की पूजा करें।
संकष्टी व्रत कथा का श्रवण करें
पौराणिक कथा के अनुसार एक समय देवी पार्वती ने पुत्र प्राप्ति के लिए यह व्रत किया था। श्रीगणेश ने स्वयं माता को दर्शन देकर कहा कि जो भी व्यक्ति इस दिन चतुर्थी व्रत कर मेरी पूजा करेगा, उसके जीवन से समस्त विघ्न-बाधाएं दूर होंगी।
संकष्टी चतुर्थी व्रत के लाभ
- सभी प्रकार के कष्टों से मुक्ति मिलती है — चाहे वह आर्थिक हो, पारिवारिक हो या मानसिक।
- परीक्षा या प्रतियोगिता में सफलता के लिए यह व्रत विशेष फलदायी माना गया है।
- संतान प्राप्ति एवं संतान सुख में वृद्धि होती है।
- शत्रुओं पर विजय एवं मुकदमे से मुक्ति के लिए अत्यंत प्रभावी।
- घर-परिवार में सुख-शांति एवं सकारात्मक ऊर्जा आती है।
- बिज़नेस, नौकरी में तरक्की के लिए भी यह व्रत उत्तम है।
संकष्टी चतुर्थी व्रत कितनी बार करना चाहिए?
- सामान्यतः यह व्रत हर महीने किया जाता है।
- कुछ श्रद्धालु वर्ष भर की 12 संकष्टी चतुर्थियों या विशेष संकटहर चतुर्थी को ही व्रत करते हैं।
- ज्योतिष अनुसार यदि जन्मकुंडली में चंद्र दोष, राहु-केतु दोष या विघ्नकारक योग हो, तो यह व्रत अत्यंत शुभ माना जाता है।
व्रत में क्या न करें?
- दिन में नींद न लें
- तामसिक भोजन (मांस, लहसुन, प्याज आदि) से परहेज़ करें
- क्रोध, कटु वचन, झूठ से बचें
- चतुर्थी तिथि में चंद्रमा को सीधे न देखें — केवल पूजा के समय अर्घ्य देते समय ही देखें
क्यों करें संकष्टी चतुर्थी व्रत?
संकष्टी चतुर्थी व्रत एक आध्यात्मिक साधना है, जो न केवल आपकी मानसिक शक्ति को बढ़ाता है, बल्कि आपके जीवन की कठिनाइयों को दूर कर देता है। जुलाई 2025 की संकष्टी चतुर्थी खास इसलिए भी है क्योंकि यह चातुर्मास के प्रारंभिक माह में है और भगवान शिव व गणेश दोनों की कृपा पाने का श्रेष्ठ समय है।
जो भी भक्त सच्चे मन से यह व्रत करता है, उसका जीवन विघ्नों से मुक्त होकर आनंद, समृद्धि और सफलता की ओर अग्रसर होता है। यह व्रत जीवन में “संतुलन” और “संतोष” लाता है, जो आज की भागदौड़ में सबसे अधिक आवश्यक है।
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FAQs
जुलाई 2025 में संकष्टी चतुर्थी कब है?
संकष्टी चतुर्थी का व्रत 14 जुलाई को रखा जाएगा ।
संकष्टी चतुर्थी व्रत क्यों किया जाता है?
यह व्रत भगवान श्रीगणेश को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है। इसे करने से जीवन की बाधाएं, संकट, मानसिक तनाव, आर्थिक परेशानियां और कोर्ट-कचहरी जैसे झंझट दूर होते हैं। यह व्रत श्रीगणेश की कृपा से सुख-समृद्धि, विवेक और शांति प्रदान करता है।
संकष्टी चतुर्थी व्रत में क्या नियम होते हैं?
व्रती को प्रातः स्नान कर व्रत का संकल्प लेना चाहिए। दिन भर उपवास करना होता है (निर्जला या फलाहार)। शाम को चंद्रोदय के बाद भगवान गणेश की पूजा, कथा श्रवण और चंद्रमा को अर्घ्य देना आवश्यक होता है। इस दिन तामसिक भोजन, खट्टे पदार्थ और झूठ बोलने से बचना चाहिए।
संकष्टी चतुर्थी व्रत के क्या लाभ हैं?
इस व्रत को करने से व्यक्ति के जीवन की सभी बाधाएं दूर होती हैं। शिक्षा, करियर, विवाह, संतान, स्वास्थ्य और धन संबंधी सभी मनोकामनाएं भगवान गणेश की कृपा से पूर्ण होती हैं। यह व्रत ग्रह दोषों के शमन में भी सहायक होता है, विशेषकर चंद्र, राहु और केतु दोष के लिए।