Santoshi Mata Vrat Katha| संतोषी माता व्रत कथा | पढ़ें संतोष की देवी माता संतोषी की पूरी व्रत कथा

Shukravar Santoshi Mata Vrat Katha :शुक्रवार का दिन संतोषी माता को समर्पित होता है। यह व्रत विशेष रूप से स्त्रियों द्वारा किया जाता है, लेकिन पुरुष भी इसे रख सकते हैं। ऐसा माना जाता है कि जो व्यक्ति शुक्रवार को संतोषी माता का व्रत श्रद्धा और नियमपूर्वक करता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। संतोषी माता को संतोष की देवी कहा जाता है, और जो भक्त जीवन में दुख, गरीबी, कलह या बाधाओं से जूझ रहा होता है, उसे यह व्रत विशेष फल देता है।

संतोषी माता
Shukrawar Santoshi Mata Vrat Katha

संतोषी माता व्रत का महत्व (Santoshi Mata Vrat Mahatva)

संतोषी माता का व्रत रखने से घर में सुख-शांति, धन-समृद्धि और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। यह व्रत नारी शक्ति, विश्वास और भक्ति का प्रतीक है। माता संतोषी उन भक्तों को विशेष कृपा प्रदान करती हैं जो सच्चे मन से उनकी पूजा करते हैं। इस व्रत की विशेष बात यह है कि इसमें केवल गुड़ और चने का प्रसाद चढ़ाया जाता है और व्रत के दिन खटाई (खट्टे पदार्थ) से परहेज़ किया जाता है।

शुक्रवार संतोषी माता व्रत की विधि

संतोषी माता का व्रत 16 शुक्रवारों तक या जब तक मनोकामना पूरी न हो तब तक किया जाता है। इस दिन व्रती को प्रातः स्नान कर माता की मूर्ति या चित्र के समक्ष दीपक जलाकर पूजा करनी चाहिए। माता को गुड़ और चने का भोग लगाना चाहिए। उसके बाद संतोषी माता की कथा सुननी चाहिए। कथा सुनने के बाद प्रसाद सभी को बांट देना चाहिए।

व्रत के लाभ (Santoshi Mata Vrat Labh)

  • पारिवारिक क्लेशों का अंत होता है।
  • दरिद्रता और आर्थिक कष्ट दूर होते हैं।
  • पति-पत्नी के बीच प्रेम बढ़ता है।
  • अविवाहितों को योग्य जीवनसाथी प्राप्त होता है।
  • संतान प्राप्ति की कामना पूरी होती है।
  • नौकरी और व्यापार में वृद्धि होती है।

शुक्रवार संतोषी माता व्रत कथा (Santoshi Mata Vrat Katha)

एक वृद्धा के सात बेटे थे। उनमें से छह कमाते थे और एक बिल्कुल निकम्मा था। वृद्धा सभी बेटों को अच्छे भोजन देती और सबसे अंत में सातवें को जूठन देती। एक दिन उसकी पत्नी ने इस बात को उजागर किया, और सातवां बेटा सत्य जानने के लिए रसोईघर में छिप गया। उसने देखा कि उसकी माँ उसके लिए जूठन से लड्डू बनाती है। दुखी होकर वह घर छोड़ देता है और परदेश चला जाता है। जाते समय वह अपनी पत्नी को अंगूठी देता है और पत्नी पीठ पर गोबर की थाप देकर उसे विदा करती है।

एक सेठ की दुकान में नौकरी मिलने के बाद वह लड़का जल्द ही अपनी मेहनत से व्यवसाय में सफलता प्राप्त करता है और सेठ का साझेदार बन जाता है। इधर उसकी पत्नी सास-ससुर के अत्याचार झेलती है और भूसी की रोटी खाकर जीवन व्यतीत करती है।

एक दिन जंगल में लकड़ी बीनते समय वह महिलाओं को व्रत करते देखती है और संतोषी माता की कथा सुनती है। वह व्रत का संकल्प करती है और श्रद्धा से हर शुक्रवार को व्रत रखने लगती है। माता की कृपा से कुछ ही समय में उसके पति का पत्र और धन आता है। परंतु उद्यापन के समय खटाई का प्रयोग हो जाता है जिससे माता अप्रसन्न हो जाती हैं और उसके पति को जेल जाना पड़ता है। पत्नी फिर माता से क्षमा माँगती है और दोबारा विधिपूर्वक व्रत करती है।

दूसरे व्रत में खटाई का त्याग कर आठ ब्राह्मण बालकों को भोजन कराया जाता है और माता संतुष्ट होती हैं। नवें महीने एक सुंदर पुत्र का जन्म होता है। एक दिन माता स्वयं रौद्र रूप में घर आती हैं, जिसे देखकर सभी डर जाते हैं परंतु बहू पहचान लेती है। माँ सबको दर्शन देती हैं और उनके अपराध क्षमा करती हैं।

जो भक्त श्रद्धा से व्रत करता है, संतोषी माता उसके कष्ट हर लेती हैं और जीवन में सुख-शांति देती हैं। यह कथा नारी शक्ति, आस्था और धैर्य का प्रतीक है।

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