Devshayani Ekadashi 2025 Katha: देवशयनी एकादशी का विशेष महात्म्य ब्रह्मवैवर्त पुराण में विस्तार से बताया गया है। इस व्रत को करने से व्यक्ति की सभी इच्छाएं पूर्ण होने की मान्यता है। यह एकादशी आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की होती है और इसी दिन से चातुर्मास का प्रारंभ माना जाता है। इस चार महीने की अवधि में विवाह आदि जैसे शुभ कार्य वर्जित होते हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार इस दिन भगवान श्री हरि विष्णु क्षीरसागर में योगनिद्रा में चले जाते हैं और चार माह पश्चात देवोत्थानी एकादशी के दिन जागते हैं। इस चार महीने की अवधि को ही चातुर्मास कहा जाता है।

देवशयनी एकादशी को अलग-अलग क्षेत्रों में विभिन्न नामों से जाना जाता है, जैसे — देवशयनी एकादशी, महा एकादशी, हरि शयनी एकादशी, पद्मनाभा एकादशी, प्रबोधिनी एकादशी और तेलुगू में इसे थोली एकादशी कहा जाता है।
देवशयनी एकादशी व्रत कथा (Devshayani Ekadashi Vrat Katha)
धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम, व्रत की विधि और पूजन के देवता के विषय में जानने की जिज्ञासा प्रकट की। तब श्रीकृष्ण ने कहा — हे युधिष्ठिर! मैं तुम्हें वही कथा सुनाता हूँ जो स्वयं ब्रह्माजी ने नारदजी को बताई थी।
एक बार देवर्षि नारद ने ब्रह्माजी से देवशयनी एकादशी का महत्व और इसका विधान जानने की इच्छा व्यक्त की। इस पर ब्रह्माजी ने कहा कि सतयुग में मांधाता नामक एक पराक्रमी राजा राज्य करते थे। उनके राज्य में प्रजा सुखी और संतुष्ट थी, लेकिन भविष्य की घटनाओं को कोई नहीं जानता। राजा मांधाता को यह ज्ञात नहीं था कि उनके राज्य में शीघ्र ही भीषण अकाल पड़ने वाला है।
राजा मांधाता के राज्य में लगातार तीन वर्षों तक वर्षा न होने से भीषण अकाल की स्थिति उत्पन्न हो गई। चारों ओर हाहाकार मच गया और जीवन यापन करना कठिन हो गया। धार्मिक कार्य जैसे यज्ञ, हवन, पिंडदान और व्रत-कथाओं का आयोजन भी कम हो गया। जब चारों ओर संकट हो तो धर्म-कर्म में मन लगाना भी कठिन हो जाता है। परेशान प्रजा अपने राजा के पास पहुँची और अपनी पीड़ा व्यक्त की।
राजा मांधाता स्वयं भी इस स्थिति से अत्यंत दुखी थे। वे विचार करने लगे कि न जाने मुझसे कौन-सा ऐसा पाप हुआ है, जिसके कारण यह विपत्ति आई है। इस संकट से उबरने के उपाय की खोज में उन्होंने अपनी सेना के साथ वन की ओर प्रस्थान करने का निश्चय किया।
वन में भ्रमण करते हुए एक दिन राजा मांधाता ब्रह्माजी के पुत्र अंगिरा ऋषि के आश्रम पर पहुँचे। उन्होंने ऋषि को साष्टांग प्रणाम किया। ऋषि अंगिरा ने उन्हें आशीर्वाद दिया और उनकी कुशलता पूछी। साथ ही यह जानना चाहा कि वे वन में किस कारण से भटक रहे हैं और उनके आश्रम में आने का उद्देश्य क्या है।
राजा मांधाता ने विनम्रता पूर्वक हाथ जोड़कर कहा — “महात्मन्! मैं धर्म के सभी नियमों का पालन करता हूँ, फिर भी मेरे राज्य में भयंकर अकाल फैला हुआ है। कृपया बताइए कि इसका कारण क्या है और इससे मुक्ति का उपाय क्या हो सकता है।”
राजा की बात सुनकर महर्षि अंगिरा बोले — “हे राजन! यह सतयुग है और सभी युगों में यह सर्वश्रेष्ठ माना गया है। इस युग में यदि कोई अल्प पाप भी हो जाए तो उसका परिणाम अत्यंत गंभीर होता है। इस युग में धर्म अपनी चारों पायों पर स्थापित रहता है।
सतयुग में तपस्या का अधिकार केवल ब्राह्मणों को ही प्राप्त है, लेकिन आपके राज्य में एक शूद्र व्यक्ति तपस्या कर रहा है। यही आपके राज्य में अकाल का मूल कारण है। जब तक वह शूद्र तपस्वी अपने जीवन का अंत नहीं पाता, तब तक यह संकट दूर नहीं हो सकता। इस आपदा से मुक्ति केवल उसी के निवारण से संभव है।”
राजा मांधाता का हृदय एक निरपराध शूद्र तपस्वी का वध करने के लिए तैयार नहीं हुआ। उन्होंने महर्षि अंगिरा से निवेदन किया — “हे देव! मेरे लिए यह संभव नहीं है कि मैं किसी निर्दोष तपस्वी का अंत करूं। कृपया ऐसा कोई उपाय बताएं जिससे इस संकट का समाधान हो सके।”
तब महर्षि अंगिरा ने सलाह दी कि राजा आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत करें। उन्होंने कहा कि इस व्रत के प्रभाव से अवश्य ही वर्षा होगी और राज्य की पीड़ा समाप्त होगी।
राजा मांधाता राजधानी लौटे और समस्त प्रजा के साथ विधिपूर्वक पद्मा एकादशी (देवशयनी एकादशी) का व्रत किया। इस व्रत की शक्ति से उनके राज्य में घनघोर वर्षा हुई और चारों ओर सुख-समृद्धि लौट आई। ब्रह्मवैवर्त पुराण में इस एकादशी की महिमा का वर्णन मिलता है कि इसके व्रत से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
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FAQs
देवशयनी एकादशी का व्रत क्यों किया जाता है?
देवशयनी एकादशी का व्रत भगवान विष्णु को प्रसन्न करने और सभी प्रकार की मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए किया जाता है। इस व्रत से चातुर्मास का शुभारंभ होता है और इसे करने से पापों का नाश होता है तथा सुख-समृद्धि प्राप्त होती है।
देवशयनी एकादशी से चातुर्मास का क्या संबंध है?
देवशयनी एकादशी से ही चातुर्मास की शुरुआत मानी जाती है। इस दिन भगवान विष्णु क्षीरसागर में योगनिद्रा में चले जाते हैं और चार माह पश्चात देवोत्थानी एकादशी के दिन जागते हैं। इस अवधि को चातुर्मास कहा जाता है जिसमें शुभ कार्य वर्जित होते हैं।
राजा मांधाता ने देवशयनी एकादशी का व्रत क्यों किया?
अपने राज्य में भीषण अकाल को समाप्त करने और प्रजा को राहत दिलाने के लिए राजा मांधाता ने महर्षि अंगिरा की सलाह पर देवशयनी एकादशी का व्रत किया था। इस व्रत के प्रभाव से उनके राज्य में वर्षा हुई और सभी संकट दूर हो गए।