Panchak Mrityu: पंचक के दौरान किसी व्यक्ति की मृत्यु होना ज्योतिष शास्त्र में एक महत्वपूर्ण और चिंताजनक घटना मानी जाती है, जिससे जुड़ी कई धार्मिक मान्यताएँ प्रचलित हैं। गरुड़ पुराण सहित अनेक ग्रंथों में बताया गया है कि इस अवधि में मृत्यु होने से आत्मा की आगे की यात्रा में रुकावट आ सकती है और इसका असर परिवार के अन्य सदस्यों पर भी नकारात्मक रूप से पड़ सकता है। हालांकि, शास्त्रों में ऐसे विशेष उपाय और विधियाँ वर्णित हैं, जिनके माध्यम से इन अशुभ प्रभावों को कम किया जा सकता है।

पंचक काल में मृत्यु होना शुभ या अशुभ?
पंचक काल में किसी व्यक्ति की मृत्यु होना ज्योतिषीय दृष्टि से अत्यंत अशुभ और महत्वपूर्ण माना जाता है। अनेक धार्मिक ग्रंथों, विशेष रूप से गरुड़ पुराण में, इस विषय का विस्तार से उल्लेख मिलता है। ऐसी मान्यता है कि पंचक में हुई मृत्यु का दुष्प्रभाव केवल उस व्यक्ति तक नहीं रहता, बल्कि उसके पूरे परिवार और वंश पर इसका नकारात्मक असर पड़ सकता है। शास्त्रों के अनुसार पंचक काल में मृत्यु सामान्य नहीं मानी जाती और यह आत्मा की यात्रा तथा मोक्ष मार्ग को भी प्रभावित कर सकती है।
गरुड़ पुराण में उल्लेख है कि “न तस्य उध्वैगति: दृष्टा”, जिसका आशय यह है कि पंचक में मृत्यु होने पर आत्मा को स्वर्ग आदि ऊर्ध्व लोकों की प्राप्ति में कठिनाई हो सकती है। इसका तात्पर्य यह नहीं है कि आत्मा को मोक्ष मिलना असंभव हो जाता है, बल्कि उसकी दिव्य लोकों तक यात्रा में रुकावटें उत्पन्न हो सकती हैं। ऐसी स्थिति में आत्मा को तुरंत शांति या अगला जन्म नहीं मिल पाता और वह भटकती रह सकती है।
विशेष रूप से यदि किसी व्यक्ति ने जीवन में पाप कर्म किए हों या उसकी मृत्यु अधूरी इच्छाओं के साथ हुई हो और अंतिम संस्कार पंचक नियमों के अनुरूप न किया गया हो, तो आत्मा के प्रेत योनि में जाने की संभावना अधिक हो जाती है। प्रेत योनि में आत्मा देह विहीन होकर भटकती रहती है और उसे भूख, प्यास सहित अनेक प्रकार के दुख झेलने पड़ते हैं।
कुछ धार्मिक मान्यताओं में ऐसा माना जाता है कि यदि किसी व्यक्ति की मृत्यु पंचक काल में हो जाए और उसका अंतिम संस्कार पंचक दोष निवारण उपायों के बिना कर दिया जाए, तो उसकी आत्मा शांति नहीं पा पाती और उसे भटकना पड़ता है। ऐसा कहा जाता है कि ऐसी आत्मा को मोक्ष प्राप्त करने से पहले पांच बार पुनर्जन्म लेना पड़ता है। यह स्थिति उन लोगों के लिए बताई गई है जिनके संस्कार पंचक दोष से मुक्त किए बिना सम्पन्न किए जाते हैं।
गरुड़ पुराण समेत अनेक धार्मिक ग्रंथों में पंचक काल में मृत्यु से जुड़ी मान्यताओं का वर्णन मिलता है। इस अवधि में मृत्यु का सबसे बड़ा और भयावह पक्ष यह माना जाता है कि मृत व्यक्ति अपने परिवार या वंश के पांच अन्य सदस्यों को भी किसी न किसी रूप में प्रभावित कर सकता है। इसका अर्थ यह नहीं है कि उन सभी की मृत्यु होगी, बल्कि वे लोग किसी रोग, दुख, संकट या किसी प्रकार की विपत्ति का सामना कर सकते हैं।
पंचक काल में यदि किसी व्यक्ति का निधन हो जाए, तो शास्त्रों में बताए गए विशेष उपायों को अपनाना आवश्यक होता है। ऐसे में मुख्य रूप से आटे या कुश से बने पांच पुतलों को मृतक की अर्थी पर रखा जाता है। इन पुतलों का अंतिम संस्कार भी मृतक के साथ ही पूरी विधिपूर्वक किया जाता है। ये पुतले प्रेतवाह, प्रेतसम, प्रेतप, प्रेतभूमिप और प्रेतहर्ता के प्रतीक होते हैं। इस विधि को अपनाने से पंचक दोष का प्रभाव समाप्त होता है और परिवार को भविष्य में आने वाली संभावित परेशानियों से रक्षा मिलती है।
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FAQs
पंचक काल में मृत्यु क्यों अशुभ मानी जाती है?
पंचक काल में मृत्यु होना शास्त्रों में अशुभ माना गया है क्योंकि यह आत्मा की ऊर्ध्वगति में बाधा डाल सकता है और मृतक के परिवार पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। गरुड़ पुराण सहित अन्य ग्रंथों में इसे गंभीर ज्योतिषीय घटना माना गया है।
पंचक काल में मृत्यु के दुष्प्रभाव से बचने के लिए क्या उपाय किए जाते हैं?
पंचक दोष से बचने के लिए मृतक की अर्थी पर आटे या कुश से बने पांच पुतले रखकर उनका भी अंतिम संस्कार किया जाता है। यह विधि प्रेतदोष को शांत करने और परिवार पर विपत्तियों से रक्षा करने के लिए की जाती है।
पंचक में मृत्यु से परिवार पर क्या असर पड़ सकता है?
मान्यता है कि पंचक काल में मृत्यु होने पर परिवार के अन्य पांच सदस्यों को किसी न किसी प्रकार की हानि, रोग या संकट का सामना करना पड़ सकता है, यदि शास्त्रानुसार उपाय न किए जाएं।
पंचक दोष निवारण के उपाय करने से क्या लाभ होता है?
पंचक दोष निवारण उपाय करने से आत्मा की शांति प्राप्त होती है, परिवार पर कोई अशुभ प्रभाव नहीं पड़ता और भविष्य की संभावित आपदाओं से सुरक्षा मिलती है।