By Neha Pandey
श्लोक 2.17: अविनाशि तु तद्विद्धि येन सर्वमिदं ततम्। विनाशमव्ययस्यास्य न कश्र्चित्कर्तुमर्हति।। अर्थ: जो सम्पूर्ण शरीर में व्याप्त है, उसे अविनाशी समझो। कोई भी उसे नष्ट नहीं कर सकता।
आत्मा और शरीर का भेद: आत्मा अमर और अविनाशी है, जबकि शरीर नश्वर है। शरीर समाप्त हो जाता है, लेकिन आत्मा का कोई अंत नहीं है।
आत्मा को बाल के अग्रभाग के दस हजारवें भाग के बराबर सूक्ष्म माना गया है। यह सूक्ष्म होते हुए भी सम्पूर्ण शरीर में व्याप्त होती है।
श्लोक 2.17
आत्मा की चेतना: आत्मा ही चेतना का स्रोत है। जब तक आत्मा शरीर में रहती है, तब तक शरीर में जीवन रहता है।
उपनिषदों में आत्मा का वर्णन: श्र्वेताश्र्वतर उपनिषद् के अनुसार, आत्मा अति-सूक्ष्म है, जिसे किसी भौतिक साधन से मापा नहीं जा सकता। यह शरीर में चेतना के रूप में अनुभव की जाती है।
आत्मा और विज्ञान: आधुनिक विज्ञान भी इस तथ्य को स्वीकारता है कि शरीर की सभी क्रियाओं का स्रोत हृदय है, जहाँ आत्मा निवास करती है। आत्मा के निकलते ही शरीर की सभी क्रियाएँ बंद हो जाती हैं।
मुण्डक उपनिषद् में आत्मा: मुण्डक उपनिषद् में कहा गया है कि आत्मा पांच प्रकार के प्राणों में तैरती है और शरीर में अपनी उपस्थिति का प्रभाव फैलाती है।
हठ-योग का उद्देश्य आत्मा की शुद्धि और भौतिक बंधनों से मुक्ति है। योग के माध्यम से आत्मा को शुद्ध और मुक्त किया जाता है।
आत्मा का शाश्वत स्वरूप: आत्मा न जन्म लेती है, न मरती है। यह शाश्वत, अविनाशी और अपरिवर्तनीय है।
निष्कर्ष: श्रीमद्भगवद्गीता के श्लोक 2.17 में आत्मा की अमरता और अविनाशी स्वरूप का विशद वर्णन किया गया है। आत्मा का यह ज्ञान जीवन के गूढ़ रहस्यों को समझने की दिशा में महत्वपूर्ण है।
कर्तव्य और धर्मयुद्ध......