By Neha Pandey
श्लोक 2.18 अन्तवन्त इमे देहा नित्यस्योक्ताः शरीरिणः | अनाशिनोSप्रमेयस्य तस्माद्युध्यस्व भारत ||
भावार्थ: शरीर नाशवान है, परंतु आत्मा अमर और अप्रमेय है। हे अर्जुन, शोक मत करो और धर्म का पालन करते हुए अपने कर्तव्यों का पालन करो।
भौतिक शरीर का अंत निश्चित है। यह स्वभाव से नाशवान है और इसे अनंतकाल तक बनाए रखना संभव नहीं है।
श्लोक 2.18
आत्मा का शाश्वत स्वरूप: आत्मा न कभी नष्ट होती है और न ही इसे देखा जा सकता है। यह अजर, अमर और अप्रमेय है।
आत्मा का महत्व: वेदांत के अनुसार, आत्मा परमात्मा का अंश है, जैसे सूर्य का प्रकाश पूरे ब्रह्मांड को पोषित करता है, वैसे ही आत्मा शरीर को जीवन देती है।
अर्जुन के लिए उपदेश: भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को बताते हैं कि उसे शरीर के नाश से डरना नहीं चाहिए, बल्कि अपने धर्म का पालन करना चाहिए।
शोक का कोई कारण नहीं: आत्मा का नाश नहीं हो सकता, इसलिए शरीर के नाश से शोक करना अनुचित है।
शरीर की नश्वरता के बावजूद, अपने कर्तव्यों का पालन करना सबसे महत्वपूर्ण है। धर्म की रक्षा के लिए अर्जुन को युद्ध करना चाहिए।
गीता का संदेश: यह श्लोक हमें जीवन में आने वाली कठिनाइयों से घबराने के बजाय, आत्मा के शाश्वत स्वरूप को समझकर आगे बढ़ने की शिक्षा देता है।
निष्कर्ष: शरीर नाशवान है, पर आत्मा अमर है। श्लोक 2.18 जीवन के इस सत्य को समझने की प्रेरणा देता है कि हमें अपने कर्तव्यों का पालन करते रहना चाहिए।
मृत्यु का भय और मोह.....