By Neha Pandey
श्लोक 2.16: नासतो विद्यते भावो नाभावो विद्यते सतः। उभयोरपि दृष्टोऽन्तस्त्वनयोस्तत्त्वदर्शिभिः।।
असत् का कोई चिरस्थायित्व नहीं है और सत् का कोई अभाव नहीं होता। तत्त्वदर्शियों ने यह सत्य अनुभव किया है।
आत्मा और शरीर का भेद शरीर असत् है, जो नाशवान है। आत्मा सत् है, जो शाश्वत और अविनाशी है।
श्लोक 2.16
शरीर का असत् स्वरूप – शरीर परिवर्तनशील है। – कोशिकाएँ निरंतर बदलती रहती हैं। – शरीर वृद्धावस्था और मृत्यु को प्राप्त होता है।
आत्मा का सत् स्वरूप – आत्मा शाश्वत और अपरिवर्तनीय है। – आत्मा का कोई विनाश नहीं होता। – आत्मा शरीर के परिवर्तनों से अछूती रहती है।
तत्त्वदर्शियों की दृष्टि – असत् का कोई स्थायित्व नहीं। – सत् का अभाव नहीं होता।
आध्यात्मिक चेतना का विकास आत्मा के शाश्वत स्वरूप को समझकर हम जीवन के वास्तविक उद्देश्य को पहचान सकते हैं।
शरीर अस्थायी है और आत्मा शाश्वत। इस ज्ञान से हम जीवन के प्रति अपने दृष्टिकोण को बदल सकते हैं।
भगवद्गीता के श्लोक 2.16 से आत्मा की अनंतता को समझें और जीवन में शांति पाएं।
श्लोक 2.16 हमें यह सिखाता है कि शरीर और संसार की भौतिक वस्तुएं असत् हैं, जिनका कोई स्थायित्व नहीं होता। इसके विपरीत, आत्मा सत् है, जो शाश्वत और अपरिवर्तनीय है। इस सत्य को समझकर हम जीवन के वास्तविक उद्देश्य को पहचान सकते हैं और आत्मा के शाश्वत स्वरूप को आत्मसात कर सकते हैं।
शरीर और आत्मा के बीच का अंतर.....