By Neha Pandey

Bhagavad Gita Chapter 2 Verse-Shloka 15

भागवत गीता अध्याय 2 श्लोक 15

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भगवान श्रीकृष्ण का यह श्लोक अर्जुन को समर्पित है, जिसमें वह जीवन के संघर्षों को धैर्यपूर्वक सहने की सलाह देते हैं।

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श्लोक 2.15 "यं हि न व्यथयन्त्येते पुरुषं पुरुषर्षभ | समदुःखसुखं धीरं सोऽमृतत्वाय कल्पते || १५ ||

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जो मनुष्य सुख और दुःख में विचलित नहीं होता और इन दोनों में समभाव बनाए रखता है, वही मोक्ष के योग्य है।

भावार्थ

श्लोक 2.15

सुख और दुःख जीवन के दो पहलू हैं। स्थिर मनुष्य ही इनसे समान रूप से प्रभावित नहीं होता।

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संन्यास आश्रम और उसकी चुनौतियाँ संन्यास में प्रवेश करने पर परिवार और प्रियजनों से संबंध तोड़ने की आवश्यकता होती है, लेकिन यही आत्म-साक्षात्कार का मार्ग है।

अर्जुन को धर्म पालन की प्रेरणा श्रीकृष्ण ने अर्जुन को युद्ध में अडिग रहने और क्षत्रिय धर्म का पालन करने की सलाह दी, भले ही वह प्रियजनों के खिलाफ हो।

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भगवान चैतन्य महाप्रभु ने भी आत्म-साक्षात्कार के लिए 24 वर्ष की उम्र में संन्यास ग्रहण किया, जो कि एक आदर्श उदाहरण है।

सुख और दुःख का समान रूप से सामना करें, धैर्य और स्थिरता से जीवन जिएं। यही मोक्ष का मार्ग है।

जीवन की शिक्षा

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– सुख और दुःख में समभाव रखें। – आत्म-साक्षात्कार के लिए धैर्य आवश्यक है। – धर्म पालन में अडिग रहें।

निष्कर्ष श्रीकृष्ण की इस शिक्षा का अनुसरण करें, जीवन की हर चुनौती को स्वीकारें और मोक्ष के मार्ग पर अग्रसर हों।

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