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Siddhivinayak Aarti: श्री सिद्धिविनायक की आरती- जय देव जय देव,जय मंगल मूर्ति…

श्री सिद्धिविनायक, जिन्हें भगवान गणेश के रूप में भी जाना जाता है, हिंदू धर्म के प्रमुख देवताओं में से एक हैं। गणेश जी को ‘विघ्नहर्ता’ और ‘सिद्धिदाता’ कहा जाता है, जो समस्त विघ्नों को हरने वाले और सिद्धियों का प्रदान करने वाले माने जाते हैं। श्री सिद्धिविनायक की पूजा और आराधना विशेष रूप से उनके आशीर्वाद और कृपा प्राप्त करने के लिए की जाती है। उनकी आरती, भक्तों द्वारा उनके प्रति अपनी भक्ति और श्रद्धा प्रकट करने के लिए गाई जाती है। इस लेख में, हम श्री सिद्धिविनायक की आरती, उसके महत्व, और उसके धार्मिक, सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक प्रभावों पर विस्तार से चर्चा करेंगे।

Shri Siddhivinayak Aarti With Lyrics

श्री सिद्धिविनायक की आरती

सुख करता दुखहर्ता, वार्ता विघ्नाची ।

नूर्वी पूर्वी प्रेम कृपा जयाची ।

सर्वांगी सुन्दर उटी शेंदु राची ।

कंठी झलके माल मुकताफळांची ।

जय देव जय देव..

जय देव जय देव,

जय मंगल मूर्ति ।

दर्शनमात्रे मनः

कामना पूर्ति

जय देव जय देव ॥

रत्नखचित फरा तुझ गौरीकुमरा ।

चंदनाची उटी कुमकुम केशरा ।

हीरे जडित मुकुट शोभतो बरा ।

रुन्झुनती नूपुरे चरनी घागरिया ।

जय देव जय देव..

जय देव जय देव,

जय मंगल मूर्ति ।

दर्शनमात्रे मनः,

कामना पूर्ति

जय देव जय देव ॥

लम्बोदर पीताम्बर फनिवर वंदना ।

सरल सोंड वक्रतुंडा त्रिनयना ।

दास रामाचा वाट पाहे सदना ।

संकटी पावावे निर्वाणी, रक्षावे सुरवर वंदना ।

जय देव जय देव..

जय देव जय देव,

जय मंगल मूर्ति ।

दर्शनमात्रे मनः,

कामना पूर्ति

जय देव जय देव ॥

॥ श्री गणेशाची आरती ॥

शेंदुर लाल चढ़ायो अच्छा गजमुखको ।

दोंदिल लाल बिराजे सुत गौरिहरको ।

हाथ लिए गुड लड्डू सांई सुरवरको ।

महिमा कहे न जाय लागत हूं पादको ॥

जय देव जय देव..

जय देव जय देव,

जय जय श्री गणराज ।

विद्या सुखदाता

धन्य तुम्हारा दर्शन

मेरा मन रमता,

जय देव जय देव ॥

अष्टौ सिद्धि दासी संकटको बैरि ।

विघ्नविनाशन मंगल मूरत अधिकारी ।

कोटीसूरजप्रकाश ऐबी छबि तेरी ।

गंडस्थलमदमस्तक झूले शशिबिहारि ॥

जय देव जय देव..

जय देव जय देव,

जय जय श्री गणराज ।

विद्या सुखदाता

धन्य तुम्हारा दर्शन

मेरा मन रमता,

जय देव जय देव ॥

भावभगत से कोई शरणागत आवे ।

संतत संपत सबही भरपूर पावे ।

ऐसे तुम महाराज मोको अति भावे ।

गोसावीनंदन निशिदिन गुन गावे ॥

जय देव जय देव..

जय देव जय देव,

जय जय श्री गणराज ।

विद्या सुखदाता

धन्य तुम्हारा दर्शन

मेरा मन रमता,

जय देव जय देव ॥

॥ श्री शंकराची आरती ॥

लवथवती विक्राळा ब्रह्मांडी माळा,

वीषे कंठ काळा त्रिनेत्री ज्वाळा

लावण्य सुंदर मस्तकी बाळा,

तेथुनिया जळ निर्मळ वाहे झुळझुळा ॥

जय देव जय देव..

जय देव जय देव,

जय श्रीशंकरा ।

आरती ओवाळू,

तुज कर्पुरगौरा

जय देव जय देव ॥

कर्पुरगौरा भोळा नयनी विशाळा,

अर्धांगी पार्वती सुमनांच्या माळा

विभुतीचे उधळण शितकंठ नीळा,

ऐसा शंकर शोभे उमा वेल्हाळा ॥

जय देव जय देव..

जय देव जय देव,

जय श्रीशंकरा ।

आरती ओवाळू,

तुज कर्पुरगौरा

जय देव जय देव ॥

देवी दैत्यी सागरमंथन पै केले,

त्यामाजी अवचित हळहळ जे उठले

ते त्वा असुरपणे प्राशन केले,

नीलकंठ नाम प्रसिद्ध झाले ॥

जय देव जय देव..

जय देव जय देव,

जय श्रीशंकरा ।

आरती ओवाळू,

तुज कर्पुरगौरा

जय देव जय देव ॥

व्याघ्रांबर फणिवरधर सुंदर मदनारी,

पंचानन मनमोहन मुनिजनसुखकारी

शतकोटीचे बीज वाचे उच्चारी,

रघुकुलटिळक रामदासा अंतरी ॥

जय देव जय देव..

जय देव जय देव,

जय श्रीशंकरा ।

आरती ओवाळू,

तुज कर्पुरगौरा

जय देव जय देव ॥

॥ श्री देवीची आरती ॥

दुर्गे दुर्घट भारी तुजविण संसारी,

अनाथनाथे अंबे करुणा विस्तारी ।

वारी वारीं जन्ममरणाते वारी,

हारी पडलो आता संकट नीवारी ॥

जय देवी जय देवी..

जय देवी जय देवी,

जय महिषासुरमथनी ।

सुरवर-ईश्वर-वरदे,

तारक संजीवनी

जय देवी जय देवी ॥

त्रिभुवनी भुवनी पाहतां तुज ऎसे नाही,

चारी श्रमले परंतु न बोलावे काहीं ।

साही विवाद करितां पडिले प्रवाही,

ते तूं भक्तालागी पावसि लवलाही ॥

जय देवी जय देवी..

जय देवी जय देवी,

जय महिषासुरमथनी ।

सुरवरईश्वरवरदे,

तारक संजीवनी

जय देवी जय देवी ॥

प्रसन्न वदने प्रसन्न होसी निजदासां,

क्लेशापासूनि सोडी तोडी भवपाशा ।

अंवे तुजवांचून कोण पुरविल आशा,

नरहरि तल्लिन झाला पदपंकजलेशा ॥

जय देवी जय देवी..

जय देवी जय देवी,

जय महिषासुरमथनी ।

सुरवरईश्वरवरदे,

तारक संजीवनी

जय देवी जय देवी ॥

॥ घालीन लोटांगण आरती ॥

घालीन लोटांगण, वंदीन चरण ।

डोळ्यांनी पाहीन रुप तुझें ।

प्रेमें आलिंगन, आनंदे पूजिन ।

भावें ओवाळीन म्हणे नामा ॥

त्वमेव माता च पिता त्वमेव ।

त्वमेव बंधुक्ष्च सखा त्वमेव ।

त्वमेव विध्या द्रविणं त्वमेव ।

त्वमेव सर्वं मम देवदेव ॥

कायेन वाचा मनसेंद्रीयेव्रा,

बुद्धयात्मना वा प्रकृतिस्वभावात ।

करोमि यध्य्त सकलं परस्मे,

नारायणायेति समर्पयामि ॥

अच्युतं केशवं रामनारायणं,

कृष्णदामोदरं वासुदेवं हरिम ।

श्रीधरं माधवं गोपिकावल्लभं,

जानकीनायकं रामचंद्र भजे ॥

हरे राम हर राम,

राम राम हरे हरे ।

हरे कृष्ण हरे कृष्ण,

कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।

श्री सिद्धिविनायक की आरती का महत्व

श्री सिद्धिविनायक की आरती का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व अत्यधिक महत्वपूर्ण है। इसका नियमित गायन भक्तों के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है और उन्हें शांति, सुरक्षा और समृद्धि प्रदान करता है। आरती के माध्यम से भगवान गणेश की महिमा का गुणगान किया जाता है और उनकी कृपा प्राप्त की जाती है। यह आरती भक्ति और श्रद्धा के साथ गाई जाती है, जो भक्तों के मन को शांति और संतोष प्रदान करती है।

  1. भक्ति और श्रद्धा की अभिव्यक्ति: आरती का गायन भगवान गणेश के प्रति अपनी भक्ति और श्रद्धा को प्रकट करने का एक साधन है। यह भगवान गणेश के प्रति समर्पण और प्रेम को व्यक्त करने का एक तरीका है।
  2. सकारात्मक ऊर्जा का संचार: श्री सिद्धिविनायक की आरती का नियमित रूप से गायन करने से मन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। यह मन और आत्मा को शुद्ध करता है और दैनिक जीवन की चुनौतियों का सामना करने की शक्ति प्रदान करता है।
  3. विघ्नों का नाश: भगवान गणेश को विघ्नहर्ता कहा जाता है, और उनकी आरती करने से सभी प्रकार के विघ्नों और बाधाओं का नाश होता है। यह आरती भक्तों के जीवन में आने वाली समस्याओं को दूर करने में मदद करती है।
  4. सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व: आरती का गायन एक महत्वपूर्ण सामाजिक और सांस्कृतिक परंपरा है। यह परिवार और समुदाय के लोगों को एक साथ लाता है और एकता का संदेश देता है।
  5. आध्यात्मिक लाभ: श्री सिद्धिविनायक की आरती का गायन करने से व्यक्ति के आध्यात्मिक विकास में मदद मिलती है। यह आत्मा को शांति और संतुलन प्रदान करता है और जीवन में एक सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित करता है।

निष्कर्ष

श्री सिद्धिविनायक की आरती का धार्मिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व अत्यधिक महत्वपूर्ण है। इसका नियमित गायन भक्तों के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है और उन्हें शांति, सुरक्षा और समृद्धि प्रदान करता है। यह भारतीय संस्कृति और परंपराओं का अभिन्न अंग है और इसे संरक्षित और संवर्धित करना हमारी जिम्मेदारी है। श्री सिद्धिविनायक की आरती का गायन भगवान गणेश के प्रति अपनी भक्ति और श्रद्धा को प्रकट करने का एक साधन है और यह भक्तों के मन और आत्मा को शुद्ध करने में सहायक होता है। भगवान गणेश की आरती करने से भक्तों के जीवन में सुख-शांति, समृद्धि और सकारात्मकता का संचार होता है। इसलिए, हमें श्री सिद्धिविनायक की आरती का नियमित रूप से गायन करना चाहिए और इसका पूर्ण लाभ उठाना चाहिए।

श्री सिद्धिविनायक की आरती का महत्व केवल धार्मिक ही नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी अत्यधिक महत्वपूर्ण है। यह हमें हमारे धार्मिक और सांस्कृतिक मूल्यों के प्रति जागरूक करता है और हमें उन परंपराओं और संस्कारों को बनाए रखने के लिए प्रेरित करता है जो हमारे समाज और संस्कृति की नींव हैं। भगवान गणेश की आरती करने से हमारे जीवन में धार्मिकता और आध्यात्मिकता का संचार होता है, जिससे हम एक स्वस्थ और संतुलित जीवन जी सकते हैं।

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